विधवा क्यों नहीं लगा सकती सिंदूर
punjabkesari.in Monday, Sep 19, 2022 - 05:56 AM (IST)
महिलाओं के लिए सिंदूर सिर्फ एक शृंगार भर नहीं है, बल्कि इसका गहरा सामाजिक और पारिवारिक महत्व भी है। सुप्रीमकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि पति से अलग रहने वाली महिला सिंदूर के सहारे अपना पूरा जीवन बिता सकती है। इस फैसले में कहा गया कि ङ्क्षहदू धर्म में सुहाग और सिंदूर का महत्व है। समाज उन्हें इसी नजरिए से देखता है। फिल्म अभिनेत्री रेखा ने इससे एक कदम आगे बढ़कर महिलाओं की आजादी और रूढि़वादी परंपराओं को तोड़ कर महिलाओं की नई तस्वीर पेश की है। रेखा कई रियलटी शो में मांग में सिंदूर भरे हुए नजर आई।
रेखा के पति व्यवसायी मुकेश अग्रवाल की मौत के बाद भी रेखा का मांग में सिंदूर भरना बताता है कि हर स्त्री को अपनी मर्जी का जीवन जीने का पूरा हक है। उसे भी दूसरों की तरह खुश रहने का हक है। सुप्रीमकोर्ट और रेखा का यह निर्णय उन लाखों विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं के लिए जीवन में भी सजने-संवरने की बहार ला सकता है, जिन्हें समाज में दोयम दर्जे की नजर से देखा जाता है।
भारतीय समाज में मांग में सिंदूर महिलाओं के लिए कहीं न कहीं सामाजिक सुरक्षा का बोध कराता है। विवाहित और दूसरी महिलाओं की पहचान सिंदूर के सहारे ही होती है। इसी से उनके प्रति सोच और व्यवहार में बदलाव पैदा होता है। विवाहित महिलाओं की यह पहचान काफी हद तक उनकी अस्मिता और सुरक्षा से भी जुड़ी हुई है। मांग में सिंदूर भरने वाली महिला को शादीशुदा मानते हुए उन्हें देखने वालों के नजरिए में साफ फर्क देखा जा सकता है। जिस महिला की मांग में सुहाग की यह निशानी होती है, ज्यादातर उन्हें समाज में सुरक्षा और सम्मान मिलता है। इस मामले में तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी परेशानी न सिर्फ घर में बल्कि भी बाहर भी झेलनी पड़ती है।
टटोलने वाले सिंदूर नहीं होने पर महिलाओं की सुरक्षा का अंदाजा लगा लेते हैं। ऐसी महिलाओं के साथ जान-पहचान करने की कोशिश की जाती है। यदि पहले से जान-पहचान हो तो विधवा या तलाकशुदा से फेवर लेने की कोशिश की जाती है। ऐसी महिलाएं कितना भी बचने की कोशिश करें किन्तु घूरती निगाहें उनका पीछा नहीं छोड़तीं। ऐसी महिलाओं के साथ सहानुभूति दिखा कर या फिर मदद के बहाने से उनका सामीप्य प्राप्त करने के प्रयास किए जाते हैं।
विधवा और तलाकशुदा महिलाओं को कार्यस्थल पर भी इसी तरह के उत्पीडऩ का सामना करना पड़ता है। उनके सहकर्मी उनके बारे में पीठ पीछे खराब कमैंट करने से बाज नहीं आते। मौके-बेमौके उनके सामने भी ऐसे कमेंट पास करते हैं, जिन्हें वे अपने घर-परिवार की महिलाओं-लड़कियों के सामने नहीं कर सकते। ऐसे में यदि घर से बाहर निकलने वाली और कार्यस्थल पर जाने वाली महिलाओं के लिए सिंदूर बड़ा सहारा बन जाता है। सिंदूर से पति की मौजूदगी का एहसास ही उन्हें रोज-रोज होने वाले उत्पीडऩ से काफी हद तक बचाता है। केवल पुरुषों का ही नहीं बल्कि वैवाहिक महिलाओं का भी नजरिया विधवा और तलाकशुदा महिलाओं को लेकर अन्य वैवाहिक महिलाओं से भेदभाव भरा होता है।
अमूमन ऐसी महिलाओं को घर-परिवार में किसी कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाता। औपचारिकतावश यदि बुलाया भी जाता है तो महिलाओं को पहले से अंदाजा होता है कि उनके साथ किस तरह का व्यवहार होगा। उनके प्रति भाव-भंगिमाएं बदली हुई होती हैं। लोगों की आंखों से ही उनकी उपेक्षा का अंदाजा हो जाता है। घरेलू कार्यक्रम या किसी पार्टी में ऐसी महिलाएं ज्यादातर या तो कोने में बैठी वक्त गुजारती हैं या फिर उन्हें दूसरी महिलाओं की खिलखिलाहट सुन कर सिमटने पर बैठने को मजबूर कर देती हैं। कार्यक्रम या पार्टी में विधवा और तलाकशुदा महिलाएं सशंकित रहते हुए सावचेत ही रहती हैं, वे अन्य महिलाओं की तरह ङ्क्षबदास नहीं रह पाती। उनका आत्मविश्वास कमजोर नजर आता है।
रियलटी शो में रेखा ने मांग में सिंदूर भर कर महिलाओं के इसी आत्मविश्वास को मजबूत करने का काम किया है। रेखा ने भले ही खुल कर कुछ नहीं कहा हो, किन्तु उनका स्टारडम ही अपने आप में महिलाओं के लिए एक संदेश है कि महिलाएं चाहे-जैसी रह सकती हैं। सज-संवर सकती हैं। इसके लिए उन्हें किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। उनकी निजी जिंदगी में किसी को झांकने और सवाल करने का कोई हक नहीं है।
ठीक उसी तरह से जैसे कि किसी पुरुष को उसकी पत्नी नहीं होने पर समाज और परिवार में किसी के तरह के भेदभाव और सवालों का सामना नहीं करना पड़ता। फिल्म अभिनेत्री रेखा के साथ ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही मायने में महिलाओं के सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। निश्चित तौर पर महिलाएं भी अपने हक में यह फैसला लेने के लिए दृढ़ निश्चय दिखा सकती हैं कि उन्हें कैसे जीना है और दिखना है।-योगेन्द्र योगी