पश्चिम बंगाल की घटना : केन्द्र-राज्यों में टकराव बढ़ने की आशंका

punjabkesari.in Thursday, Feb 07, 2019 - 04:16 AM (IST)

कोलकाता में हुए हालिया नाटक, जिसमें शहर के पुलिस प्रमुख से पूछताछ का सी.बी.आई. टीम का असफल प्रयास, टीम को पुलिस स्टेशन ले जाना तथा उसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा धरना दिया जाना शामिल है, ने राजनीति से उभर रहे केन्द्र-राज्य संबंधों में एक अन्य शर्मनाक अध्याय जोड़ दिया है। 

देश की प्रमुख जांच एजैंसी तथा राज्य पुलिस को उस कार्य के लिए इस्तेमाल किया गया, जो मुख्य रूप से भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस के बीच एक राजनीतिक लड़ाई थी। कार्रवाई का समय एक स्पष्ट संकेत था कि इसका लक्ष्य आने वाले आम चुनावों को ध्यान में रख कर निर्धारित किया गया था। जहां केन्द्र ने कार्रवाई की शुरूआत राज्य सरकार को सूचित किए बिना कोलकाता में वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी से पूछताछ के लिए सी.बी.आई. की टीम को भेज कर की, वहीं नाटकबाजी के लिए जानी जातीं मुख्यमंत्री ने इस अवसर का पूरा लाभ अपने राजनीतिक फायदे के लिए उठाया। 

कार्रवाई की पृष्ठभूमि
यह कार्रवाई ममता बनर्जी की सरकार द्वारा भाजपा प्रमुख अमित शाह को रैली को सम्बोधित करने तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हैलीकाप्टर को लैंड करने की इजाजत न देने के शीघ्र बाद की गई। यह नाटक ममता द्वारा आयोजित विशाल रैली की पृष्ठभूमि में भी किया गया जिसमें लगभग सभी विपक्षी दल शामिल हुए। सी.बी.आई. ने राजीव कुमार से पूछताछ करने के लिए 4 वर्षों तक इंतजार किया, जो अब कोलकाता के पुलिस आयुक्त हैं लेकिन एक दिन भी प्रतीक्षा नहीं कर सकी कि संगठन के नए निदेशक अपनी ड्यूटी सम्भाल कर केस का अध्ययन करके भविष्य की कार्रवाई बारे निर्णय ले सकें। 

सारी कार्रवाई बहुत जल्दबाजी में तथा योजना बनाकर नहीं की गई थी, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि टीम को पुलिस प्रमुख से पूछताछ करने के लिए उनके आवास पर भेजा गया है। सी.बी.आई. अधिकारियों को यह पता होना चाहिए था कि पुलिस प्रमुख के आवास तथा कार्यालय पर उनकी सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी तैनात होंगे। वह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं जिनके परिसरों पर कोई सुरक्षा नहीं होगी और सी.बी.आई. कर्मी बेरोक-टोक प्रवेश कर सकेंगे। अधिकारियों तथा जिन लोगों ने उन्हें भेजा था, पुलिस आयुक्त के आवास पर सुरक्षा प्रहरियों की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया की आशा तो कर ही सकते थे। 

ऐसी प्रतिक्रिया की आशा नहीं थी
जिस चीज की उन्होंने आशा नहीं की होगी वह यह कि उन्हें वहां से पुलिस स्टेशन ले जाया जाएगा। वहां उन्हें कुछ देर बाद छोड़ दिया गया परंतु तब तक काफी नुक्सान हो चुका था। न केवल मीडिया ने अप्रत्याशित कार्रवाई को कवर किया, बल्कि खुद ममता बनर्जी तुरंत घटनास्थल पर पहुंचीं और धरने पर बैठ गईं। केन्द्र तथा पश्चिम बंगाल, दोनों सरकारों की सुप्रीम कोर्ट द्वारा खिंचाई की जरूरत थी, जो उसने सही तरह से किया। उसने कोलकाता पुलिस आयुक्त को पूछताछ के लिए शिलांग में सी.बी.आई. के सामने पेश होने को कहा है लेकिन सी.बी.आई. को उन्हें गिरफ्तार न करने की चेतावनी दी है। सर्वोच्च न्यायालय अब पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ मानहानि की याचिका की सुनवाई करेगा।

‘पिंजरे का तोता’
जहां भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस मुद्दे को लेकर राजनीतिक लाभ उठाने में सफल रही हैं, इस घटनाक्रम ने केन्द्र तथा राज्यों के बीच और टकराव की आशंका बढ़ा दी है। कानून व्यवस्था राज्य का विषय है लेकिन सी.बी.आई. एक केन्द्रीय जांच एजैंसी है। हमेशा ऐसा माना जाता है कि सी.बी.आई. का इस्तेमाल केन्द्र में सत्तासीन सरकार द्वारा किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार इसका उल्लेख ‘पिंजरे के तोते’ के तौर पर किया था। इसी पृष्ठभूमि में पश्चिम बंगाल सहित कुछ राज्य सरकारों ने राज्य से संबंधित किसी भी मामले की जांच के लिए सी.बी.आई. को दी गई आम स्वीकृति वापस ले ली है। 

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि स्वीकृति वापस लेना केवल नए मामलों के लिए है तथा पुराने मामलों की सी.बी.आई. द्वारा जांच जारी रखी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के संतुलित निर्णय से ऐसा दिखाई देता है फिलहाल मामला सुलझ गया है, लेकिन आगे जल्दबाजी में की गई कोई भी कार्रवाई संवैधानिक मशीनरी की विफलता का कारण बन सकती है। जरूरत है स्पष्टता तथा प्रक्रियाओं का अनुसरण करने की ताकि दोबारा ऐसी संवेदनशील स्थिति उत्पन्न न हो।-विपिन पब्बी


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