Dharmik Katha: वैराग्य धारण करना आसान नहीं

punjabkesari.in Monday, Aug 22, 2022 - 04:37 PM (IST)

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महाराष्ट्र के संत संतोबा पवार एक बार राजणागांव पधारे। एक घर में भिक्षा मांगने पर गृहस्वामिनी ने भिक्षा देते हुए कहा-महाराज! मेरे पति मुझसे रोज लड़ते-झगड़ते हैं और कहते हैं कि नहीं मानोगी तो संतोबा के समान वैराग्य धारण करूंगा। आप ही बताएं-मैं क्या करूं? संतोबा बोले-अबकी बार यदि वे कहें, तो उनसे कहना, मेरा जीवन तुम्हारे बिना भी चल सकता है, खुशी से संतोबा के पास जाओ। दूसरे ही दिन पति ने किसी बात पर पत्नी से वही बात कही। पत्नी ने सहज ही कह दिया ‘चले जाओ’! मैं अपना गुजारा कर लूंगी। पति गुस्से में था ही, तुरन्त संतोबा के पास पहुंचा और बोला महाराज! मुझे भी अपने साथ शामिल कर लें।

संतोबा ने जान लिया ये महाशय उस स्त्री के पति हैं। उन्होंने उसके सारे शरीर पर भभूत लगाई और एक झोली तथा टिन के बर्तन दे उसे भिक्षा लाने भेजा। वह समीप के ग्राम में गया और घर-घर भिक्षा मांगने लगा मगर लोग उसे देख द्वार बंद कर लेते। आखिर दो घरों से उसे भिक्षा के रूप में बासी चावल, रोटी, सब्जी आदि मिली। वही भोजन सामग्री लेकर वह संतोबा के पास पहुंचा। संत ने भिक्षा में मिले भोजन को खाने के लिए दिया परन्तु उस व्यक्ति ने खाने से अस्वीकार कर दिया।
 

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तब संतोबा ही उसे खाने लगे और बोले-ऐसा भोजन तो हम रोज करते हैं। जब तुमने घर का त्याग किया है, तो घर के मिष्ठान भोजन का भी त्याग करना पड़ेगा। ‘यदि वैराग्य ऐसा ही है तब मुझे अपनी झंझटों वाली वह गृहस्थी ही भली! ऐसा कह कर वह अपने घर वापस लौट गया। कुछ दिनों बाद संतोबा उसके घर गए। तब उसकी पत्नी बोली-महाराज! अब वे वैराग्य-धारण की बात नहीं करते हैं। वैराग्य की बातें करना आसान है इसे धारण करना शूरवीरों के ही बस का होता है। -आचार्य ज्ञानचंद्र
 


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Content Writer

Jyoti

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