Dharmik Katha: ईश्वर की पहचान विवेक से करें

punjabkesari.in Tuesday, Oct 25, 2022 - 12:22 PM (IST)

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बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ घूम-घूम कर लोगों को जनकल्याण की सीख दे रहे थे। वे मानवीय संवेदनाओं की स्थापना कर रहे थे। उसी दौरान परमहंस जी ने एक प्रवचन दिया जिसमें काफी भीड़ जुटी हुई थी।

गुरु परमहंस ने कहा कि ईश्वर सर्वत्र विराजमान हैं। उनके प्रवचन से प्रभावित एक भावुक व्यक्ति ईश्वर को सर्वत्र देखने लगा। पत्थर, पौधे, जीव-जंतु सभी में उसे ईश्वर के दर्शन होने लगे। एक बार वह गुरु परमहंस से मिलने के लिए जंगल के रास्ते आ रहा था तभी उसे एक हाथी मिला। हाथी पर महावत सवार था। वह दूर से आदमी को कहता रहा हट जाओ, वरना हाथी नुक्सान पहुंचा सकता है। उस पर गुरु परमहंस का इतना प्रभाव था कि वह हाथी में भी ईश्वर को देख रहा था।
 

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वह हाथ जोड़कर हाथी के समक्ष खड़ा हो गया। हाथी ने उसे सूंड में लपेटा और बड़े जोर से पटक दिया जिससे वह मूर्छित होकर वहीं लेट गया। आंख खुली तो सामने गुरु परमहंस अपने शिष्यों के साथ खड़े थे। गुरु के पूछने पर  व्यक्ति ने बताया कि उसे हाथी में ईश्वर दिख रहे थे इसलिए वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उससे भयभीत नहीं हुआ।

इस पर स्वामी जी कुछ कहते, इससे पहले विवेकानंद ने कहा आपको हाथी में ईश्वर नजर आया किंतु महावत में ईश्वर नजर नहीं आया जो आपकी रक्षा करने के लिए बार-बार प्रेरित कर रहा था। वह सामने से हट जाओ कहता रहा, किंतु आपने ईश्वर के इशारे को नहीं समझा। ईश्वर की पहचान अपने विवेक से भी की जाती है। स्वामी विवेकानंद की बात सुनकर वह व्यक्ति संतुष्ट हो गया और अपनी नादानी में किए हुए कार्य को भी समझ गया।


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Content Writer

Jyoti

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