कैसे मां दुर्गा से अवतरित हुई मां कालरात्रि ?

punjabkesari.in Friday, Apr 12, 2019 - 08:39 AM (IST)

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आज सांतवा चैत्र नवरात्रि है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन देवी कालरात्रि के पूजन का विधान है। कहा जाता है कि मां का रंग घने अंधकार की तरह काला है, जिस कारण इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। शास्त्रों में इनके स्वरूप के बारे में कहा गया है, इनके तीन नेत्र हैं, जो एक दम गोल है। देखने में इनका रूप अति भयानक और भयंकर प्रतीत होता है। परंतु शास्त्रों में कहा गया है कि भयानक दिखने वाली देवी कालरात्रि की पूजा से दुखों का अंत होता है।

तो आइए जानते हैं इन से जुड़ी पौराणिक कथा, पूजन विधि और कुछ खास मंत्रओं का बारें में-
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सिद्धि के लिए साधना -
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवरात्र के सातवें दिन साधक का मन ' सहस्त्रार' चक्र में स्थित होता है। इस दिन ब्रह्माण्ड की सभी शक्तियों और सिद्धियों का द्वार खुला होता है। माना जाता है कि जो भी साधक विधिपूर्वक सांतवें नवरात्रि को माता की उपासना करता है उसे सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

पौराणकि कथा-
शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार जब चंड-मुंड और रक्तबीज नामक राक्षसों ने भूलोक पर हाहाकार मचा दिया था तब देवी दुर्गा ने इनका संहार किया लेकिन  जब उन्होंने रक्तबीज का संहार किया तब उसका रक्त यानि खून ज़मीन पर गिरते ही हज़ारों रक्तबीज उतपन्न हो गए।
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कहा जाता है कि तब रक्तबीज के इस आतंक को खत्म करने के लिए मां दुर्गा ने देवी कालरात्रि का अवतार लिया था। बता दें कि इन्हें काल की देवी कहा गया है।

मां कालरात्रि की पूजा विधि-
शुद्ध और एकाग्र मन से । इस दिन माता काली को गुड़हल का पुष्प अर्पित करें। इसके बाद कलश पूजन करें फिर माता के समक्ष दीपक जलाकर रोली, अक्षत से मां का तिलक कर पूजन करें। मान्यता है कि नवरात्रि के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूज से साधक के समस्त शत्रुओं का नाश होता है।

कालरात्रि ध्यान मंत्र-

करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।

कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥

दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।

अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥

महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।

घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥

सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।

एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
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मां कालरात्रि का स्तोत्र पाठ

हृीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।

कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥

कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।

कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥

क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।

कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
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Jyoti

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