हम भारतीय मौन नहीं रह सकते

punjabkesari.in Monday, Jun 19, 2023 - 05:43 AM (IST)

कार्यस्थलों की कुछ किस्मों को छोड़कर सिर्फ एक ही ऐसा स्थान है जहां आजकल भारतीय मौन दिखाई देते हैं, यह स्थान है विमानों के भीतर। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्यादातर भारतीय अजनबी यात्रियों के साथ बैठते हैं। इंजन का व्यापक शोर साधारण वार्तालाप को कठिन बना देता है। यहां तक कि कई लोग अपने मोबाइल फोन पर बात करना जारी रखते हैं जब तक कि विमान रनवे से उड़ नहीं जाता। हालांकि कैबिन क्रू द्वारा इसके लिए बार-बार चुप रहने को कहा जाता है। इसकी तुलना हम उन धूम्रपान करने वाले लोगों के साथ कर सकते हैं जो सिगरेट का अंतिम कश लगाना भी नहीं छोड़ते। 

यहां तक कि किताबें भी विमान में बहुत कम ही पढ़ी जाती हैं उन्हें पढऩे में कोई भी ध्वनि पैदा नहीं होती। हालांकि कुछ बड़े व्यवसायी इस समय का उपयोग अपनी ई-मेल देखने में बिताते हैं। इस सप्ताह मैं यह देखकर चकित हुई कि एक यूनिफार्म पहने हुए पायलट एक किताब पढ़ रहा था। हालांकि उस समय वह ड्यूटी पर नहीं था। इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं थी कि भारतीय ज्यादातर रेलगाडिय़ों में सफर करना पसंद करते हैं क्योंकि वहां पर उन्हें चुप रहने के लिए नहीं कहा जाता। वास्तव में लम्बी यात्राओं के दौरान सहयोगी यात्रियों के साथ परस्पर विचार-विमर्श हो ही जाता है। बसों में भी करीब-करीब यही हाल है। हम भारतीय मौन से सावधान रहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम ऐसे समुदायों में रहते हैं जो बातूनी है। 

यहां तक कि शोक सभाओं के दौरान भी किसी दिवंगत आत्मा को याद करते हुए हमसे दो मिनटों का मौन भी बर्दाश्त नहीं होता। इस दौरान पहले 20 सैकेंड ही हम मौन रह पाते हैं और उसके बाद हमें बेचैनी हो जाती है। स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की याद में रखे गए दो मिनटों के मौन के लिए भी हमारी ऐसी ही प्रतिक्रिया होती है। हम अंतरात्मा से ऐसा नहीं कर पाते। कुछ महत्वपूर्ण समय के दौरान हम अपने आप को मौन रखने के लिए अयोग्य पाते हैं। ऐसा ऑरोविले मातृमंदिर में देखने को मिला। जहां पर एक मैडीटेशन चैम्बर मध्य में स्थित है। पुड्डुचेरी में बना मातृमंदिर देश के अनूठे मंदिरों में से एक है। 

पुड्डुचेरी पहुंचने वाले आस्थावान इस मंदिर को देखने जरूर पहुंचते हैं। इसका वास्तु शिल्प शानदार है। इसमें चारों तरफ 12 पंखुडिय़ां हैं। जिसमें सुनहरे गोल-गोल डिस्क बने हुए हैं। इससे सूर्य की रोशनी परावर्तित होकर अंदर पहुंचती है जो साधना करने वाले लोगों के लिए अद्भुत वातावरण उत्पन्न करती है। इस मातृ मंदिर में साधना की इच्छा रखने वाले लोगों को विशेष साक्षात्कार से होकर गुजरना पड़ता है। 

इस दौरान मंदिर में मेरे आसपास बैठे लोग बेचैन और हैरान दिखाई दिए। धरती पर एक मंदिर में मौन रहने की जरूरत क्यों है। यह एक अनकहा सवाल है। आमतौर पर मंदिर शोर रहित होते हैं। मगर वहां पर देवी-देवताओं के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए हमारे पास घंटियां, मंजीरें, शंख और ढोलक तथा अन्य वाद्य यंत्र होते हैं। प्रार्थनाओं में संगीतमय मंत्रों और श्लोकों का उच्चारण किया जाता है। इसी तरह ही मंत्रों के उच्चारण से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। ज्यादातर लोग धार्मिक स्थलों के शांतमयी कोनों में बैठकर मौन रहना पसंद करते हैं। वहीं अधिकांश एक-दूसरे से जुडऩा पसंद करते हैं। मंदिरों में सजावट, लाइटें और नक्काशी से कई लोगों का ध्यान भटक जाता है। 

ऑरोविले मातृमंदिर में बिताए मात्र आधे घंटे के मौन का कल्याणकारी प्रभाव रहा क्योंकि वहां से बाहर निकलने के बाद बातचीत का दौर फिर से शुरू हो गया। ऐसा उसी तरह हुआ जैसे विमान के धरती पर लैंड करने के दौरान लोग अपने मोबाइल फोनों को बड़ी उत्सुकता से चालू कर लेते हैं। मगर उनके दिलो-दिमाग में उस छोटे से मौन की याद हमेशा से ही रह जाती है। आत्म चिन्तन निश्चित तौर पर आत्मा के लिए बेहतर साबित होता है।-रश्मी दासगुप्ता


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