व्यवहार’ से प्रकट हो जाते हैं 'गुण'
punjabkesari.in Tuesday, Nov 29, 2022 - 03:01 PM (IST)

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चाणक्य और उनकी नीतियों के बारे में आप सब जानते ही होंगे। इन्होंने अपने नीति सूत्र में कई चीज़ों के बारे में बताया है। इसमें उन्होंने कई नीति श्लोक में वर्णन किया है कि इंसान को सफलता तभी प्राप्त होती है जब वह बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद साथ लेकर चलता है। जो व्यक्ति अपने माता-पिता का आदर करते हैं, सफलता उनके कदम चुमती है। तो आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य नीति के विभिन्न श्लोक-
चाणक्य श्लोक-
न प्रवृद्धत्वं गुणहेतु:।
अर्थ : समृद्धि से कोई गुणवान नहीं हो जाता।
भावार्थ : सम्पन्नता से गुणों का आकलन नहीं किया जा सकता। आदमी ऊपर से कुछ होता है, भीतर से कुछ। गुणवान व्यक्ति के गुण उसके व्यवहार और कार्य से प्रकट हो जाते हैं।
अपराध है ‘पराया धन’ छीनना
चाणक्य श्लोक-
परद्रकहरणमपराध:।
भावार्थ : कभी किसी दूसरे के धन को नहीं छीनना चाहिए, यह पाप और अपराध है।
बिना अधिकार के किसी के घर में प्रवेश न करें
चाणक्य श्लोक-
अनधिकारे न प्रविशति गृहे।
भावार्थ : बिना आज्ञा के किसी के घर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। इससे अपमान हो सकता है।
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जो ‘सुख’ मिला है, उसे न छोड़ें
न चागतं सुखं परित्यजेत्।
भावार्थ : भविष्य में अधिक सुख मिलेगा, ऐसा सोच कर जो सुख वर्तमान में पास है, उसे नहीं गंवाना चाहिए। ‘आधी को छोड़े, सारी को धावे। आधी मिले न पूरी पावे।’
‘मनुष्य’ स्वयं दुखों को बुलाता है
स्वयमेव दु:खमधिगच्छति।
भावार्थ : जो जैसे कर्म करता है, उसी के अनुसार जीवन में दुख-सुख प्राप्त होते हैं। जो निकम्मा है, आलसी और कामचोर है, उसे सभी तरह के दुख और कष्ट घेर लेते हैं।
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