अंतिम व्यक्ति तक का ‘उदय’ चाहते थे पं. दीनदयाल उपाध्याय

punjabkesari.in Friday, Sep 25, 2020 - 01:30 AM (IST)

देश में जब भी सामाजिक-आर्थिक चिंतन की बात की जाती है तो गांधी, जे.पी.-लोहिया और दीनदयाल जी का नाम लिया जाता है। गांधी जी ने आजादी की लड़ाई लड़ी, जे.पी. ने आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ी, लोहिया जी समाजवादी चेतना के संवाहक बने और दीनदयाल जी स्वदेशी आधारित सामाजिक-आर्थिक चिंतन के सर्वश्रेष्ठ चिंतक बने। 

दीनदयाल जी का अध्ययन स्वदेश में हुआ, इसलिए उनके मूल में स्वदेशी चिंतन प्राकृतिक रूप में अंतर्निहित है। इसे यूं कहें कि वह प्रकृति प्रदत्त स्वदेशी चिंतक थे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारत के श्रेष्ठ विचारकों में हम दीनदयालजी के एकात्म मानववाद का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि वह भारत की चित्ति, भारत के जनमानस और भारत की संस्कृति को समझ समस्याओं के समाधान के लिए सदैव अग्रसर हुए। यही कारण है कि दीनदयाल जी कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं और विश्व राजनीतिक फलक पर उनका एकात्म-दर्शन भी प्रासंगिक रहेगा। 

अगर हम गौर से देखें तो हम पाएंगे कि हर विचारक का एक शब्द प्रिय होता है, जैसे गांधी जी का ‘अहिंसा’, नेहरू जी का ‘आराम-हराम’, लोहिया जी का ‘चौखंभा राज्य’, जयप्रकाश जी का ‘संपूर्ण क्रांति’, शास्त्री जी का ‘जय जवान-जय किसान’। इसी तरह दीनदयाल जी का प्रिय शब्द रहा ‘अंत्योदय’, अंत्योदय यानी अंतिम व्यक्ति का उदय। भारतीय राजनीति में विनोबा भावे ने भी ‘सर्वोदय’ शब्द दिया, पर अंत्योदय में यह बात निहित है कि ‘सबका साथ, सबका विकास’। जब अंतिम व्यक्ति का विकास होगा तो उसके ऊपर सभी व्यक्तियों का विकास अंतर्निहित है। 

अंत्योदय शब्द में संवेदना है, सहानुभूति है, प्रेरणा है, साधना है, प्रामाणिकता है, आत्मीयता है, कत्र्र्तव्यपरायणता है तथा साथ ही उद्देश्य की स्पष्टता है। दीनदयाल जी कहा करते थे कि ‘जब तक अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उदय नहीं होगा, भारत का उदय संभव नहीं है।’ वे अश्रुपूरित आंखों से आंसू पोंछने और उसके चेहरे पर मुस्कराहट को अंत्योदय की पहली सीढ़ी मानते थे। 

जिस देश के आर्थिक चिंतन में अंतिम पंक्ति के व्यक्ति का उदय न हो, वह राष्ट्र न केवल आर्थिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी भटक जाता है। अंत्योदय सामाजिक कत्र्तव्य की प्रेरणा की पहल है। यह किसी राजनीतिक दल का शब्द नहीं है। सर्वकल्याणकारी, सर्वस्वीकारी और फलकारी है। अत: सरकार किसी की भी हो, उस सरकार के चित्ति में अंत्योदय की लौ सतत प्रज्वलित रहनी चाहिए। ‘प्रबलता को प्रणाम, दुर्बलता को दुलत्ती’ इस नीति-सिद्धांत पर कोई भी राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता। प्रबलता की कत्र्तव्यपरायणता में निर्बलता को दूर करने का साहस होता है। अत: प्रबलता की सामथ्र्य का सार्वजनिकीकरण करते हुए निर्बल को सबल बनाने का पुनीत कार्य अंत्योदय में अंतर्निहित है, जो अंत्योदय की आत्मिक पुकार है। 

अंत्योदय के मूल में दीनदयाल जी ने कोई चुनावी लाभ नहीं देखा क्योंकि उनका जीवन स्वत: अंत्योदय से प्रेरित था। वह समाजोत्थान के लिए अपनी हड्डी गलाने में विश्वास रखते थे। उनके शब्द और आचरण में दूरी नहीं थी। वर्षों के चिंतन के बाद उन्होंने पाया कि भारतीय जीवन और सांस्कृतिक ङ्क्षचतन को जमीन पर उतारने के लिए अगर नीति अंत्योदय आधारित नहीं होगी तो हम भारतीय संस्कृति, सद्भाव, गांव की आत्मा और शहरी आवश्यकता से कोसों दूर चले जाएंगे। दीनदयाल जी के अंत्योदय का आशय राष्ट्रश्रम से प्रेरित था। वह राष्ट्रश्रम को राष्ट्रधर्म मानते थे। उनकी मान्यता रही कि राष्ट्रश्रम प्रत्येक नागरिक का राष्ट्रधर्म है। अत: कोई श्रमिक वर्ग अलग नहीं है, हम सब श्रमिक हैं। अत: राष्ट्रश्रम राष्ट्रधर्म का दूसरा नाम है। 

दीनदयाल जी के अंत्योदय का आशय यह भी था कि समाज की योजनाएं सबके लिए वरण्य तो हों, परंतु वरीयता अंतिम व्यक्ति को मिले। उनके चिंतन में सरकार की हर योजना के पीछे गांव होना चाहिए। उनकी मान्यता थी कि आजादी के बाद सरकार की योजनाएं ग्रामोन्मुखी न होकर नगरोन्मुखी ज्यादा रहीं और यही कारण है कि आज गांव सूने हो रहे हैं तथा नगरों में रहना दूभर हो गया है। वह ग्राम और शहर के बीच संतुलित संबंध चाहते थे। आजादी के बाद जो सरकारें आईं, उनके चिंतन में यह भाव नहीं दिखा। यही कारण है कि आज अंत्योदय की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है। 

यहां यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंत्योदय शब्द की अपनी गरीबोन्मुखी योजनाओं से उसे साकार करने की दिशा में एक नहीं अनेक साहसिक  निर्णय लिए हैं। मसला जनधन योजना का हो, उज्ज्वला योजना हो, आयुष्मान योजना हो, शौचालय योजना हो, प्रधानमंत्री आवास योजना हो, मुद्रा योजना हो, स्वच्छता अभियान हो,  सामाजिक सुरक्षा की गारंटी को लेकर पैंशन की अनेक योजनाएं, गरीब किसानों के खाते में छह हजार रुपए वार्षिक भेजने, इसके साथ ही ठेले-खोमचे लगाने वालों से लेकर गरीबों की जिंदगी में मुद्रा योजना के माध्यम  से परिवर्तन लाने की अहम योजना। ऐसी अनेक योजनाएं लागू हुईं, जिनसे सौ करोड़ से अधिक भारतीयों के जीवन पर सीधा असर पड़ा। सरकार वही अच्छी होती है, जिसकी किरणें ‘अंत्योदय’ अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के जीवन में नया सवेरा लाए।-प्रभात झा भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद


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