20 सीढ़ियों के नीचे जाकर होते हैं शिवलिंग के दर्शन, जानें इससे जुड़ा रहस्य

punjabkesari.in Sunday, Sep 06, 2020 - 07:06 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों में से एक है महाराष्ट्र का अंबरनाथ मंदिर। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यहां पर जो भी सच्चे मन से आता है उसको नंदी की अद्भुत प्रतिमा के दर्शन ज़रूर होते हैं।
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आपको बता दें कि बाकी मंदिरों की तरह यहां आसानी से शिवलिंग के दर्शन नहीं होते हैं। यहां शिवलिंग के दर्शन के लिए अंदर एक कमरे से नीचे जाने वाली 20 सीढ़ियों को पार करना पड़ता है। यही नहीं जिस कमरे से ये सीढ़ियां जाती हैं उस कमरे को गभरा नाम से जाना जाता है। तो वहीं इस मंदिर के बाहर दो नंदी बने हैं। मंदिर की मुख्य मूर्ति त्रैमस्तिकी है, इसके घुटने पर एक नारी है, जो शिव—पार्वती के स्वरूप को दर्शाती है। वलधान नदी के तट पर बना मंदिर इमली और आम के पेड़ों से घिरा हुआ है।

मंदिर में मिले एक शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 1060 ईस्वी में शिलाहट के राजा मांबणि ने करवाया था। वहां के स्थानीय निवासी इस मंदिर को पांडवकालीन मानते हैं। ये मंदिर प्राचीन हिन्दू शिल्पकला की ज्वलंत मिसाल है। ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में बने अंबरनाथ शिव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके जैसा मंदिर पूरी दुनिया में और कहीं नहीं।
PunjabKesari, Ambar nath Mandir, Maharashtra, Maharashtra Ambar nath Mandir, अंबर नाथ मंदिर, अंबर नाथ मंदिर महाराष्ट्र, Dharmik Sthal, Religious Place in india, hindu Teerth Sthalजानकारी के लिए बता दें कि यहां पर महाशिवरात्रि के अवसर पर एक भव्य मेला आयोजित किया जाता है जो हजारों भक्तों द्वारा दौरा किया जाता है। महाशिवरात्रि मेला 3–4 दिनों तक चलता है। महा शिवरात्रि के दिन, तीर्थयात्रियों के भारी प्रवाह के कारण अंबरनाथ का पूर्वी भाग वाहनों के लिए अवरुद्ध हो जाता है। मंदिर श्रावण के महीने में भीड़भाड़ वाला हो जाता है। और अगर बात की जाए आमदिनों में मंदिर की। तो दर्शन के लिए मंदिर के कपाट दिनभर खुले रहते हैं।
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तो चलिए अब आपको बताते हैं मंदिर के इतिहास के बारे में। अंबरनाथ की जड़ें महाभारत काल तक जाती हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के सबसे दूभर कुछ वर्ष अंबरनाथ में बिताए थे और यह पुरातन मंदिर उन्होंने एक ही रात में विशाल पत्थरों से बनवा डाला था। कौरवों द्वारा लगातार पीछा किए जाने के भय से यह स्थान छोड़कर उन्हें जाना पड़ा। मंदिर फिर पूरा नहीं हो सका। आसमान के साथ स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन कराने वाला गर्भगृह के- जो मंडप से 20 सीढ़ियां नीचे है, ठीक ऊपर शिखर का न होना इस धारणा को पुष्ट करता है। मौसम के झंझावात झेलता मंदिर तब भी सिर तानकर खड़ा है। बगल से बहती वालधुनी नदी बाढ़ में जब भी विकराल रूप में होती है, उसका पहला नजला इमली और आम के पेड़ों से घिरे इस परिसर पर ही फूटता है।
 


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Jyoti

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