बुद्ध पूर्णिमा: जानें, राजकुमार से कैसे बने भगवान

punjabkesari.in Monday, Apr 30, 2018 - 11:47 AM (IST)

बुद्ध पूर्णिमा न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों का खास पर्व है बल्कि हिन्दु धर्म में भी इस दिन का उतना ही महत्व है जितना कि बौद्ध धर्मावलंबियों में। बुद्ध जयंती इस लिए त्रिविधि पावन पर्व है क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति व महाप्रयाण अर्थात मृत्यु हुई थी। आज भारत, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, चीन व जापान सहित दुनिया के विभिन्न देशों में 54 करोड़ से भी अधिक लोग तथागत को अपना आराध्य मानते हैं।


अगर दूसरे शब्दों में कहें तो यह संख्या विश्व की कुल आबादी का 7वां हिस्सा है। वर्तमान में यह धर्म चार संप्रदायों-हीनयान, महायान, वज्रयान और नवयान में बंटा हुआ है, किंतु सभी संप्रदायों के लोग भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को ही मानते हैं। 


वैशाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध को बोधित्व प्राप्त हुआ था।


सिद्धार्थ से बुद्ध बने गौतम बुद्ध को रात्रि के प्रथम प्रहर में शून्य का साक्षात्कार हुआ था। जिसे पाने के लिए वह महलों का सुख छोड़ वर्षों तक कंटक पथ पर चलते रहे। न जाने कहां-कहां घूमे, कितने दिन तक उपवास रखें। सत्य की खोज में हठयोग तक कर बैठे लेकिन गया में उरूवेला के तट पर पीपल के नीचे ध्यानमग्न बैठे संन्यासी को देवता समझ कर सुजाता ने उनके हाथों पर खीर का कटोरा रख दिया जिसे उन्होंने प्रसाद समझ कर ग्रहण किया और उसी रात उन्हें वह ज्ञान मिला जिसे पाने के लिए वह प्रयत्नशील थे। गौतम से गौतम बुद्ध बने सिद्धार्थ को पहली बार पता चला कि शरीर को दुख देने मात्र से ही सत्य की खोज नहीं हो सकती। 


बुद्ध ने कितने सुंदर धर्मचक्र का रेखांकन किया है। चक्र घूमता है मगर चक्र का मूल स्थिर है जो ‘निर्वाण’ है। चक्र के आठ भाग कितनी साधारण बात करते हैं। तथागत के नजरिए से देखें तो हम जो सोचते हैं वहीं हम हैं-स्पष्ट विचार दृढ़ चरित्र में सहायक है, शुद्ध भाषा-हमारा अच्छा व्यवहार-दूसरों के नुक्सान पर व्यापार नदनीय है- दूसरों के लिए सद्व्यवहार-विचार, शब्द और कार्य में सामंजस्य-एक समय में एक ही वस्तु या विचार पर ध्यान। बुद्ध के अपार ज्ञान का मूल है अहिंसा और ध्यान। 


तथागत ने एक बड़ी बात और कही है, वह है जीवन और मृत्यु का चक्र। जिस जीवन और मृत्यु का रहस्य जानने के लिए राजकुमार सिद्धार्थ ने अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़ कर रात के अंधेरे में घर छोड़ा था उस सत्य को बुद्ध ने पा लिया था। अब वह गौतम, गौतम नहीं रहे और न ही वह पीपल का पेड़ साधारण पीपल। वह तो भगवान बन चुके थे भगवान बुद्ध! और पीपल बोधि वृक्ष! 


उन्होंने कहा-इस दुनिया में दुख ही दुख है। जन्म लेना, बूढ़े होना, बीमारी में, मौत में, प्रियजनों से बिछुडऩे में, पसंद-नापसंद की चीजों अर्थात जीवन से मृत्यु तक दुख ही दुख है। इसलिए किसी वस्तु की इच्छा मत रखो। उन्होंने अपने अनुयायियों को सदैव मध्यम मार्ग अपनाने की सीख दी। 


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Niyati Bhandari

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