कश्मीर और गुलाम कश्मीर में अंतर क्यों?
punjabkesari.in Thursday, May 16, 2024 - 04:38 AM (IST)
अभी कश्मीर से दो खबरें सामने आईं। लोकसभा चुनाव के दौरान श्रीनगर में ढाई दशक में पहली बार सर्वाधिक 38 प्रतिशत मतदान हुआ। वहीं पाकिस्तान के कब्जे वाले गुलाम कश्मीर में हजारों लोग दो वक्त की रोटी के लिए गोलियों का सामना करने को तैयार हैं और पाकिस्तान सरकार भी उन्हें आटे के बदले मौत देने में संकोच नहीं कर रही। दोनों घटनाएं देखने में मामूली लग सकती हैं, परंतु यह अपने भीतर एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश समेटे हुए हैं। खंडित भारत आज जो कुछ भी है, वह अपनी बहुलतावादी हिंदू संस्कृति के कारण है। वहीं गुलाम कश्मीर की बदहाली और पाकिस्तान के विनाश के लिए उसकी ‘काफिर-कुफ्र’ प्रेरित कट्टरवादी सोच जिम्मेदार है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गुलाम कश्मीर में आटे की आसमान छूती कीमत और बिजली की दरों में वृद्धि के खिलाफ आंदोलित लोगों पर पाकिस्तानी रेंजरों ने गोलियां बरसा दीं। बीते 9 माह से वे दमन सहते हुए रह-रहकर धरना-प्रदर्शन कर रहे थे, परंतु सरकार की नजरअंदाजी के बाद इसने 10 मई को हिंसक रूप ले लिया। हजारों लोग ‘आजादी-आजादी’ के नारे लगाते हुए पाकिस्तान सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतर आए। इस दौरान मीरपुर-मुजफ्फराबाद आदि क्षेत्रों में आंदोलन को कुचलने हेतु तैनात पाकिस्तानी रेंजरों को स्थानीय लोगों ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा और उनके वाहन को फूंक दिया। इस जनाक्रोश को थामने के लिए शहबाज शरीफ सरकार ने 23 अरब पाकिस्तानी रुपए का सबसिडी पैकेज गुलाम कश्मीर के लिए जारी किया था। चूंकि यह मदद ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ के समान थी, इसलिए इसे आंदोलनकारियों ने अस्वीकार कर दिया।
स्पष्ट है कि गुलाम कश्मीर के लोगों को अब इस्लाम के नाम पर अधिक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। वे देख रहे हैं कि समय बीतने के साथ उनकी सामाजिक-आॢथक स्थिति लगातार गिरती जा रही है। दशकों के शोषण के बाद वहां न तो बिजली-सड़क-पानी की समुचित व्यवस्था है और न ही जिंदा रहने के लिए पर्याप्त अनाज। इसकी तुलना में जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों का जीवन स्तर धारा 370-35ए के संवैधानिक क्षरण के बाद निरंतर सुधर रहा है। इस कारण उनका शासन-प्रशासन पर विश्वास भी बढ़ रहा है। 18वें आम चुनाव के चौथे चरण (13 मई) में श्रीनगर सीट पर 1996 के बाद बिना किसी अप्रिय घटना के पहली बार सर्वाधिक मतदान इसका प्रमाण है। यह सकारात्मकता घाटी में बहती विकास की बयार की देन भी है। जम्मू-कश्मीर की जी.डी.पी. वर्ष 2018-19 में 1.6 लाख करोड़ रुपए थी, जो बढ़कर 2.64 लाख करोड़ रुपए हो गई है। दिसंबर 2023 तक क्षेत्र का जी.एस.टी. राजस्व 6018 करोड़ था, जो वित्त वर्ष 2022-23 की अवधि से 10.6 प्रतिशत अधिक है।
जम्मू-कश्मीर की नई औद्योगिक नीति (2019) के अंतर्गत, देश-विदेश से 90 हजार करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव आ चुके हैं, जिन्हें जमीनी स्तर पर उतारने हेतु दशकों से लंबित आधारभूत सुधारों के साथ 46 नए औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण और अन्य अवरोधकों को दूर किया जा रहा है। पर्यटन जम्मू-कश्मीर की जी.डी.पी. का प्रमुख आधार है। वर्ष 2023 में यहां 2 करोड़ से अधिक पर्यटक (विदेशी सहित) आए थे, जिनके इस वर्ष और अधिक बढऩे की संभावना है। देर रात तक लोग प्रसिद्ध शिकारा की सवारी का आनंद ले रहे हैं। घाटी में रात्रि बस सेवा बहाल की गई है, तो स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालय भी सुचारू रूप से चल रहे हैं। दुकानें भी लंबे समय तक खुली रहती हैं। तीन दशक से अधिक के अंतराल के बाद नए-पुराने सिनेमाघर भी सुचारू रूप से संचालित हो रहे हैं। इस परिवर्तन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इस केंद्र शासित प्रदेश के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी प्रशासनिक कुशलता का परिचय दिया है। स्वतंत्रता के बाद यह पहली बार है, जब जम्मू-कश्मीर प्रशासन का शीर्ष नेतृत्व भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त है। स्वाभाविक है कि इससे स्थानीय कश्मीरी संतुष्ट हैं।
ये सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि भारत 2014 से आमूल-चूल परिवर्तन का साक्षी बन रहा है। कई प्रकार की वैश्विक उथल-पुथल के होते हुए भी भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014-2024 के बीच 5 करोड़ 41 लाख रोजगारों का सृजन हुआ है। लद्दाख से कन्याकुमारी और कच्छ से लेकर कामरूप तक मोदी सरकार विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के अंतर्गत पिछले 10 वर्षों में लगभग 90 करोड़ लाभाॢथयों को बिना किसी जाति, पंथ, मजहबी और राजनीतिक भेदभाव के 34 लाख करोड़ रुपए डी.बी.टी. के माध्यम से वितरित कर चुकी है। परंतु कश्मीर की खूबसूरती, कश्मीरी पंडितों के बिना अधूरी है। जब तक यहां मूल संस्कृति के ध्वजवाहक लौटते नहीं, तब तक घाटी सूनी है।
गुलाम कश्मीर की दयनीय स्थिति, पाकिस्तान की बदहाली का प्रतिङ्क्षबब मात्र है। सामान्य पाकिस्तानी बीते कई वर्षों से कमरतोड़ महंगाई और लकवाग्रस्त आर्थिक नीतियों से जूझ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) ने 3 अरब डॉलर के बेलआऊट पैकेज की स्वीकृति देते समय जो कड़ी शर्तें लगाई थीं, उसके कारण वहां पहले व्याप्त नकदी संकट, भारी-भरकम कर्ज और मुद्रास्फीति में अत्यधिक वृद्धि हो गई है। एक समय पाकिस्तान में महंगाई दर 38 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। वहां स्थिति कितनी विकराल है, यह दर्जनभर अंडों के दाम 400 रुपए, 600 रुपए किलो चिकन, दूध 200 रुपए/लीटर, चावल 300 रुपए किलो, टमाटर 200 रुपए किलो और प्याज 250 रुपए किलो की दर से स्पष्ट है।
वर्ष 2022 से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध से वैश्विक खाद्य और ईंधन की कीमतें बढऩे के बाद पाकिस्तानी विदेशी मुद्रा भंडार अत्यधिक दबाव में है। इसी तरह का वित्तीय असंतुलन श्रीलंका को कंगाल कर चुका है। अब अधिक राजस्व पाने हेतु पाकिस्तान सरकार ने अपने नागरिकों पर कर का भारी बोझ डाल दिया है। जब भीषण महंगाई के कारण लोग टैक्स जमा नहीं कर पा रहे हैं, तो पाकिस्तानी सरकार दूरसंचार कंपनियों के साथ मिलकर टैक्स न जमा करने वाले उपभोक्ताओं के मोबाइल बैलैंस से पैसे काटकर सरकारी खजाना भर रही है। व्यापक रूप से विदेशी सहायता पर निर्भर पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में उसका निजी क्षेत्र आज भी अविकसित है। उसका शेयर बाजार वर्षों से मृत-प्राय: है। आई.एम.एफ. के अनुसार, पाकिस्तान को अगले 5 वर्षों में 123 अरब डॉलर के सकल वित्तपोषण की आवश्यकता है। पी.ओ.के. इसलिए भी अधिक झुलस रहा है क्योंकि फरवरी 2019 में पाकिस्तान समॢथत पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद भारत द्वारा सूखे खजूर, सेंधा नमक, सीमैंट और जिप्सम जैसे पाकिस्तानी उत्पादों पर सीमा शुल्क 200 प्रतिशत करने से पी.ओ.के. में व्यापारियों को भारी क्षति पहुंची है।
पाकिस्तान की तुलना हम उस घर के मालिक से कर सकते हैं, जो अपने पड़ोसी के प्रति वैमनस्य और घृणा से लबालब भरा है। वह मूर्ख मालिक अपने घर को यह सोचकर आग के हवाले कर देता है कि इसके धुएं से उसका पड़ोसी भी परेशान होगा। प्रगति से ध्यान हटाकर स्वयं को इस्लामी आतंकवाद की पौधशाला बनाना और उसी में पनपे जिहादियों द्वारा अपने ही हजारों-लाखों सहबंधुओं को मौत के घाट उतारना इसका प्रमाण है। अब जो पाकिस्तान अपनी कु-नीतियों के कारण पहले ही दिवालिया होने की चौखट पर खड़ा है, वह कैसे अपने कब्जे वाले कश्मीर का भला कर सकता है।-बलबीर पुंज