जिन लोगों के पास होते हैं सुख रूपी रत्न, उनके लिए धरती कहलाती है स्वर्ग

punjabkesari.in Friday, Nov 11, 2022 - 12:31 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हर व्यक्ति की लालसा होती है उसे अपने जीवन में हर तरह का सुख प्राप्त हो। ये सुख मानसिक व शारीरिक दोनों ही तरह के होते हैं। कहा जाता है जिसे अपने जीवन में ये दोनों तरह के सुख प्राप्त हो जाते हैं, उसे अपना जीवन सफल लगता है। मगर क्या आप जानते हैं कि चाणक्य नीति सूत्र में तीन ऐसे सुखों के बारे में बताया गया है जो जिस व्यक्ति को भी प्राप्त होते हैं उसका जीवन धरती पर ही स्वर्ग के समान हो जाता। लेकिन अगर वर्तमान समय की बात करें तो आज कल हर व्यक्ति अपनी भागदौड़ भरे जीवन में इतना व्यस्त है कि वो इन सुखों से वंचित है। तो आइए आज हम आपको आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र के 14वें अध्याय के सर्वप्रथम श्लोक जिसमें उन तीन बहुमूल्य सुखों या यूं कहें कि रत्नों के बारे में वर्णन किया गया है जिनके बारे में कहा जाता है कि इन तीन सुखों के बिना जीवन की कल्पना करना मुमकिन ही नहीं है। अतः आइए बिना देर किए जानते हैं आखिर क्या है ये अमूल्य तीन सुख- 
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चाणक्य नीति श्लोक- 
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् ।
मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥

पहला सुख
चाणक्य के अनुसार हीरा, मोती, पन्ना, स्वर्ण एक पत्थर के टुकड़े के समान माने जाते है, जो इन्हें इन रत्नों को पाने की चाहत में जीवन भर भागदौड़ करता है, वो अपने जीवन के असली सुखों से वंचित रह जाता है। चाणक्य ने अपने नीति सूत्र में बताया सबसे पहला असली सुख है अन्न और जल। जो व्यक्ति थोड़ा पैसा कमाने के बाद भी चैन से दो वक्त की रोटी और जलपान कर पाता है उस व्यक्ति से बड़ा सुखी कोई नहीं होता। कहते हैं पापी पेट को पालन के लिए हर इंसान को अपने जीवन में पर्याप्त धन कमाना पड़ता है, लोग इसे प्राप्त कर लेने में भी कामयाब हो जाते हैं परंतु उन्हीं पैसों से लाया हुआ भोजन को सुख-चैन से नसीब कर पाना हर किसी के किस्मत में नहीं होता। इसलिए कहा गया है कि जो अपने जीवन में थोड़ा होने पर भी राजी-खुशी दो वक्त का खाना खाने में सक्षम होता है उसे सुखी व्यक्ति माना जाता है। 
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दूसरा सुख
कहा जाता है मधुर वाणी वाला व्यक्ति न केवल अपनों से सम्मान प्राप्त करता है बल्कि कहा जाता है मधुर वाणी वाले व्यक्ति के तो दुश्मन भी मुरीद हो जाते हैं। बहुत प्रसिद्ध कहावत भी है एक चुप सौ सुख इसका अर्थ है कि गलत बोलने से अच्छा है चुप रहना। जो व्यक्ति हमेशा तोलमोल कर बोलता है, वो हर जगह प्रशंसा व सम्मान पाता है। तो वहीं जो व्यक्ति कड़वे बोल बोलता है कोई उसके पास जाना पंसद नहीं करता बल्कि हर कोई उससे दूरी बनाए रखता है। चाणक्य नीति सूत्र के अनुसार इसे ऐसा रत्न माना गया है जो न सिर्फ व्यक्ति की छवि में चार चांद लगाने में सक्षम होता है बल्कि मान-सम्मान में कई गुना वृद्धि करवा सकता है। 
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तीसरा सुख
चाणक्य नीति सूत्र के अनुसार आखिरी और सबसे बड़ा सुख माना जाता है मन की शांति। शास्त्रों में इसे किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा धन माना गया है। कहा जाता है जब तक किसी व्यक्ति का मन पूरी तरह से शांत नहीं होता वो अपने जीवन में किसी भी खुशी की अनुभूति नहीं ले पाता। लगभग लोग धन के लालच में इस सुख कोसों दूर रह जाते हैं। जिसके कारण न केवल उनका मन अशांत रहता है बल्कि मानसिक व शारीरिक रूप से कई बिमारियां व्यक्ति को घेर लेती है। अतः वो अपने जीवन के इस सुख वंचित रह जाता है। इसलिए चाणक्य के अनुसार अपने मन को शांत रखना बेहद जरूरी है। 
 


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Content Writer

Jyoti

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