सरकारी के मुकाबले 7 गुना ज्यादा महंगा है प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराना
punjabkesari.in Sunday, Nov 24, 2019 - 11:39 AM (IST)
नई दिल्लीः निजी अस्पतालों में इलाज कराना कितना महंगा होता है इससे हर कोई वाकिफ है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी अस्पतालों के मुकाबले निजी अस्पतालों में इलाज कराना करीब 7 गुना अधिक महंगा है। रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी अस्पताल में इलाज कराने का औसत खर्च 4,452 रुपए है, जबकि निजी अस्पतालों में यह खर्च 31,845 रुपए के आसपास है। हालांकि इस रिपोर्ट में प्रसव के मामलों पर खर्च के आंकड़े शामिल नहीं किए गए हैं।
क्या कह रहे यह आंकड़े
NSO की रिपोर्ट जुलाई-जून 2017-18 की अवधि के सर्वेक्षण पर आधारित है। शहरी क्षेत्र में सरकारी अस्पतालों में खर्च करीब 4,837 रुपए जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 4,290 रुपए रहा। वहीं निजी अस्पतालों में यह खर्च क्रमश: 38,822 रुपए और 27,347 रुपए था। ग्रामीण क्षेत्र में एक बार अस्पताल में भर्ती होने पर परिवार का औसत खर्च 16,676 रुपए रहा। जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 26,475 रुपए था।
1 लाख से अधिक परिवारों के बीच हुआ सर्वेक्षण
यह रिपोर्ट 1.13 लाख परिवारों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। इससे पहले इस तरह के तीन सर्वेक्षण 1995-96, 2004 और 2014 में हो चुके हैं। अस्पताल में भर्ती होने वाले मामलों में 42 प्रतिशत लोग सरकारी अस्पताल का चुनाव करते हैं। जबकि 55 प्रतिशत लोगों ने निजी अस्पतालों का रुख किया। गैर-सरकारी अस्पतालों में भर्ती होने वालों का अनुपात 2.7 प्रतिशत रहा।
यह है प्रसव के लिए अस्पताल का खर्च
प्रसव के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर ग्रामीण इलाकों में परिवार का औसत खर्च सरकारी अस्पतालों में 2,404 रुपए और निजी अस्पतालों में 20,788 रुपए रहा। वहीं शहरी क्षेत्रों में यह खर्च क्रमश: 3,106 रुपए और 29,105 रुपए रहा। रिपोर्ट के अनुसार देश में 28 प्रतिशत प्रसव मामलों में ऑपरेशन किया गया। सरकारी अस्पतालों में मात्र 17 प्रतिशत प्रसव के मामलों में ऑपरेशन किया गया और इनमें 92 प्रतिशत ऑपरेशन मुफ्त किए गए। वहीं निजी अस्पताओं में 55 प्रतिशत प्रसव के मामलों में ऑपरेशन किया गया और इनमें केवल एक प्रतिशत ऑपरेशन मुफ्त किए गए।
प्रति व्यक्ति औसत आय 79,882 रुपए
बात अगर कमाई की करें तो अपने देश में प्रति व्यक्ति औसत आय 79,882 रुपए है। केंद्रीय सांख्यिकी मंत्री विजय गोयल ने अगस्त महीने में इसकी जानकारी सदन में दी थी। अगस्त महीने में एक रिपोर्ट सैलरी को लेकर आई थी, जिसके मुताबिक 45 फीसदी रेग्युलर वर्कर्स को प्रतिमाह 10 हजार से कम सैलरी मिल रही है। 12 फीसदी को तो 30 दिनों की मेहनत के बदले 5 हजार रुपए से भी कम मिलते हैं।