भारतीय कामगारों को बड़ा झटका देगा सऊदी अरब

punjabkesari.in Friday, Aug 25, 2017 - 10:25 AM (IST)

मुंबई: सऊदी अरब की संशोधित निताकत (सऊदीकरण) स्कीम वहां रोजगार की तलाश में गए भारतीयों को जोरदार झटका देगी। नई योजना के तहत सितम्बर, 2017 से सऊदी अरब की कुछ कंपनियां ही विदेशी कामगारों को अपने यहां नौकरी पर रखने के लिए नए ब्लॉक वीजा का आवेदन कर पाएंगी। इनमें वही कंपनियां आएंगी जिन्होंने अपने यहां सऊदी इम्प्लाइज की संख्या और अन्य मानदंडों के आधार पर हाई ग्रेड्स हासिल किया है। लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में बताया गया था कि साल 2016 में सऊदी अरब में करीब 25 लाख भारतीय काम कर रहे थे। हालांकि भारतीयों का पलायन कम हो रहा है। साल 2016 में सऊदी अरब ने सिर्फ 1.65 लाख भारतीयों को ही आने की अनुमति दी थी जो साल 2015 के मुकाबले 46 प्रतिशत कम है। 2016 में भारत के जिन राज्यों से ज्यादा लोग सऊदी अरब गए थे, उनमें उत्तर प्रदेश, पं. बंगाल, बिहार और केरल टॉप पर थे।

2011 के मध्य में लागू किया गया निताकत सिस्टम 
सऊदी अरब में निताकत सिस्टम सबसे पहले साल 2011 के मध्य में लागू किया गया। इसके तहत इम्प्लॉयरों को चार केटेगरीज में बांट दिया गया है। प्लैटिनम, ग्रीन इसकी भी तीन कैटेगरीज हैं-हाई, मीडियम और लो, यैलो और रैड। प्लैटिनम कैटेगरी में आने वाली कंपनियों में आम तौर पर 40 प्रतिशत या इससे ज्यादा स्थानीय कर्मचारी होते हैं।

कंस्ट्रक्शन और हॉस्पिटैलिटी सैक्टर्स में भारतीयों की तादाद ज्यादा
सऊदियों को रोजगार के ज्यादा मौके उपलब्ध कराने के मकसद से तैयार संशोधित निताकत स्कीम के दायरे में 6 या 6 से ज्यादा कर्मचारियों वाली प्राइवेट कंपनियां आ जाएंगी जबकि पहले यह सीमा 10 कर्मचारियों की थी। प्लैटिनम और हाई ग्रीन कैटेगरीज में आने वाली ऑर्गेनाइजेशंस ही नए ब्लॉक वीजा अप्लाई कर सकेंगी। कंस्ट्रक्शन और हॉस्पिटैलिटी सैक्टर्स में भारतीय मजदूर भरे पड़े हैं जिन्हें नई संशोधित स्कीम से बड़ा झटका लगने वाला है।
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लाखों कामगारों पर मंडराया खतरा
एक इमीग्रेशन एक्सपर्ट ने कहा कि ज्यादातर इंडियन वर्कर्स मजदूरी करते हैं। भारतीयों को नौकरी पर रखने वाली ऑर्गेनाइजेशंस मसलन कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्टर्स या रैस्ट्रॉन्ट्स प्लैटिनम या हाई ग्रीन कैटेगरी में नहीं आएंगे। इसके अतिरिक्त मुश्किल यह है कि लो कैटेगरीज में आने वाली कंपनियों में जो भारतीय काम कर रहे हैं वह मौजूदा कंपनी छोड़कर दूसरी में नहीं जा सकेंगे। इस पर काफी उलझन है कि आखिर इन सैक्टरों में जितने लोगों की जरूरत होगी, उनकी भविष्य में भरपाई कैसे होगी।


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