रजनीकांत की जन्म कुंडली से जानें क्या राजनीति में है इनका भविष्य

punjabkesari.in Sunday, Jul 21, 2019 - 11:16 AM (IST)

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तमिल और हिंदी फिल्मों के महानायक रजनीकांत का जन्म सिंह लग्र में हुआ है। सिंह लग्न होने के कारण ही रजनीकांत को सूर्य के समान तेज अर्थात तेजस्वी, ओजपूर्ण पौरुष का धनी बना रहा है। सिंह लग्न होने से ही रजनीकांत में आत्मशक्ति का अधिक संचार है इसी कारण कठिन से कठिन परिस्थिति में वह हि मत भी नहीं हारते और चित्त में दृढ़ता, साहस एवं धैर्य भी अधिक रखते हैं। सिंह लग्न पर गुरु की सप्तम दृष्टि से लग्न को देखना रजनीकांत को आकर्षक व्यक्तित्व वाला बना रहा है जिसके कारण जनसमुदाय इनसे प्रभावित है और फिल्में इनके नाम से ही चलती हैं।
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रजनीकांत की जन्मकुंडली-
12.12.1950 जन्म समय 23.49 बेंगलूरू

शिवाजी राव गायकवाड़ अपने सभी भाइयों में छोटे हैं। इनकी माता का नाम जीजाबाई है। इनका बालकाल जीवन कष्ट वाला था जिसके कारण जीवन में काफी संघर्ष किया और संघर्ष करते ग्रहों की चाल बदली और शिवाजी राव बन गए महानायक रजनीकांत। रजनीकांत की जन्म कुंडली सिंह लग्न की है, जिसमें द्वितीय स्थान में शनि और केतु कन्या राशि में है। चतुर्थ भाव में सूर्य वृश्चिक राशि में, पंचम भाव में शुक्र व बुध की युति, षष्ठ भाव में चंद्रमा और मंगल, कु भ राशि में गुरु और अष्टम भाव में राहू स्थित हैं।

रजनीकांत की जन्मकुंडली के लग्न में सिंह राशि स्थित है जिसके कारण बुध परम पापी और मुख्य मारकेश का कार्य करेगा वहीं चंद्रमा सहायक मारकेश बन रहा है और शनि पापी ग्रह हो रहा है।
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रजनीकांत की जन्मकुंडली के अनुसार लग्नेश का चतुर्थ अर्थात मित्र राशि में होना आध्यात्मिक और भौतिक सुखों में वृद्धि कर रहा है। लग्नेश सूर्य के चतुर्थ भाव में होने से रजनीकांत को 32 वर्ष की आयु के बाद विशेष सफलता मिली। इससे पहले रजनीकांत संघर्षरत थे। इनकी जन्मकुंडली के छठे भाव में चंद्रमा स्थित है और साथ में मंगल उच्च है, मंगल का छठे भाव में होना ‘भाग्यभंग योग’ और ‘सुखभंग योग’ का निर्माण कर रहा है। किन्तु द्वादश भावाधिपति चंद्रमा भी वहीं स्थित है जिसके कारण सरल विपरीत राजयोग बनकर लक्ष्मी योग बन रहा है इसलिए रजनीकांत के जीवन में पहले संघर्ष हुआ उसके बाद सरल विपरीत राजयोग द्वारा धनी बने।

मंगल के कारण रजनीकांत रौबीले व्यक्तित्व के स्वामी और अभिनय में स्टाइलिश हैं। बुध और शुक्र की  पंचम भाव में युति कन्याओं को जन्म देती है। वहीं पंचमेश और अष्टमेश गुरु का सप्तम भाव में होना केसरी योग और कुलदीपक योग बना कर जनसमुदाय में प्रसिद्धि दिला रहा है, इसी कारण राजनीति में भी आगमन होगा किन्तु राजनीति में विशेष सफलता नहीं प्राप्त होगी। सिंह लग्न के लिए शनि शुभ  ग्रह नहीं है और सूर्य के साथ शत्रु संबंध भी है, इसी कारण मातृ सुख में कमी रही और वर्तमान में स्वास्थ्य के प्रति जरा-सी असावधानी ल बी बीमारी की ओर ले जाएगी।
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—ज्योतिर्विद बॉक्सर देव गोस्वामी


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Jyoti

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