रोग पीड़ा और व्याधियों का नाश करेंगी मां कालरात्रि महामाया

punjabkesari.in Thursday, Mar 26, 2015 - 03:29 PM (IST)

नवरात्र की सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की उपासना का विधान है। पौराणिक मतानुसार देवी कालरात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा भी हैं। काल का अर्थ है (कालिमा यां मृत्यु) रात्रि का अर्थ है निशा, रात व अस्त हो जाना।  कालरात्रि का अर्थ हुआ काली रात जैसा अथवा काल का अस्त होना। 

अतः देवी कालरात्रि का वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए है। देवी कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं। इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। शास्त्रों में देवी कालरात्रि को त्रिनेत्री कहा गया है। इनके बाल खुले और बिखरे हुए हैं। कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है। इनकी नासिका से श्वास तथा निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं दाईं ऊपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बाईं भुजा में क्रमश: तलवार और खड्ग धारण किया है। शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि गर्दभ (गधे) पर विराजमान हैं।

रात्री में पश्चिम मुखी होकर पूजा घर में काले रंग का कपड़ा बिछाएं तथा कपड़े पर उड़द की ढेरी बिछाएं। पूजा मे काले आसान का उपयोग करें। उड़द की ढेरी पर देवी कात्यायनी का चित्र स्थापित करें। हाथ में जल लेकर संकल्प करें तथा हाथ जोड़कर देवी का ध्यान करें।

ध्यान: करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्। कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥ 

तिल के तेल का दीपक करें। लोहबान से धूप करें। देवी पर नीले कनेर के फूलों को चढाएं। इन्हें उड़द व गुड़ से बने हलवे का भोग लगाएं। श्रृंगार में इन्हें काजल अर्पित करें। तत्पश्चात बाएं हाथ में साबुत उड़द लेकर दाएं हाथ से सप्तमुखी रुद्राक्ष अथवा काले हकीक की माला से देवी के मंत्र का जाप करें। प्रोफैशन में सफलता और प्रमोशन के लिए देवी कालरात्रि पर पीपल के पत्ते पर लौंग व कालीमिर्च रखकर देवी को अर्पित करें।

मंत्र: क्लीं प्रीं क्रीं कालरात्रि देव्यै नमः।।

मंत्रजाप के बाद उड़द काले कपड़े मे बांधकर घर की पश्चिम दिशा मे छुपाकर रख दें। इनकी उपासना से व्यक्ति का रोग पीड़ा और व्याधियों का नाश होता है। इनकी कृपा से कार्यक्षेत्र मे निश्चित सफलता मिलती है तथा निश्चित पद्दोन्नति की प्राप्ति होती है। 

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल kamal.nandlal@gmail.com


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