इमरान खान की चिट्ठी का कौन स्वागत नहीं करेगा

punjabkesari.in Thursday, Apr 01, 2021 - 11:15 AM (IST)

प्रधानमंत्री इमरान खान ने हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पत्र के जवाब में पत्र लिखा, यह अपने आप में उल्लेखनीय बात है लेकिन 23 मार्च के पत्र का जवाब देने में उन्हें एक हफ्ता लग गया, यह भी विचारणीय तथ्य है। इससे भी बड़ी बात यह कि पाकिस्तान के स्थापना दिवस पर मोदी ने इमरान को बधाई दी।

 

मोदी को शायद पता होगा कि 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया था और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा और कांग्रेस ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया था। अब मोदी ने इसी दिन पर इमरान को बधाई देकर पाकिस्तान के निर्माण और भारत-विभाजन को औपचारिक मान्यता दे दी। मुझे विश्वास है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने एक स्वयंसेवक की इस पहल का विरोध नहीं करेगा। दूसरे शब्दों में पाकिस्तान अब एक सच्चाई है, जिसे हमें स्वीकार करना ही है। जहां तक इमरान की  चिट्ठी का सवाल है, उसका कौन स्वागत नहीं करेगा? लेकिन पाकिस्तान के किस  प्रधानमंत्री या फौजी तानाशाह की  हिम्मत है कि वह भारत को अपनी  चिट्ठी भेजे और उसमें कश्मीर का जिक्र न करे?

 

इमरान को शायद इसी दुविधा में एक हफ्ता लगाना पड़ गया होगा। कश्मीर जितना भारत-पाक मामला है, उससे कहीं ज्यादा पाकिस्तान का अंदरुनी मामला है। कश्मीर तो पाकिस्तान की अंदरुनी राजनीति का छोंक है। इस छोंक के बिना किसी भी नेता की दाल गल ही नहीं सकती। इसीलिए इमरान को दोष देना ठीक नहीं है लेकिन इमरान की  चिट्ठी में कश्मीर के छोंक की मिर्ची का असर बहुत कम हो जाता, अगर वे मोदी को यह भरोसा दिलाते कि वे आतंकवाद को खत्म करने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगे।


अब अमरीकी दबाव में दोनों देशों के बीच कुछ संवाद शुरु हो गया है, यह अच्छी बात है लेकिन यह दबाव तभी तक बना रहेगा, जब तक चीन से अमरीका की अनबन चल रही है और उसका अफगानिस्तान से पिंड नहीं छूट रहा है।  दुर्भाग्य यही है कि अफगानिस्तान के मामले में भारत फिसड्डी बना हुआ है। हमारा विदेश मंत्रालय खुद पहल करने के काबिल नहीं है। इसीलिए दूसरों के मेलों में जाकर वह बीन बजाता रहता है, जैसा कि कल उसने ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में जाकर किया है। बीन उसने अच्छी बजाई लेकिन वह काफी नहीं है। कुछ करके भी दिखाना चाहिए। (डा. वेदप्रताप वैदिक)

 


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