गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर- दिवाली के उत्सव का क्या महत्व है ?
punjabkesari.in Thursday, Oct 31, 2024 - 07:45 AM (IST)
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Diwali 2024: दिवाली का उत्सव बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। दिवाली के दिन हर वर्ष प्रकाश का उत्सव मनाया जाता है। दिवाली के दिन लोग अपनी अर्जित की हुई सारी संपत्ति को अपने सामने रखते हैं और समृद्धि तथा कृतज्ञता का अनुभव करते हैं। जब आप जीवन में अभाव पर ध्यान डालते हैं तो अभाव ही बढ़ता है लेकिन जब आप अपना ध्यान समृद्धि पर केन्द्रित करते हैं तो समृद्धि बढ़ने लगती है। दिवाली का पर्व हमें ज्ञान के प्रकाश की याद दिलाता है। इस दिन केवल घर को सजाने के लिए ही दीपक न जलाएं बल्कि प्रत्येक हृदय में ज्ञान और प्रेम का दीपक जलाएं और प्रत्येक चेहरे पर मुस्कान लाएं।
दिवाली को दीपावली भी कहा जाता है जिसका अर्थ है- दीयों की पंक्तियां
दीयों की पंक्तियां हमें याद दिलाती हैं कि हमारे जीवन के हर पहलू में ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छे गुण होते हैं। कुछ लोगों में सहनशीलता होती है। कुछ लोगों में प्रेम, शांति और उदारता होती है। जबकि अन्य लोगों में कई लोगों को एक साथ लाने की योग्यता होती है। आप जो दीये जलाते हैं, वे इन्हीं गुणों के प्रतीक हैं। अंधेरे को मिटाने के लिए आपको बहुत सारे दीये जलाने की आवश्यकता होती है इसीलिए केवल एक ही दीया जलाकर संतुष्ट न हो जाएं बल्कि अज्ञान के अंधेरे को मिटाने के लिए ज्ञान के हज़ारों दीये जलाएं।
एक दीपक को जलने के लिए उसकी बाती का एक भाग तेल में डूबे रहना आवश्यक है। लेकिन यदि पूरी की पूरी बाती ही तेल में डूबी रहेगी तो दिया नहीं जलेगा इसलिए उसका ऊपर का हिस्सा तेल से बाहर रहता है । हमारा जीवन भी दीये की बाती की तरह है। आपको संसार में रहते हुए भी इसमें होने वाली घटनाओं से ऊपर उठना चाहिए। यदि आप संसार की भौतिकता में डूब जायेंगे तो आप जीवन में ज्ञान और आनंद का अनुभव नहीं कर पायेंगे। संसार में रहते हुए भी यदि आप भौतिकता में नहीं उलझते तब आप स्वयं आनंद और ज्ञान का प्रकाश बन जाते हैं। तो दिवाली का यह संदेश भी है कि संसार में रहें लेकिन इसमें होने वाली घटनाओं से प्रभावित न हों।
दिवाली का उत्सव पटाखों से भी जुड़ा हुआ है। आप जीवन में कई बार एक पटाखे की तरह बन जाते हैं और मन में दबी हुई भावनाओं, निराशाओं और क्रोध के साथ विस्फोटित होने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। जब आप अपनी भावनाओं, राग और द्वेष को लगातार दबाते रहते हैं तो एक बिंदु पर पहुंच कर उनमें विस्फोट हो जाता है। पटाखे जलाना दरअसल एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास है जो दबी हुई भावनाओं को मुक्त करने में सहायता करता है। जब आप बाहर किसी विस्फोट को देखते हैं तो अपने भीतर भी उन्हीं संवेदनाओं का अनुभव करते हैं। जैसे पटाखों के विस्फोट के साथ-साथ बहुत सारा प्रकाश उत्पन्न होता है वैसे ही जब आप इन दबी हुई नकारात्मक भावनाओं को छोड़ देते हैं तब आप शांति का अनुभव करते हैं।
प्रत्येक वर्ष भारत के कई महानगरों में पटाखों के नाम पर वातावरण में इतने अधिक विषैले तत्त्व छोड़े जाते हैं कि लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। यहां हमें यह देखना चाहिए कि हम पटाखों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से या फिर पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से कैसे चला सकते हैं। जब हमारे रसोई के चूल्हे, इलेक्ट्रिकल ऊर्जा और सौर ऊर्जा से चल सकते हैं तो क्या हम पटाखों को चलाने के किसी अन्य तरीके के बारे में नहीं सोच सकते, जिससे धुआं न उत्पन्न हो। आप उत्सव ही तो मनाना चाहते हैं और आप पर्यावरण को प्रदूषित किए बिना भी उत्सव मना सकते हैं। हमें जन्मदिन और शादियों में भी प्रदूषण पैदा करने वाले पटाखे बंद करने की आवश्यकता है।
इस दिन उपहार और मिठाइयां बांटने की भी प्रथा है। मिठाइयों और उपहारों का आदान-प्रदान करना बीते समय की कड़वाहट को भुला कर फिर से मित्रता को बढ़ाने का प्रतीक है। कोई भी उत्सव सेवा की भावना के बिना अपूर्ण रहता है। इसीलिए जो कुछ भी हमें ईश्वर से मिला है, दिवाली के उत्सव पर हमें उसे दूसरों के साथ बांटना चाहिए क्योंकि ख़ुशी और ज्ञान को बांटना और लोगों को एक साथ लाना ही वास्तविक उत्सव है ।
प्राचीन ऋषियों ने प्रत्येक उत्सव के साथ पवित्रता को जोड़ दिया ताकि उत्सव के उत्साह में आपका मन केंद्रित रहे। धार्मिक संस्कारों और अनुष्ठानों का उद्देश्य ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना है। इससे उत्सव में गहराई आती है। जिस व्यक्ति के पास आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है, उसके लिए दिवाली वर्ष में एक बार आती है। बुद्धिमान व्यक्ति के लिए प्रत्येक क्षण और प्रत्येक दिन दिवाली है। ज्ञान की आवश्यकता हर जगह है। यदि परिवार का एक व्यक्ति अज्ञान के अंधकार में डूबा हुआ है तो हम खुश नहीं रह सकते हैं।
वसुधैव कुटुंबकम् पूरी पृथ्वी ही एक परिवार है। इस कार्य को आगे बढ़ाते हुए हमें इस प्रकाश को समाज और संसार के प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाने की आवश्यकता है। जब सच्चे ज्ञान का उदय होता है तभी वास्तव में दिवाली के उत्सव का आरंभ होता है।