30 अप्रैल को विकट संकष्टी चतुर्थी पर बन रहा है शिव और परिध योग, मिलेंगे विशेष फल

punjabkesari.in Thursday, Apr 29, 2021 - 12:17 PM (IST)

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संकष्टी चतुर्थी का व्रत वैसे तो हर महीने में दो बार होता है लेकिन बैसाख महीने में पड़ने वाली विकट संकष्टी चतुर्थी की महिमा सबसे ज्यादा है। शास्त्रों में वैशाख माह का भी बहुत महत्व बताया गया है और  इस महीने पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी को भी बहुत महत्ता दी गई है। संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है - दुखों को हरने वाला। संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित होती है। 

हर माह में दो बार चतुर्थी तिथि पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। वैशाख के माह में कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस तिथि को विकट संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। इस बार शुक्रवार 30 अप्रैल को विकट संकष्टी चतुर्थी पड़ रही है । पंचांग के अनुसार इस साल संकष्टी चतुर्थी पर शिव और परिध योग बनने जा रहा है। पहले परिध योग बनेगा। इसके बाद से शिव योग का शुभारंभ हो जाएगा। यदि कोई शत्रु से संबंधित मामला हो तो परिध योग में विजय प्राप्ति होती है। शिव योग बहुत ही शुभ लाभदायी माना जाता है। इस योग में प्रभु के स्मरण के साथ किसी भी मंत्र के जाप से कई गुना लाभ मिलता है। 

भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। यह जीवन में आने वाले सभी संकट और विघ्न का नाश करते हैं। संकष्टी चतुर्थी का दिन गणपति भगवान का स्मरण करने और उनकी पूजा-अर्चना करने के लिए उत्तम दिन माना गया है। इस दिन विघ्नहर्ता अपने भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं और उन्हें शुभता का आशीर्वाद देते हैं।

इस दिन भगवान गणेश और शिव परिवार की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके साथ ही माताएं संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए भी इस दिन व्रत रखती हैं। गणेश जी को शास्त्र में प्रथम देवता का दर्जा प्राप्त है। इसलिए कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य को करने से पूर्व भगवान गणेश जी की स्तुति और स्मरण किया जाता है।

संकष्टी चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा करने से पाप ग्रह केतु और बुध ग्रह की अशुभता भी दूर होती है। संकष्टी चतुर्थी 29 अप्रैल को रात 10:09 बजे शुरू होकर 30 अप्रैल 2021 को शाम 07:09 बजे समाप्त होगी। यदि 30 अप्रैल को मनाई जाएगी।  इस दिन सुबह स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पूजा आरंभ करें। भगवान गणेश जी को फल, मिष्ठान, दूर्वा घास, पंच मेवा आदि समर्पित करें। मोदक का भोग लगाएं। 

गणेश जी के मंत्र ॐ गं गणपतये नम: का जप करें तथा घी का दीया जलाएं। 

भक्तों को इस दिन गणेश जी की आरती भी करनी चाहिए- 

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।

गणेश जी की पूरी आरती करें. फिर उन्हें प्रसाद अर्पित करें। शाम के समय चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें. चंद्रमा को अर्घ्य देना आवश्यक माना गया है। माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से स्त्रियों को संतान की प्राप्ति होती है. ऐसा माना जाता है कि जो बच्चों को गंभीर रोग से पीड़ित होते हैं, उनके लिए यदि मां इस दिन व्रत रखें तो लाभ मिलता है।  वहीं यह व्रत बच्चों को बुरी नजर से भी बचाता है। इसके साथ ही जो मां अपने बच्चों के लिए इस दिन व्रत रखती हैं,  वे बच्चे जीवन में कई तरह के संकटों से दूर रहते हैं। मां द्वारा रखा जाने वाला यह व्रत बच्चों की शिक्षा में आने वाली बाधा को भी दूर करने वाला माना गया है। संतान पर भगवान गणेश की कृपा और आर्शीवाद बना रहता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और चंद्रमा उदय होने पर व्रत समाप्त किया जाता है। हालांकि इस साल चतुर्थी पर कोई चंद्रोदय नहीं है। इस वजह से मुहूर्त के अनुसार व्रत रखा जाएगा।
        
गुरमीत बेदी 
gurmitbedi@gmail.com


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Content Writer

Jyoti

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