Buddhist philosophy: बौद्ध शिक्षा और दर्शन में है तनाव मुक्त जीवन का समाधान
punjabkesari.in Saturday, Apr 15, 2023 - 07:28 AM (IST)

Buddhist philosophy: तनाव संसार में सर्वाधिक परेशान करने वाला तत्व माना गया है। बौद्ध धर्म इसे दूर करने का माध्यम शिक्षा और दर्शन को बनाता रहा है। बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा संचालित शिक्षा व्यवस्था सामाजिक संरचना का माध्यम रही है। यही कारण है कि बौद्ध धर्म की शिक्षा व्यवस्था आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है और उसके शैक्षिक सूत्र भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जो तब थे। बौद्ध दर्शन लौकिक एवं पारमार्थिक दोनों सत्यों में विश्वास करता है।
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उसके अनुसार शिक्षा एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो मनुष्य को लौकिक एवं पारमार्थिक दोनों जीवन के योग्य बनाती है। पारमार्थिक जीवन से उसका तात्पर्य निर्वाण से है। उसकी दृष्टि से वास्तविक शिक्षा वह है जो मनुष्य को निर्वाण की प्राप्ति कराए।
बौद्ध दर्शन के अनुसार भी मनुष्य जीवन के दो पहलू हैं- एक लौकिक और दूसरा पारमार्थिक। लौकिक दृष्टि से बौद्ध दार्शनिकों ने मनुष्य के शारीरिक, बौद्धिक, चारित्रिक एवं नैतिक तथा आर्थिक विकास पर बल दिया है और पारमार्थिक दृष्टि से निर्वाण की प्राप्ति के लिए आर्य सत्य, आर्य अष्टांग मार्ग और त्रिरत्न की उपलब्धि आवश्यक मानी है। आज की भाषा में हम इन्हें निम्नलिखित रूप में देख-समझ सकते हैं :
भगवान बुद्ध ने शरीर को स्वस्थ रखने पर बल दिया है। उनकी दृष्टि से शरीर स्वस्थ होने पर मनुष्य शरीर के रुग्ण हो जाने से होने वाले दुखों से मुक्त हो जाता है। फिर स्वस्थ शरीर के अभाव में कुछ भी संभव नहीं, न धर्म और न कर्म। बौद्ध दर्शन के अनुसार, मनुष्य के समस्त दुखों का कारण अज्ञान है।
संसार को सुखमय मानना और इंद्रिय भोग एवं तृष्णा की तृप्ति में सुख की कल्पना करना अज्ञान है। उनके अनुसार, चार आर्य सत्यों का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। बौद्ध दर्शन समस्त प्राणियों के कल्याण का पक्षधर है, यही कारण है कि इसमें करुणा एवं दया पर सबसे अधिक बल दिया गया है। बिना करुणा भाव के एक मनुष्य दूसरे के दुखों को नहीं समझ सकता और बिना दया किए एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के दुखों को दूर नहीं कर सकता। बौद्ध दर्शन इसी प्रकार के सामाजिक विकास का पक्षधर है। बौद्ध धर्म को संस्कृति का अंग मानते हैं। उनकी दृष्टि से संस्कृति के संरक्षण से ही धर्म का संरक्षण हो सकता है पर संस्कृति से उनका तात्पर्य संपूर्ण मानव जाति की संस्कृतियों से है।
इनके ज्ञान द्वारा ही मनुष्य वास्तविक ज्ञान की खोज कर सकता है और वास्तविक धर्म का पालन कर सकता है। बौद्ध धर्म में आत्म संयम, करुणा और दया पर सबसे अधिक बल दिया गया है। शिक्षा द्वारा मनुष्य में इन सब गुणों का विकास करना चाहिए।