क्या हसीना की भारत यात्रा दौरान ‘तीस्ता जल संधि’ पर कोई फैसला हो सकेगा

punjabkesari.in Tuesday, Apr 04, 2017 - 10:29 PM (IST)

जब नरेन्द्र मोदी ने 3 वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री पद संभाला तो उन्होंने ‘पहले पड़ोसी’ की अवधारणा का अनुपालन करते हुए अपने शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी देशों के राष्ट्र प्रमुखों को आमंत्रित करके हर किसी को आश्चर्यचकित कर दिया था। अधिकतर पड़ोसी देशों की यात्रा करके उन्होंने इसी सिलसिले को आगे बढ़ाया और पड़ोसियों के साथ रिश्ते सुधारे। साढ़े 7 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 7 से 10 अप्रैल तक भारत यात्रा पर आ रही हैं। हसीना और मोदी दोनों के लिए ही आस-पड़ोस के सुधरे हुए संबंधों को प्रदर्शित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण यात्रा होगी। 

फिर भी जिस तीस्ता जल संधि में हसीना रुचि ले रही हैं शायद वह अभी एजैंडे में शामिल नहीं होगी। हालांकि कुछ आशावादी लोग हैरानीजनक घटनाक्रम की उम्मीद लगाए हुए हैं और जल सुरक्षा को लेकर कोई बातचीत हो सकती है। यदि यह मुद्दा हल हो जाता है तो हसीना के हाथ मजबूत हो जाएंगे क्योंकि विपक्ष उनकी यह कहकर आलोचना कर रहा है कि 2011 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ढाका यात्रा के दौरान भी वह जल संधि पर हस्ताक्षर करवाने  में विफल रही थीं। 

उस समय तीस्ता जल संधि बिल्कुल हस्ताक्षरित होने के कगार पर थी लेकिन ऐन अंतिम पलों में पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐसा धोबी पटका मारा कि मनमोहन सिंह हाथ मलते रह गए। इस निराशा के बावजूद, ढाका के सरकारी हलकों में मनमोहन सिंह की यात्रा को मील के पत्थर के रूप में देखा गया था। 2015 में मोदी की ढाका यात्रा में इन संबंधों को और भी आगे बढ़ाया गया था। 

नई दिल्ली के साथ लगभग सभी वार्ताओं में ढाका ने बार-बार तीस्ता मुद्दे को उठाया है। भारत लगातार यह प्रतिक्रिया व्यक्त करता आया है कि ममता बनर्जी के साथ ‘आंतरिक स्तर पर वार्ता’ करने के बाद इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिए जाएंगे। बेशक संविधान की धारा 253 केन्द्र को किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संधि को अंजाम देने की शक्ति प्रदान करती है। फिर भी केन्द्र प्रदेश के लोगों की चिंताओं की अनदेखी नहीं कर सकता। ममता बनर्जी उत्तर बंगाल के 5 जिलों के हितों की रक्षा करना चाहती है क्योंकि यदि बंगलादेश को अधिक पानी दिया जाता है तो ये जिले बुरी तरह प्रभावित होंगे। अभी तक इस मामले में कोई सहमति नहीं बन पाई है। यही दुविधा तीस्ता जल संधि को साकार नहीं होने दे रही। 

पहले तो ममता ने अपना रुख कुछ नरम किया था और 2015 में संसद में भूमि सीमा संधि की पुष्टि का समर्थन किया था जोकि 41 वर्षों से हस्ताक्षरित नहीं हो सकी थी। इसके अलावा वह मोदी के साथ ढाका यात्रा पर भी गई थीं। केन्द्र सरकार के अनुरोध पर उन्होंने शेख हसीना से भी फरवरी 2015 में मुलाकात की थी और हसीना ने उनका बहुत शाहाना स्वागत किया था। ममता ने बंगलादेश के अधिकारियों के साथ वायदा किया था कि वह समर्थक रुख अपनाएंगी लेकिन वापस लौटने के बाद उनका नरम रुख पता नहीं कहां गायब हो गया। 

आखिर ममता तीस्ता जल संधि में अड़ंगा क्यों लगा रही हैं? उनकी अपनी प्रादेशिक मजबूरियां हैं और वह प्रदेश के हितों के विरुद्ध नहीं जा सकतीं। उनका मत है कि सिक्किम में बनाई गई जल विद्युत योजना के कारण तीस्ता का जल प्रवाह कमजोर हो गया है और बंगाल में प्रवेश करने के स्थान पर पहले की तुलना में अब कम पानी उपलब्ध होता है। इसीलिए ममता ने पश्चिमी बंगाल और नई दिल्ली के बीच त्रिपक्षीय बैठक का प्रस्ताव रखा है। 

इसके अलावा ममता मोदी सरकार द्वारा नारदा और शारदा घोटालों में अपनाई गई नीतियों से काफी व्यथित हैं क्योंकि इनमें उनकी पार्टी के नेता संलिप्त हैं जिन्हें गिरफ्तार भी किया गया है। ऊपर से उन्हें बंगाल के ऋण बोझ के मद्देनजर केन्द्र सरकार से 10,000 करोड़ रुपए के भारी-भरकम वित्तीय पैकेज की जरूरत है। सबसे बढ़कर तो ममता बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं। हाल ही में एक टी.वी. चैनल के साथ बातचीत के दौरान कड़ा रुख अपनाते हुए उन्होंने कहा : ‘‘लेकिन मैं केवल इतना ही कह सकती हूं कि अब तक मेरे साथ किसी मुद्दे पर विचार-विमर्श नहीं किया गया। मुझे किसी प्रकार की वार्ताओं के बारे में लेशमात्र भी भनक नहीं। मैं अपने राज्य के हितों की कीमत पर तीस्ता जल संधि पर मोहर नहीं लगा सकती।’’

शेख हसीना एक विशेष संकेत के रूप में राष्ट्रपति भवन की भी मेहमान बनेंगी जहां राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा उनके सम्मान में दावत दी जाएगी। इसमें ममता के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के उपस्थित रहने की संभावना है। भारत द्वारा बंगलादेश को ढेर सारी वस्तुओं पर सीमा शुल्क की छूट दिए जाने के कारण द्विपक्षीय व्यापार एवं ऊर्जा सहित अनेक क्षेत्रों में भारत-बंगलादेश सहयोग मजबूत हुआ है।

ऊर्जा सुरक्षा बंगलादेश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत न केवल बिजली पैदा करने में उसे सहायता दे रहा है बल्कि 600 मैगावाट बिजली भी उसे निर्यात की जा रही है। साथ ही भारत ने ढाका को यह वचन दिया है कि यदि उसे अधिक बिजली की जरूरत पड़ी तो इसका निर्यात और बढ़ा दिया जाएगा। भूमि सीमा संधि (एल.बी.ए.) की बदौलत एक-दूसरे देश में घिरे हुए क्षेत्रों की समस्या हल कर ली गई। 

ढाका की ओर से हसीना पाकिस्तानी आई.एस.आई. की भारत में जाली करंसी स्मगल करने, नशीले पदार्थों की तस्करी और सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सहयोग कर रही हैं। गत नवम्बर में उन्होंने सार्क (दक्षेश) फोरम में हिस्सा लेने से इंकार करके पाकिस्तान को अलग-थलग करने के भारत के प्रयासों के प्रति भी समर्थन का रुख अपनाया था। अब उनके इस अहसान का सिला चुकाने की भारत की बारी है। 

उपरोक्त चर्चा की रोशनी में शेख हसीना की आगामी भारत यात्रा महत्वपूर्ण है। इसके लिए विदेश सचिव एस. जयशंकर द्वारा पहले ही जमीन तैयार की जा चुकी है जब उन्होंने सीमा सुरक्षा, बिजली, ऊर्जा, जहाजरानी, रेलवेज सहित अनेक मामलों पर द्विपक्षीय सहयोग के क्षेत्रों को चिन्हित किया था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने बंगलादेश को 50 करोड़ डालर ऋण सुविधा की पेशकश की है जोकि भारत द्वारा किसी देश को दी गई अब तक की सबसे बड़ी सहायता राशि है। ढाका के रणनीतिक महत्व के मद्देनजर भारत और बंगलादेश के बीच हसीना की आगामी यात्रा के मौके पर रक्षा मुद्दों से संबंधित 7 एम.ओ.यू. और 2 समझौता पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। 

बंगलादेश में बढ़ते चीनी प्रभाव को लेकर भी भारत चितित है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हाल ही की बंगलादेश यात्रा के दौरान चीन ने ढाका के साथ रणनीतिक सहयोग समझौता किया है और 40 बिलियन डालर निवेश का भी वायदा किया है। हाल ही में इसने बंगलादेश को 2 पनडुब्बियां भी बेची हैं। 2015 में एल.बी.ए. समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत और बंगलादेश के बीच तीस्ता ही एकमात्र विवादित मुद्दा बचा है लेकिन अभी तक इसका कोई हल दिखाई नहीं दे रहा। 

वास्तविकता यह है कि ढाका या दिल्ली में किसी को भी यह उम्मीद नहीं कि हसीना की यात्रा के दौरान तीस्ता संधि पर अंतिम निर्णय हो जाएगा लेकिन कुछ विशेषज्ञों  को उम्मीद है कि आश्चर्यचकित करने वाले घटनाक्रम देखने को मिल सकते हैं लेकिन जो लोग ममता के व्यवहार से परिचित हैं उनका कहना है कि ममता शायद ऐसा आश्चर्यजनक आचरण कदापि नहीं करेंगी।     


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