आस्था की गंगा ने पखारे छठी मइया के पांव, कृत्रिम घाटों पर दिखा श्रद्धा का सैलाब

punjabkesari.in Thursday, Nov 11, 2021 - 12:40 PM (IST)

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नई दिल्ली : छठ महापर्व के तीसरे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य व प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर व्रतधारियों ने छठ मइया को याद किया। पश्चिमी दिल्ली, दक्षिणी-पश्चिमी दिल्ली, बाहरी दिल्ली व पूर्वी दिल्ली में रहने वाले अधिकतर छठव्रतधारियों ने अपने घरों की छतों व बालकनियों में ही टब में पानी भरकर अर्घ्य दिया। इसके साथ ही कोविड गाइडलाइंस का पालन करते हुए छठ घाटों पर भी व्रतधारी भारी संख्या में पहुंचे। बिरला मंदिर के छठ पूजा घाट को बेहद सुंदर सजाया गया है। 

लोगों के घरों से भोजपूरी की मशहूर गायिका शारदा सिन्हा, मालिनी अवस्थी, कल्पना, देवी सहित अनुराधा पौडवाल द्वारा गाए गए पारंपरिक छठ गीतों की ध्वनि सुनाई दी, जिसमें ‘केरवा के पात पर उगेलें सुरूज देव झांके-झुंके’, ‘कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय’ व ‘पहिले-पहिले छठी हम कइनी छठी मइया व्रत तोहार’ जैसे गीत खूब सुनने को मिले। 

डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए लोगों ने बांस की की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू और पूजा के सामान को सजाया हुआ था। सूर्यास्त से ठीक पहले सूर्यदेव व प्रत्यूषा की पूजा कर डूबते सूरज को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा की। व्रतधारियों ने मनोकामना पूर्ति के लिए घर जाकर पूजा स्थल पर कोसी भरकर रातभर जलने वाला अखंड दिया जलाया।

इसलिए देते हैं डूबते सूर्य देव को अर्घ्य
शास्त्रों के अनुसार शाम के समय भगवान सूर्य व उनकी पत्नी प्रत्यूषा (सूर्य की आखिरी किरण प्रत्यूषा) एक साथ रहते हैं जिसके चलते शाम को ढलते सूर्य को अर्घ्य देने पर प्रत्यूषा का आशीष भी प्राप्त होता है। जहां डूबते सूर्य की उपासना व अर्घ्य देने से जीवन में तेज रहता है और यश, धन व अन्य सुख संपदाएं प्राप्त होती है वहीं कई मुसीबतों से छुटकारा मिलता है और सेहत भी ठीक रहती है।


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Content Writer

Jyoti

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