Swami Vivekananda Story: स्वामी विवेकानंद से जानें, पाप और पुण्य का भेद
punjabkesari.in Tuesday, Jan 07, 2025 - 01:58 PM (IST)
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Swami Vivekananda Story: एक बार कोलकाता में प्लेग फैला हुआ था। शायद ही कोई ऐसा घर बचा था जिसमें इस रोग का प्रकोप न हुआ हो। इस बीमारी ने असमय ही अनेक लोगों को मौत की नींद सुला दिया। यह देखकर हर ओर त्राहि-त्राहि मच गई। सभी परेशान थे।
ऐसे में स्वामी विवेकानंद व उनके कई शिष्य स्वयं रोगियों की सेवा करते रहे। वे नगर की गलियां और बाजार साफ करते और जिस घर के मरीज इस बीमारी की चपेट में आ गए थे, उन्हें दवा आदि देकर उनका उपचार करते।
तभी कुछ लोगों की मंडली स्वामीजी के पास आई और बोली, “स्वामी जी, आप यह ठीक नहीं कर रहे हैं।
इस धरती पर पाप बहुत बढ़ गया है इसलिए इस महामारी के रूप में लोगों को दंड मिल रहा है।”
यह सुनकर स्वामी जी गंभीरता से बोले, “आप सब यह तो जानते ही होंगे कि मनुष्य इस जीवन में अपने कर्मों के कारण कष्ट और सुख पाता है।
ऐसे में जो व्यक्ति कष्ट से पीड़ित है और तड़प रहा है यदि दूसरा व्यक्ति उसके घावों पर मरहम लगा देता है और उसके कष्ट को दूर करने में मदद करता है तो वह स्वयं ही पुण्य का अधिकारी बन जाता है।
अब यदि आपके अनुसार प्लेग से पीड़ित लोग पाप के भागी हैं तो भी हमारे जो सेवक इनकी मदद कर रह हैं वे तो पुण्य के भागी बन ही रहे हैं न। बोलिए इस संदर्भ में आपका क्या कहना है ?”
स्वामी जी की बात सुनकर सभी लोग भौचक्के रह गए और चुपचाप सिर झुकाकर वहां से चले गए।