दीपावली 2019ः इस बार मनाएं ईको फ्रेंडली दिवाली

punjabkesari.in Sunday, Oct 27, 2019 - 09:30 AM (IST)

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पटाखों, साज-सज्जा के सामान और मिलावटी मिठाइयों व उनकी पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले मैटीरियल के बिना भी खुशियों भरा भाईचारे का पर्व दीपावली बड़ी धूमधाम से मनाया जा सकता है। पटाखों का धुआं इतना अधिक प्रदूषण पैदा कर देता है कि छोटे बच्चे, बुजुर्ग सहित अनेक लोग सांस से जुड़ी कई समस्याओं के शिकार हो सकते हैं। पटाखे सावधानी से न चलाने पर ये शरीर को जला भी सकते हैं। गलत तरीके से फोड़े जाने वाले बड़े बम व आतिशबाजी से घरों या दुकानों में आग भी लग जाती है व स्वयं उन्हें चलाने वाला भी खतरे में पड़ सकता है। तो क्यों न इस बार सब मिल कर ईको फै्रंडली दीपावली मनाने को प्राथमिकता दें व अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखें।
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मिट्टी के दीए जलाने की परम्परा आजकल लुप्त होती जा रही है क्योंकि उनका स्थान डिजाइनर दीयों व लाइट्स ने ले लिया है जो बिजली बर्बाद करने के साथ-साथ नकारात्मक ऊर्जा भी फैलाते हैं। ऐसे में मिट्टी के दीए जलाएं जोकि देखने में तो खूबसूरत होते हैं, साथ ही अर्थ फै्रंडली मैटीरियल के कारण ग्रीन दीपावली मनाने के लिए बेहतर विकल्प हैं। ये दीए चार-पांच घंटों तक जलते रहते हैं और घर को जगमगाते रहते हैं। सबसे बड़ी और सच्ची खुशी आपको इसलिए भी होगी कि दीए बनाने वाले कारीगरों को रोजगार मिलेगा और वे भी इस पर्व को मना सकेंगे।

देखा जाए तो पटाखे छुड़ाना दीपावली की पहचान है लेकिन यही सब पर्यावरण को भी नुक्सान पहुंचाते हैं। बढ़ते प्रदूषण के कारण आजकल बाजार में ईको फ्रेंडली पटाखों की शृंखला भी उपलब्ध है। इनकी खासियत है कि ये री-साइकिल पेपर से बने होते हैं और इनकी आवाज भी पोल्यूशन बोर्ड द्वारा तय की गई डेसीबल लिमिट जितनी ही होती है जब ये पटाखे फटते हैं तो इनमें से रंगीन कागज व रंगीन रोशनी निकलती है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक नहीं होते हैं।
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रंगोली बनाने के लिए फूलों, रसोई घर में प्रयोग होने वाली चीजें जैसे आटा, हल्दी, चावल आदि का प्रयोग करें। प्रवेश द्वार व अन्य द्वारों पर प्लास्टिक या थर्मोकोल से बने बंदनवारों के स्थान पर गेंदे, गुलाब व आम के पत्तों से इन्हें तैयार करें। यह खुशबू देने के साथ सुंदर तो दिखेंगे ही, वातावरण को भी सकारात्मकता प्रदान करेंगे। दीपावली पर बाजारों में ढेर सारे आकर्षित करते घर को सजाने वाले उत्पाद देख कर हम खुद को रोक नहीं पाते। इसी चक्कर में हम यह भी भूल जाते हैं कि जिस मैटीरियल से यह चीजें बनी हैं, वे रीसाइकिल हो सकती हैं या नहीं। अगर हमें ग्रीन दीपावली मनानी है तो इन बातों को ध्यान में रखना जरूरी है।

क्या हैं ईको फ्रेंडली पटाखे
ईको फ्रेंडली पटाखे बारूद वाले पटाखों की तुलना में बहुत कम धुआं छोड़ते हैं। इन्हें बनाने  का रासायनिक फॉर्मूला अलग होता है। इनमें पुराने प्रदूषक बारूदों की जगह अन्य वैकल्पिक रसायनों का प्रयोग किया जाता है जो पर्यावरण को नुक्सान नहीं  पहुंचाते हैं। इनसे निकलने वाली आवाज भी कम रहती है। सामान्य पटाखे प्रदूषण को बढ़ाते हैं, वहीं चकाचौंध रोशनी, उच्च डेसीबल की वजह से वे अंधता और बहरापन की वजह भी बनते हैं जबकि ईको फ्रेंडली पटाखे पर्यावरण तथा हमारे दोनों के ही हितैषी हैं।
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पटाखों का इतिहास
कम ही लोग जानते हैं कि पटाखों का इतिहास भारत से जुड़ा नहीं है और पटाखे जलाना हमारी ऐतिहासिक परम्परा का भी हिस्सा नहीं रहा है। वास्तव में पटाखों का आविष्कार 7वीं सदी में चीन में हुआ। इसके बाद तक 1200 ईस्वी से 1700 ईस्वी तक ये पूरे विश्व में लोगों की पसंद बन गए। जहां तक दीपावली पर पटाखे छुड़ाने की बात है तो यह परम्परा बहुत बाद में शुरू हुई। 


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