Dharmik Sthan- इस स्थान पर केवट से मिले थे मर्यादा पुरुषोत्म श्री राम

punjabkesari.in Sunday, Apr 18, 2021 - 12:30 PM (IST)

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राम की वनवास यात्रा से जुड़े जिन स्थलों के दर्शन इस बार आपको करवाने जा रहे हैं, उनमें वह स्थान विशेष रूप से शामिल है जहां वनवास के लिए प्रस्थान करते समय उनकी भेंट केवट से हुई थी। इसके अलावा श्रीराम के पुत्र कुश के नाम पर ‘कुशभानपुर’ नामक स्थल से लेकर वे नदियां शामिल हैं जिन्हें श्रीराम, सीता तथा लक्ष्मण जी ने पार किया था।

सीता कुंड, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश)
यहां गोमती नदी के किनारे महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है। श्रीराम ने यहां से गोमती नदी पार की थी। कहते हैं कि सुल्तानपुर का पूर्व नाम श्रीराम के पुत्र कुश के नाम पर कभी ‘कुशभानपुर’ हुआ करता था।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/49/11, मानस 2/187/4 ; 2/321/3)

वद्रथी/बरुथी, मोहनगंज, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
इस नदी का वर्तमान नाम ‘सकरनी’ नदी है। यह प्रतापगढ़ से पूर्व दिशा में लगभग 8 कि.मी. दूर है।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 6/125/26)

शांगवेरपुरम, सिंगरोर (गंगा जी) इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
यह कभी निषादराज गुह की राजधानी थी। इसका वर्तमान नाम ‘सिंगरोर’ है तथा इलाहाबाद से लगभग 20 कि.मी. दूर उत्तर दिशा में गंगा जी के किनारे पर यह स्थित है। यहीं ‘केवट प्रसंग’ हुआ था। इसके निकट ही संध्या घाट, रामशैया, वीरासन, श्रीराम चरण पादुका, भरत डेरा, जटा वृक्ष आदि अनेक स्थल श्रीराम वनवास से जुड़े हैं।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/50/28 से 2/52/92 तक, मानस 2/86/1 से 2 /101 दोहे तक)

देवघाट, प्रतापगढ़ (स्यंदिका), इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
‘स्यंदिका’ का वर्तमान नाम ‘सई’ है। जहां से श्रीराम ने नदी पार की वह स्थान प्रतापगढ़ से 12 कि.मी. दूर देवघाट के नाम से प्रसिद्ध है।
(ग्रंथ उल्लेख : वा. रा. 2/49/12, मानस 2/188/ 1 ; 2/321/3)

श्रीराम मंदिर, राम कलेवातारा (बालुकिनी), इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
यहां मौजूद नदी का वर्तमान नाम ‘बकुलाही’ है। नदी में कंकड़ व रेत बहुत होती थी इसलिए पहले इसे ‘बालुकिनी’ नाम से पुकारा जाता था। प्रतापगढ़ से दक्षिण में लगभग 15-20 कि.मी. दूर यह स्थल मिलता है। यहां भी अब एक मंदिर है।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा.6/125/26)

रामसैया, सिंगरोर (गंगा), इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
श्री सीता-राम ने यहां एक रात्रि विश्राम किया था। निषाद राज गुह ने यहां घास की शैया तैयार की थीं। यहां आज भी उस स्मृति में शैया तथा इंगुदी का पेड़ है। पास ही वीरासन है जहां रात्रि को लक्ष्मण जी ने ‘वीरासन’ पर बैठ कर पहरा दिया था।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/50/49, 50, 51 मानस 2/ 88/2, 3)


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Content Writer

Jyoti

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