Dharmik Katha: प्राणियों की रक्षा करना सबसे बड़ा धर्म

punjabkesari.in Tuesday, Dec 07, 2021 - 10:59 AM (IST)

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काशी से गंगा के किनारे एक संत का आश्रम था, उसमें कई शिष्य अध्ययन करते थे। आखिर वह दिन आया जब शिक्षा पूरी हन के बाद गुरुदेव उन्हें अपना आशीर्वाद देकर विदा करने वाले थे। सुबह गंगा में स्नान करने के बाद गुरुदेव और उन्हें अपना आशीर्वाद देकर विदा करने वाले थे। सुबह गंगा में स्नान करने के बाद गुरुदेव और सभी शिष्य पूजा करने बैठ गए। सभी ध्यानमग्न थे कि एक बच्चे की बचाओ-बचाओ की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह बच्चा नदी में डूब रहा था। 

आवाज सुनकर गुरुदेव की आंखें खुल गई। उन्होंने देखा कि  एक शिष्य पूजा छोड़कर बच्चे को बचाने के लिए नदी में कूद गया। वह किसी तरह बच्चे को बचाकर किनारे ले आया लेकिन दूसरे शिष्य आंखें बंद कए ध्यानमग्न थे। पूजा खत्म होने के बाद गुरुदेव ने उन शिष्यों से पूछा, "क्या तुम लोगों को डूबते हुए बच्चे की आवाज़ सुनाई पड़ी थी?"

शिष्यों ने कहा, "हां गुरुदेव, सुनी तो थी।" 

गुरुदेव ने कहा, "तब तुम्हारे मन में क्या विचार उठा था?" 

शिष्यों ने कहा, "हम लोग ध्यान में डूबे थे। दूसरी तरफ ध्यान देने की बात में उठी ही नहीं।"

गुरुदेव ने कहा, "लेकिन तुम्हारा एक मित्र बच्चे को बचाने के लिए पूजा छोड़कर नदी में कूद पड़ा।"

शिष्यों ने कहा, "उसने पूजा छोड़कर अधर्म किया है।"

इस पर गुरुदेव ने कहा "अधर्म उसमें नहीं, तुम लोगों ने किया है। तुमने डूबते हुए बच्चे की पुकार अनसुनी कर दी। पूजा-पाठ, धर्म-कर्म का एक ही उद्देश्य होती है प्राणियों की रक्षा करना। तुम आश्रम में धर्म शास्त्रों, व्याकरणों, धर्म-कर्म आदि में पारंगत तो हुए लेकिन धर्म का सार नहीं समढ सकें।"


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Content Writer

Jyoti

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