जानिए भक्त शेख फरीद जी के जीवन, वाणी एवं विचार

punjabkesari.in Sunday, Oct 31, 2021 - 01:49 PM (IST)

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पंजाब के सूफी संतों में भक्त शेख फरीद जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। भक्त शेख फरीद जी, बाबा फरीद जी, शेख फरीद जी, बाबा फरीद जी शकरगंज - आदि अनेक नामों से पहचाने जाने वाले भक्त शेख फरीद जी का समय 1173 ई. से 1266 ई. है। जिला मुलतान में शेख जमालुद्दीन सुलेमान तथा कुरशम बीबी के घर इनका जन्म हुआ। इनका प्रथम नाम ‘मसऊद’ था। श्रेष्ठ एवं उत्तम संस्कारों का शैशवकाल में ही पालन करते हुए इनमें विभिन्न गुणों का प्रवेश होता गया। आरंभिक शिक्षा के पश्चात कुछ समय मौलाना मिन्हाजुद्दीन तिरमिजी की मस्जिद के मदरसे में भी शिक्षा प्राप्त की।

इन्हें सम्पूर्ण कुरान याद थी। एक दिन इनकी भेंट ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य शेख कुतुबुद्दीन बख्त्यार काकी से हुई। कहा जाता है कि मसऊद मस्जिद में बैठे अपनी पाठ्य पुस्तक ‘नाफे’ (लाभदायी) पढ़ रहे थे जब बख्त्यार काकी ने पूछा कि आप क्या पढ़ रहे हैं तो इन्होंने तुरंत कहा, ‘‘नाफे।’’

गुरु ने पूछा कि ‘‘नाफे से कुछ नफा हुआ?’’

तब विनम्रता पूर्वक ये बोले, ‘‘हुजूर! नफा तो मुझे आपके संपर्क में आने से ही होगा।’’

हालांकि इनकी यह पहली भेंट थी परंतु काकी जी में इन्हें अपने गुरु, मुरशिद के दर्शन हो गए थे। इन्होंने स्वयं को उनके चरणों में समर्पित कर दिया। मुरशिद के शरीरांत के बाद ये चिश्ती सम्प्रदाय के सत्रहवें उत्तराधिकारी बने। 1237 ई. में इन्हें ‘फरीदुद्दीन-बल-मिल्लत’ (धर्म और जाति की माला का सुमेरू) की उपाधि मिलने के बाद ये ‘फरीद’ नाम से जाने गए।

आप अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान एवं कुरान की सरल भावपूर्ण व्याख्या करने के लिए ख्याति प्राप्त कर चुके थे। हजरत निजामुद्दीन औलिया ने स्वीकार किया है कि कुरान की जैसी सरल एवं भावपूर्ण व्याख्या उन्होंने अपने मुरशिद भक्त शेख फरीद जी शकरगंज से सुनी है, उस जैसी उन्होंने किसी अन्य से नहीं सुनी।

भक्त शेख फरीद जी की वाणी मानवीय मूल्यों की धारक, पक्षपात से रहित, प्रभु भक्ति से पूर्ण, संसार की नि:सारता व सदाचार का महत्व दर्शाने वाली, समय की परख एवं कद्र करने वाली है जो किसी भी हृदय को प्रभावित किए बिना नहीं रहती।

ये कहा करते थे कि परमात्मा को नम्रता से ही प्राप्त किया जा सकता है। हे मनुष्य! तू समय का महत्व पहचान। प्रत्येक व्यक्ति एक निश्चित समय के लिए ही संसार में आता है। वह समय केवल परमात्मा को ही ज्ञात है। मनुष्य को चाहिए कि वह समय का सदुपयोग करे। केवल भौतिक पदार्थों को एकत्र करने में ही जीवन न गंवा दे। न जाने उसके श्वासों का कब अंत हो जाए। संसार रूपी भवसागर पार क रने के लिए प्रभु नाम की नौका समय रहते ही बना लेनी चाहिए। —डा. मधु बाला 


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Content Writer

Jyoti

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