New Tax Rules: टैक्सपेयर के लिए राहत! अब हो सकेगा डेढ़ करोड़ रुपए से ज्यादा तक का ब्याज माफ, जानिए नियम
punjabkesari.in Wednesday, Nov 06, 2024 - 10:38 AM (IST)
बिजनेस डेस्कः इनकम टैक्स भरने वालों के लिए राहत की खबर है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) ने टैक्स डिमांड नोटिस के अनुसार, यदि देय टैक्स का भुगतान नहीं किया गया है, तो इस पर लगने वाले ब्याज में छूट देने का निर्णय लिया है। यह छूट कुछ विशेष शर्तों के साथ लागू होगी। इसके तहत टैक्स अधिकारी अब टैक्स पर लगने वाले ब्याज को कम या पूरी तरह से माफ करने का अधिकार प्राप्त कर सकते हैं।
CBDT ने इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 220(2) के अंतर्गत भुगतान किए गए या देय ब्याज को घटाने या माफ करने के लिए टैक्स अधिकारियों के लिए मौद्रिक सीमा निर्धारित करने का आदेश 4 नवंबर को एक सर्कुलर के माध्यम से जारी किया। यह आदेश इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 119(1) के तहत जारी किया गया है।
कितना लगता था ब्याज?
I-T एक्ट के सेक्शन 220(2) के तहत अगर टैक्सपेयर सेक्शन 156 के तहत डिमांड नोटिस में दर्ज टैक्स न चुकाए तो उसे उस रकम पर देरी वाले हर महीने के लिए 1 प्रतिशत महीने की साधारण दर से ब्याज चुकाना होता है। सेक्शन 220(2A) के तहत प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर या चीफ कमिश्नर या प्रिंसिपल कमिश्नर या कमिश्नर रैंक के अधिकारियों को यह अधिकार है कि वे चुकाए जाने वाले ब्याज की रकम घटा दें या उसे माफ कर दें।
कितनी रकम कर सकेंगे माफ?
CBDT ने सर्कुलर में ब्याज की रकम की सीमा की जानकारी दी, जिसे माफ करना या घटा सकना इन अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में होगा।
- प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर रैंक के अधिकारी डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक के देय ब्याज को माफ करने या घटाने के बारे में फैसला कर सकते हैं।
- देय ब्याज 50 लाख से डेढ़ करोड़ रुपए तक हो, तो चीफ कमिश्नर रैंक के अधिकारी फैसला कर सकते हैं।
- देय ब्याज 50 लाख रुपए तक हो तो इसे घटाने या माफ करने के बारे में प्रिंसिपल कमिश्नर या कमिश्नर रैंक के अधिकारी निर्णय कर सकते हैं।
इन शर्तों का रखना होगा ध्यान
सर्कुलर में यह भी बताया गया है कि किन स्थितियों में सेक्शन 220(2A) के तहत ये अधिकारी फैसला कर सकते हैं। इसके मुताबिक, पहली स्थिति यह है कि अगर ब्याज की रकम ऐसी हो, जिसे चुकाने में बहुत मुश्किल हुई हो या होने वाली हो।
दूसरी स्थिति यह है कि अगर शख्स ऐसी वजह के चलते ब्याज नहीं चुका सका, जो उसके कंट्रोल में नहीं थी। तीसरी स्थिति यह है कि टैक्सपेयर ने किसी भी बकाया रकम की रिकवरी या असेसमेंट से जुड़ी जांच में अधिकारियों से सहयोग किया हो।