क्यों जागा राहुल गांधी का ‘हिन्दू प्रेम’

punjabkesari.in Wednesday, Oct 04, 2017 - 01:53 AM (IST)

कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की जननी रही है और मुस्लिम तुष्टीकरण पर सवार होकर सत्ता हासिल भी करती रही है। कांग्रेस की यह राजनीतिक प्रक्रिया सक्रियता के साथ जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक चलती रही। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि मनमोहन सिंह -सोनिया गांधी सरकार में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीतिक प्रक्रिया न केवल तेज थी बल्कि इसको लेकर काफी बवाल भी मचा था। 

उस समय मनमोहन सिंह ने यहां तक कह दिया था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुस्लिम आबादी का है। मुस्लिम तुष्टीकरण को छोड़कर कांग्रेस या फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर हिन्दू तुष्टीकरण की राजनीतिक प्रक्रिया हावी हो जाए तो फिर राजनीतिक तौर पर आश्चर्यचकित करने वाली घटना कैसे और क्यों नहीं मानी जानी चाहिए? इसीलिए राहुल गांधी के सिर पर सवार हिन्दू प्रेम को लेकर भारतीय राजनीति और सोशल मीडिया में काफी चर्चा हो रही है, टीका-टिप्पणी भी हो रही है। टिप्पणी ऐसी हो रही है जिसकी भाषा अस्वीकार है, टिप्पणी में सीमाएं लांघी जा रही हैं, राहुल गांधी को बहुरूपिया कहा जा रहा है, चुनावी बाज कहा जा रहा है, शिकारी कहा जा रहा है। 

सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं को सावधान होने की बात कही जा रही है खासकर सोशल मीडिया में राहुल गांधी के तथाकथित हिन्दू प्रेम की हवा निकालने के लिए, राहुल गांधी के तथाकथित हिन्दू प्रेम की खाट खड़ी करने के लिए तरह-तरह के तथ्य परोसे जा रहे हैं। यू.पी.ए. के 10 साल के शासन काल में राहुल गांधी ने जो-जो हिन्दू विरोधी बातें बोली थीं, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के दंगों के समय के हिन्दू विरोधी बोल के वीडियो भी तेजी से चल रहे हैं। उपर्युक्त तथ्य और राजनीतिक प्रक्रियाएं यह बताती हैं कि राहुल गांधी हिन्दू प्रेम को लेकर जो तत्परता दिखा रहे हैं, वह घाटे का भी राजनीतिक सौदा हो सकता है? 

राहुल गांधी ने हिन्दू प्रेम प्रदर्शित करने और चुनावी राजनीतिक लाभ उठाने के लिए उस प्रदेश को चुना है जो हिन्दूवाद की प्रयोगशाला है, वह प्रदेश हिन्दुत्व के संरक्षणकत्र्ता के तौर पर हमेशा खड़ा रहता है, उस प्रदेश को देश के अन्य प्रदेशों की सोच से कोई चिंता नहीं होती है। वह प्रदेश शेष देश और दुनिया की आलोचनाओं से डरता नहीं है, नुक्सान होने की उसको चिंता होती नहीं है। उस प्रदेश का नाम है- गुजरात। गुजरात दंगों के बाद गुजरात की हिन्दुत्व प्रेम से भरी हुई आबादी ने देश-दुनिया की आलोचनाओं की परवाह किए बिना संघ और भाजपा को देश की राजनीति का सिरमौर बनाया था। नरेन्द्र मोदी गुजरात में 12 सालों तक शासन करने में इसलिए सफल रहे थे कि उनके साथ हिन्दुत्व से भरी हुई आबादी खड़ी थी। इस बात से भी कोई इन्कार नहीं कर सकता है कि गुजरात के हिन्दुत्व की शक्ति पर सवार होकर ही नरेन्द्र मोदी देश में विख्यात हुए थे और हिन्दू आबादी के प्रेरणास्रोत बने हुए थे। नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना भी हिन्दुत्व की शक्ति रही है। 

कांग्रेस ने हिन्दुत्व की शक्ति से राजनीतिक प्रतिस्पर्धा करने की जो राजनीतिक प्रक्रिया चलाई थी, वह भी मुस्लिम तुष्टीकरण पर आधारित थी। कांग्रेस ने यह सोचा था कि मुस्लिम आबादी के पक्ष में खड़े होकर गुजरात में सत्ता पाई जा सकती है, नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटाया जा सकता है। गुजरात दंगों की मुस्लिम पीड़िताओं के साथ कांग्रेस ही खड़ी थी, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि गुजरात दंगों की मुस्लिम पीड़िताओं की सहायता के लिए कांग्रेस ने काफी कुछ किया था, तीस्ता सीतलवाड़, हर्षमंदर जैसे सैंकड़ों एन.जी.ओ. और मुस्लिम परस्त संगठनों को यू.पी.ए. की मनमोहन-सोनिया सरकार ने सहायता दिलाई थी, विदेशों से भी वित्त पोषण कराया गया था। थाने से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हिन्दुओं को खलनायक घोषित कराने की कांग्रेस की कोशिश कभी रुकती नहीं थी। पर गुजरात दंगों में जो हिन्दू पीड़ित थे, गोधरा कत्लेआम में जो हिन्दू मारे गए थे, उनके परिवारों की सहायता से कांग्रेस दूर थी। इतना ही नहीं, कांग्रेस के नेता और कांग्रेस की सहायता पर खड़े तीस्ता सीतलवाड़, हर्षमंदर जैसे अनेकानेक लोग गोधरा कांड में मारे गए कारसेवकों को ही खलनायक और दंगाई ठहराने की राजनीति में सक्रिय थे। 

हिन्दुत्व की शक्ति का एहसास कांग्रेस को हो गया है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी यह मान चुके हैं कि हिन्दुत्व का विरोध और हिन्दुत्व का अपमान राजनीतिक तौर पर घाटे का सौदा है। इसीलिए एक चुनावी नीति के तहत उदार हिन्दुत्व की नीति की खोज की गई है और राहुल गांधी पर थोपी गई है। राहुल गांधी को यह समझाया गया है कि उदार हिन्दुत्व को अपनाकर नरेन्द्र मोदी को हराया जा सकता है, नरेन्द्र मोदी को उसी गुजरात में हराया जा सकता है जिस गुजरात से उन्होंने अपनी राजनीतिक शक्ति तैयार की थी। इसीलिए राहुल गांधी अब नरेन्द्र मोदी को विनाशक या संहारक नहीं कह रहे हैं। 

मोदी को विनाशक या संहारक कहने का अर्थ यह होता है कि आप गुजरात दंगों को लेकर हिन्दुओं को अपमानित कर रहे हैं और  सिर्फ हिन्दुओं को ही अपमानित कर कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। अपने हिन्दू प्रेम को साबित करने के लिए द्वारका के कृष्ण मंदिर में जाकर राहुल गांधी पूजा-अर्चना करते हैं, चुनाव से पूर्व की सभाओं में जाने पर तिलक लगा रहे हैं, उन्हें आरती उतरवाने में भी परहेज नहीं है। गुजरात प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को काफी पहले से ऐसी राजनीतिक प्रक्रियाओं की जरूरत और इच्छा थी।

अप्रत्यक्ष बातचीत में कांग्रेस के नेता यह कहते थे कि वे गुजरात में भाजपा और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ हवा बनाते हैं, पर केन्द्रीय नेतृत्व सब कुछ चौपट कर देता था। पर अतीत से राहुल गांधी कैसे छुटकारा पा सकते हैं। उनके विरोधी हिन्दुत्व प्रेम के प्रश्न पर उन्हें जो बहुरूपिए की संज्ञा दे रहे हैं, उसका राहुल गांधी कैसे जवाब देंगे? अब यहां प्रश्न उठता है कि राहुल गांधी का अतीत क्या है? राहुल गांधी का अतीत हिन्दू विरोधी का है। उन्होंने अमरीकी प्रतिनिधि से कहा था कि देश को मुस्लिम आबादी से नहीं, बल्कि हिन्दू आबादी से खतरा है। वे मुजफ्फरनगर दंगों में मुस्लिम पीड़ितों से तो मिले थे, पर हिन्दू पीड़ितों से मिलना इन्हें स्वीकार नहीं हुआ था। कांग्रेस के 10 साल के राज में हिन्दू आतंकवाद की कहानी थोपी गई थी। 

कांग्रेस के नेता पी. चिदम्बरम और सुशील कुमार शिंदे ने सरेआम कहा था कि हिन्दू आतंकवाद से देश को खतरा है। इतना ही नहीं, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर कांग्रेस के इशारे पर उत्पीडऩ और ज्यादतियां हुई थीं। पुलिस अत्याचार-उत्पीडऩ से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का आधा शरीर अपंग हो गया है। राहुल गांधी और कांग्रेस आज भी गौहत्या पर हिन्दुत्व के आलोचक हैं और गौरक्षकों को हत्यारा बताने की इनकी राजनीति बंद ही नहीं होती है। गौरी लंकेश जैसे हिन्दू विरोधी चेहरे कांग्रेस और राहुल गांधी के प्रेरक और प्रेरणास्रोत हो जाते हैं। सोशल मीडिया में  ये सभी बातें जोर-शोर से उठ रही हैं और राहुल गांधी-कांग्रेस को खलनायक और बहुरूपिए घोषित करने की पूरी कोशिश जारी है। 

वास्तव में कांग्रेस यह जान गई है कि मुस्लिम तुष्टीकरण से सत्ता मिलने वाली नहीं है। गुजरात में कांग्रेस इस नीति के साथ कभी भी सत्ता में नहीं लौट सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई थी। अपनी हार पर कांग्रेस ने एक कमेटी बनाई थी। ए.के. एंटनी के नेतृत्व में बनी उस कमेटी ने जांच निष्कर्ष दिया था कि कांग्रेस की छवि हिन्दू विरोधी और मुस्लिम समर्थक की बन गई थी, इसलिए हिन्दू आबादी कांग्रेस से दूर हो गई थी। पर राहुल गांधी अपने अतीत को कैसे छिपाएंगे? यक्ष प्रश्न यही है!


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