अब हरदम तैयार है भारतीय सेना

punjabkesari.in Thursday, May 08, 2025 - 05:43 AM (IST)

हमारी शस्त्र सेनाओं ने मंगलवार और बुधवार मध्यरात्रि 1:05 से 1:30 बजे के बीच मात्र 25 मिनट से भी कम समय में पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादियों के 9 ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया। ‘आप्रेशन सिंदूर’ के तहत 24 मिसाइलें दागी गईं और सभी अपने लक्ष्य पर गिरीं। इन 9 ठिकानों में 5 पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में थे और 4 पाकिस्तान में। पाकिस्तान में घुस कर पहल करने का यह पहला मामला था। इन अड्डों पर आतंकवादियों की भर्ती हो रही थी और उन्हें प्रशिक्षण दिया जा रहा था। इससे पहले मंगलवार शाम तक सब कुछ सामान्य-सा लग रहा था। पाकिस्तान की सेना अवश्य ही इस भुलावे में रही होगी कि भारतीय सेना कोई भी कदम उठाने से पहले तैयारी के लिए समय लेगी। अभी तो भारत में मॉक ड्रिल चल रहा है। 

हो सकता है कि किसी ने इसे रूस की क्रांति की तारीख 9 मई से भी जोड़ लिया हो। यूं 1971 की जंग से पहले भी सेना ने कई महीने तैयारी की थी। तब भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सेना को हरी झंडी के बाद सेना प्रमुख जनरल मानेक शॉ ने कहा था-युद्ध की तारीख भी सेना तय करेगी और जगह भी। हुआ भी यही। फरवरी 1999  में भी पाक सैनिकों ने हमारे  रणनीतिक क्षेत्र पर गुपचुप कब्जा कर लिया था। 3 मई 1999 को स्थानीय चरवाहों से भारतीय सेना को जानकारी मिल गई थी। उसके बाद मेजर सौरभ कालिया के नेतृत्व में गए भारतीय गश्ती दल पर घात लगाकर हमला किया गया। 25 मई 1999 को वायुसेना और जमीनी सैनिकों को संयुक्त रूप से कार्रवाई का काम सौंपा गया। यानी तैयारी में 20 दिन से ज्यादा का समय लगा था। मगर अब वह समय नहीं है। भारतीय सेना हर दम तैयार रहती है। 14 फरवरी 2019 को हुए पुलवामा हमले के 12 दिन बाद ही 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायुसेना ने जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था। उसी तरह इस बार भी करीब 2 सप्ताह में पाकिस्तान के आतंकवादियों की ओर से पहलगाम में हुई हरकत का सबक सिखाया गया। उससे पहले सारे कूटनीतिक उपायों पर काम जारी था। 

हमले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठक बुलाई गई। सर्वदलीय बैठक की गई। दुनिया के सभी प्रमुख नेताओं से वार्ता का दौरा चलता रहा। तीनों सेनाओं के कमांडरों के साथ बैठक हुई। सेना को खुली छूट दी गई और नतीजा पूरी दुनिया देख रही है। आतंकियों के ठिकाने तबाह हो चुके हैं। पाकिस्तान शर्मिंदगी ढोने को मजबूर है। पाकिस्तान में जिन आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया, उनका निर्माण पिछले 3 दशकों से हो रहा था। इनमें आतंकवादियों को भर्ती करने, प्रशिक्षण देने और फिर उन्हें भारत में लांच करने का काम किया जा रहा था। ये ठिकाने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से लेकर पाक अधिकृत कश्मीर तक फैले थे। इनमें कई जैश के ठिकाने थे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तान को बार-बार सबक सिखाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? 1971 में उसे सबसे बड़ी हार मिली थी। पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए, उसके 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। इसके बावजूद वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। पंजाब में आतंकवाद को खड़ा करने में मुख्य भूमिका निभाता रहा। उसके बाद उसने कश्मीर में भी वही खेल शुरू किया। 

20 फरवरी 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर की यात्रा कर दोनों देशों के बीच विश्वास बहाल करने की कोशिश की मगर दूसरी ओर पाकिस्तान ने कारगिल की चोटियों पर गुपचुप कब्जा कर विश्वासघात किया। कारगिल युद्ध हुआ और पाकिस्तानियों को पीठ दिखाकर भागना पड़ा। 2008 के मुम्बई हमले के बाद लग रहा था कि पाकिस्तान पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है। मगर 25 दिसम्बर 2015 में उससे फिर से रिश्ते सामान्य बनाने की कोशिश की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं विशेष विमान से लाहौर गए। लेकिन पाक सुधरा नहीं। उसने 9 दिन बाद पठानकोट एयरबेस पर आतंकवादी हमला कराया। विश्वासघात का यह एक और अध्याय था। ये हमले यहीं नहीं रुके,  उसके बाद उरी और पुलवामा भी हुआ। पुलवामा के बाद सबक सिखाया गया मगर वह सुधरा नहीं और बात पहलगाम तक आ गई। पाकिस्तान की राजनीति वहां की सेना के चारों ओर घूमती है। उनके सेनानायक भ्रष्ट और तानाशाह रवैये के लिए जाने जाते हैं। 1956 में रक्षा सचिव इस्कंदर मिर्जा राष्ट्रपति बने और उन्होंने पाकिस्तान की कमान सेना को सौंपी। अगले 2 साल में पाकिस्तान में 4 प्रधानमंत्री बदले गए। 

जनरल अयूब खान ने पाकिस्तान में सैन्य शासन लागू किया और सबसे पहले इस्कंदर मिर्जा को देश से निष्काषित किया। अयूब खान के बाद पाक जनरलों की तानाशाही की सूची में जिया उलहक और जनरल परवेज मुशर्रफ का नाम आता है। इन सबको  राष्ट्र प्रमुख बनने का शौक चढ़ा रहता है। शायद अब पाकिस्तान का जनरल आसिम मुनीर भी कुछ वैसे ही सपने देख रहा है। वह मुशर्रफ और जिया की राह पर है। पाकिस्तान के नेताओं और जनता को इस खतरे को समझना चाहिए कि उसे भारत से नहीं, अपनी सेना से खतरा है। वैसे भी एन.एस.ए. अजीत डोभाल ने बहुत स्पष्ट कर दिया है कि हमारा तनाव बढ़ाने का अब इरादा नहीं है और सेना ने भी सीमा पर सफेद झंडा लगा इस तरीके का संकेत दे दिया है। लेकिन हमें पूरी तरह से तैयार रहना होगा। कारण पाकिस्तान की सेना अपनी जनता में जोश भरना चाहती है, वह भी उस हालत में जब पाक जनता का सेना से विश्वास उठ चुका है। वहां की जनता वर्दी की गुंडागर्दी से तंग आ चुकी है। इस बार भारत और भारत की जनता एकजुट नजर आ रही है। कहीं कोई अगर-मगर अभी नहीं है। विपक्ष के नेता भी सेना का मनोबल उठाते दिखते हैं और हर समय आलोचना करने के आदी असदुद्दीन ओवैसी भी पाकिस्तान मुर्दाबाद के साथ सेना के साथ खड़े हैं। देश एक है। भारत माता की जय हो, जय हिंद।-अकु श्रीवास्तव
 


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