क्या है शिक्षा का सही अर्थ, सत्यानंद के इस प्रसंग से जानिए
punjabkesari.in Tuesday, Jan 11, 2022 - 10:36 AM (IST)
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सत्यानंद के आश्रम में आनंद, सोम, विवेक और रोहित नामक शिष्य रहते थे। सत्यानंद समभाव से बड़े प्यार से शिक्षा देते थे। एक दिन शाम को गुरु जी के भोजन करने के बाद चारों शिष्य भोजन करने बैठे। ऐसे समय उनके पास भूख से व्याकुल एक छोटा बालक पहुंचा। वह उनसे रोटी की याचना करने लगा परंतु उन्हें उस पर दया नहीं आई। वे सब भोजन में तल्लीन रहे।
बालक ने बार-बार याचना की, परंतु उनका दिल नहीं पसीजा। बेचारा भूखा बालक निराश होकर लौटने लगा। तब सत्यानंद ने उठकर स्वयं उसे भोजन दिया। बालक वहां से चला गया। चारों शिष्यों ने जब भोजन कर लिया तब गुरु जी ने उन्हें अपने पास बुलाया और पूछा, ‘‘बेटो बताओ, आज के व्याख्यान में मैंने किस बात की शिक्षा दी।’’
आनंद ने जवाब दिया, ‘‘आपने सर्वोत्तम दान की शिक्षा दी गुरु जी।’’
सत्यानंद ने पूछा, ‘‘बताओ, इसमें तुम लोगों ने क्या जाना?’’
रोहित ने जवाब दिया, ‘‘गुरु जी हमने जाना कि भूखे, रोगी, वृद्ध, असहाय, शरीर से लाचार और विपत्ति में पड़े लोगों को मदद देना ही सर्वोत्तम दान है।’’
अब सत्यानंद ने पूछा, ‘‘बेटो, कुछ समय पहले तुम्हारे पास भोजन था। भूख से व्याकुल एक बालक तुम्हारे पास आया था। भोजन चाह रहा था परंतु तुममें से किसी को उस पर दया नहीं आई। तुम लोगों ने उसकी मदद क्यों नहीं की?’’
इस पर चारों शिष्य निरुत्तर हो गए। उनके चेहरे पर भूल के भाव उभर आए। तब सत्यानंद ने उन्हें समझाया, ‘‘बेटो, शिक्षा जरूरी बातों को जान लेना मात्र नहीं है। सीखी बातों को जीवन में उतारना चहिए।
चारों शिष्यों ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाया और संकल्प लिया कि वे भविष्य में इन बातों का ध्यान रखेंगे। —कमलचंद वर्मा