Rudraksha: इस विधि से धारण करें रुद्राक्ष, मिलेगा चमत्कारी प्रभाव

punjabkesari.in Tuesday, Jun 06, 2023 - 11:27 AM (IST)

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Rudraksha: रुद्राक्ष के जन्मदाता भगवान शंकर हैं। रुद्र का अर्थ है- शिव और अक्ष का अर्थ है- वीर्य या रक्त, अश्रु! रुद्र+अक्ष मिलकर ‘रुद्राक्ष’ बना है। यह बेर या मटर के आकार का दाना होता है। यह चार रंगों में होता है- श्वेत, लाल, मिश्रित रंग और काला। रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रिय आभूषण, दीर्घायु प्रदान करने वाला तथा अकाल मृत्यु को दूर धकेलने वाला है। भौतिक और साधनात्मक कई दृष्टियों से प्रकृति की यह अद्भुत भेंट है।

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What are the benefits of rudraksha: रुद्राक्ष एक अद्भुत वस्तु है। विश्व में केवल नेपाल, जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, बर्मा, असम और हिमाचल के कई क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाला रुद्राक्ष एक सुपरिचित बीज है जिसे पिरोकर मालाएं बनाई जाती हैं लेकिन आज तक कई लोगों को इस अद्भुत तांत्रिक वस्तु के गुणों क जानकारी नहीं है। लोगों की धारणा है कि रुद्राक्ष पवित्र होता है, इसलिए इसे पहनना चाहिए। बस, इससे अधिक जानने की चेष्टा किसी ने नहीं की।

Is Rudraksha really effective: वस्तुत: रुद्राक्ष में अलौकिक गुण हैं। इसके चुम्बकीय प्रभाव को, इसकी स्पर्श शक्ति को आधुनिक विज्ञानवेत्ता भी स्वीकार करते हैं। यह रोग शमन और अदृष्ट बाधाओं के निवारण में अद्भुत रूप से सफल होता है। स्वास्थ्य, शांति और श्री समृद्धि देने में भी यह प्रमुख है। रुद्राक्ष के खुरदरे और कुरूप बीज (गुठली) पर धारियां होती हैं। इनकी संख्या 1 से 21 तक पाई जाती है। इन धारियों को मुख कहते हैं। मुख संख्या के आधार पर रुद्राक्ष के गुण, प्रभाव और मूल्य में अंतर रहता है। एकमुखी दाना सर्वथा दुर्लभ होता है। दो से लेकर सातमुखी तक मिल जाते हैं, पर आठ से चौदह तक मुख वाले कदाचित ही मिल पाते हैं, फिर 15 से 21 धारी वाले तो नितांत दुर्लभ हैं। सबसे सुलभ दाना पंचमुखी है।

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What is rudraksha and who should wear it: सामान्यत: प्रयास करने पर 1 से 13 मुखी तक के दाने मिल जाते हैं। इन सभी के अलग-अलग देवता है। प्रत्येक दाने में (धारियों के कोटि क्रम से) उसके देवता की शक्ति समाहित रहती है और उसके धारक को उस देवता की कृपा सुलभ हो जाती है। यूं तो सभी रुद्राक्ष शिवजी को प्रिय हैं और उनमेें से किसी को भी धारण करने से साधक शिव कृपा का पात्र हो जाता है।

How to wear rudraksha: रुद्राक्ष का दाना अथवा माला जो भी सुलभ हो, गंगाजल या अन्य पवित्र जल स्नान करा, शिवजी की भांति चंदन, अक्षत, धूप-दीप से पूजना चाहिए। पूजनोपरांत ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का 1100 जप करके 108 बार हवन करना चाहिए। तत्पश्चात रुद्राक्ष को शिवलिंग से स्पर्श कराकर पुन: ॐ नम: शिवाय’ मंत्र जपते हुए पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके धारण कर लेना चाहिए।

धारण करने के बाद हवन कुंड की भस्म का टीका लगाकर शिव प्रतिमा को प्रणाम करना चाहिए। इस विधि से धारण किया गया रुद्राक्ष त्वरित और निश्चित प्रभावी होता है। यह रुद्राक्ष धारण करने की सरलतम पद्धति है। वैसे समर्थ साधकों को चाहिए कि वे (यदि संभव हो तो) अपने रुद्राक्ष को पंचामृत से स्नान कराकर, अष्टगंध अथवा पंचगंध से भी नहलाएं (उसमें डुबोएं), फिर पूर्ववत् पूजा करके उस रुद्राक्ष से संबंधित मंत्र विशेष का (धारियों के आधार पर) 1100 जप करें और 108 बार आहूति देकर हवन करें, तदोपरांत उसी मंत्र को 5 बार जपते हुए रुद्राक्ष धारण करें और भस्म लेपन के पश्चात शिव प्रतिमा को प्रणाम करें।

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Rudraksh mala: रुद्राक्ष की माला (108 दाने की) अमिट प्रभावकारी होती है। पांचमुखी के कम से कम तीन दाने और अन्य का एक दाना भी बाहु या कंठ में धारण करने से पूर्ण लाभ होता है। ये समस्त रुद्राक्ष व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भौतिक कष्टों का शमन करके उसमें आस्था, शुचिता और देवत्व के भाव जागृत करते हैं। भूत-बाधा, अकाल मृत्यु, आकस्मिक दुर्घटना, मिर्गी, उन्माद, हृदय रोग, रक्तचाप आदि में रुद्राक्ष धारण का चमत्कारी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। रुद्राक्ष लाल धागे में पिरोकर धारण करना चाहिए।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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