कर्म ही सृष्टि का आधार है, बैंक बैलेंस कभी कम नहीं होगा

punjabkesari.in Wednesday, Apr 06, 2016 - 11:35 AM (IST)

जीवन एक ‘प्रवाह’ है और थम जाना मृत्यु। जो हमें इस सृष्टि से प्राप्त हुआ है, उसे वापस इस सृष्टि को लौटाने से ही हमारी  आत्मिक और भौतिक उन्नति संभव है। यह न भूलें की दूषित से दूषित जल भी प्रवाहित होने से स्वच्छ हो जाता है और शुद्ध जल भी ठहरने पर दूषित। इसलिए, जो मिला है उसे आगे बांटे योग ही प्रकृति है और प्रकृति ही योग। यदि आप प्रकृति के विरुद्ध जाएंगे तो वह भी आपके विरुद्ध होगी। फिर भला दोनों के बीच सामंजस्य कैसे होगा ?

  
उदाहरण के तौर पर, नवजात शिशु जब सांस लेते हैं तो उनका पेट फूलता है और सांस छोड़ने पर सिकुड़ता है, किन्तु जब हम बड़े हो जाते हैं तो हमें सिखाया जाता है कि सीना बाहर और पेट अंदर अर्थात जब हम सांस भरते हैं तो पेट सिकुड़ता है और सांस छोड़ने पर फैलता है। परिणामस्वरूप, प्राकृतिक रूप से सांस न लेने के कारण हमारे शरीर में असंतुलन आ जाता है और अनेक रोग घर कर जाते हैं। 
 
 
कर्म ही सृष्टि का आधार है तथा कर्म विधान ही इसे नियंत्रित करता है। एक मनुष्य जो भी कर्म करता है, चाहे सकारात्मक या नकारात्मक, उस कर्म का फल तो उसे भोगना ही पड़ता है। योग के मार्ग पर, एक मनुष्य सबसे पहले स्वयं को जानने का प्रयास करता है। धीरे-धीरे उसकी मूल प्रकृति प्रकट होने लगती है और वह आसपास के लोगों और अन्य प्राणियों के प्रति संवेदनशील होने लगता है।
 
 
यदि कोई मनुष्य किसी पर पत्थर फेंकता है, किसी के साथ छल करता है, किसी पर हंसता है तो यकीन कीजिए उसके साथ भी ऐसा ही होगा, उससे बचने का कोई विकल्प नहीं है। जब कोई किसी को चोट या पीड़ा पहुंचाता है तो उस कर्म से एक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा इस सृष्टि में उन्मुक्त हो जाती हैं और उस की एक विपरीत प्रतिक्रिया फलित होती है। वह विपरीत प्रतिक्रिया एक कर्मफल के रूप में उसी मनुष्य तक वापस पीड़ा के रूप में पहुंच जाती है जो कभी उसने किसी को पहुंचाई थी। 
 
 
यदि किसी ने एक साधारण आत्मा के साथ कुछ गलत किया तो उसका प्रभाव करने वाले पर थोड़ा कम होगा किन्तु एक पवित्र आत्मा के साथ किए गए नकारात्मक कर्म का परिणाम करने वाले को कई हज़ार गुना भोगना पड़ता है। अपने प्रत्येक सुख या भोग के रूप में मनुष्य इस सृष्टि से कुछ लेता है और सीधी सी बात है, यदि कुछ लिया है तो कुछ देना भी पड़ता है। मुफ्त में कुछ भी उपलब्ध नहीं है। 
 
 
जो शक्ति इस सृष्टि का सञ्चालन कर रही है, वह एक सुपर-कंप्यूटर की तरह है। उसके पास हर किसी का और हर चीज़ का लेखा-जोखा है। आवश्यकता से अधिक लेते ही  किसी भी रूप में उसे हमें चुकाना पड़ता है। यदि आपको किसी वस्तु की आवश्यकता है तो उसको आगे बाटें। यदि आप सौ लोगों का हित करते हैं तो उसका हज़ार गुना हित आपके साथ होगा। यदि आप भूखे गरीब लोगों को भोजन खिलाते हैं, तो आपका बैंक बैलेंस कभी कम नहीं होगा। अगर आप बीमारों की सहायता करते हैं, तो आप स्वयं कभी बीमार नहीं होंगे। यदि आप लोगों को शिक्षा देते हैं तो आपके पास विद्या की कभी कमी नहीं होगी। आप जो देंगे वह कई गुना आपको प्राप्त होगा। यही नियम हमारे जीवन को पूरी तरह से नियंत्रित करते हैं, यही विधि का विधान है।

 योगी अश्विनी  

सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News