ट्रम्प की नस्लीय टिप्पणियां अमरीकी स्वभाव से हटकर
punjabkesari.in Thursday, Aug 08, 2024 - 05:35 AM (IST)
सच है कि दुनिया में कहीं भी राजनीति में कब कौन-सा नया अध्याय या घटनाक्रम जुड़ जाए, कोई नहीं जानता। 14 जुलाई को अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सभा में हमला, उसकी तस्वीरों से एकाएक उनके प्रति सहानुभूति भर गई। तनाव व आक्रोश भी दिखने लगा। यूं लगा कि यह चुनाव एकतरफा हो जाएगा क्योंकि डैमोक्रेटिक पार्टी का प्रचार भी एक पल के लिए थमता दिखने लगा।
ट्रम्प की छवि एकाएक हीरो की बन गई। उनके मुंह से निकला ‘फाइट, फाइट, फाइट’ हर जुबान और कपड़ों तक में छा गया। चुनाव से पहले ही रिपब्लिक पार्टी, डैमोक्रेटिक पार्टी को बड़ी चुनौती देते दिखने लगी। कई वजहें पहले से थीं जो एकाएक उफान पर आ गईं। जहां मौजूदा राष्ट्रपति और डैमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन अपनी याददाश्त और कई हरकतों से चर्चाओं में आए और उनके कई वीडियो और मीम्स ने भी दौड़ में पछाडऩा शुरू कर दिया। इससे माहौल एकतरफा दिखने लगा। कहते हैं कि राजनीति शह और मात का खेल है। अमरीका में यही हुआ। हमले के केवल 6 दिनों बाद 20 जुलाई को जैसे ही जो बाइडेन ने अपनी उम्मीदवारी वापस ली और उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस पर भरोसा जताया तो सब कुछ बदलने लगा। चुनावी संघर्ष बराबरी पर आ गया।
अब अमरीकी चुनावी परिदृश्य एकदम उलट दिख रहा है। जैसी नस्लीय टिप्पणियां अब डोनाल्ड ट्रम्प कर रहे हैं उसकी न केवल अमरीका बल्कि पूरे विश्व में आलोचना हो रही है। ब्लैक जर्नलिस्ट के एक सम्मेलन में बहस के दौरान ट्रंप ने कमला हैरिस को काली कहते हुए उनकी भारतीय पहचान पर भी सवाल खड़े किए। निश्चित रूप से बड़ी संख्या में अमरीका में रहने वाले भारतीयों को यह नागवार गुजरा, गुजरना भी चाहिए। ट्रम्प कैसे भूल गए कि उन्हें पिछले चुनाव में भारतीयों ने कितना साथ दिया था? यह भरोसा महज हैरिस की उम्मीदवारी से टूट गया? यकीनन ऐसी टिप्पणियां ट्रम्प की हताशा बताती हैं। चुनावी नतीजे क्या होंगे,यह अलग है। लेकिन ऐसा लगता है कि अपनी अकड़ और गरूर के लिए पहचाने जाने वाले ट्रम्प ने कहीं खुद तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मार ली?
महज एक पखवाड़े में ही हवा का रुख अपने खिलाफ तो नहीं कर लिया? इतनी जल्दी ट्रम्प कैसे भूल गए कि कभी उन्होंने एशियन-अमरीकन विरासत पर जोर दिया था। सही है कि कमला हैरिस पहली अश्वेत और एशियन-अमरीकन उप-राष्ट्रपति हैं। उनकी जड़ें भारत और जमैका से जुड़ी हैं। पढ़ाई ब्लैक यूनिवर्सिटी हार्वर्ड से हुई। वह अश्वेत लोगों के अल्फा कप्पा महिला संगठन में सक्रिय रहीं। अमरीका जैसे विकसित और अलग सोच रखने वाले देश में ऐसी उम्मीद एक पूर्व राष्ट्रपति या भावी उम्मीदवार से नहीं की जा सकती। किसी को अधिकार भी नहीं कि वह चुनावी माहौल को पक्ष में करने हेतु या किसी की पहचान पर टिप्पणी करे या बताए। अब अमरीका में इसी पर गर्मागर्म बहसें हो रही हैं।
ट्रम्प की नस्लीय टिप्पणियां चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। यह उनकी न पहली टिप्पणी है, न आखिरी होगी। पहले भी उनकी नस्लीय भड़ास सामने आ चुकी है। सबको याद होगा कि बराक ओबामा पर भी झूठे आरोप लगाए थे कि वह अमरीका में नहीं जन्मे। अपनी ही पार्टी की लोकप्रिय नेता निकी हेली पर भी गलत आरोप मढ़े कि जब उनका जन्म हुआ था तब उनके माता-पिता अमरीकी नागरिक नहीं थे। निश्चित रूप से यह डोनाल्ड ट्रम्प की संकीर्णता का परिचायक है जो निजी टिप्पणियों से भी नहीं कतराते। संकीर्णता इतनी कि यह कहने से भी नहीं चूके कि लॉ की पढ़ाई के दौरान हैरिस पहली बार असफल हुईं व दूसरी बार में पास हुईं। कैलीफोर्निया के ओकलैंड में जन्मीं हैरिस की मां श्यामला का जन्म भारत में हुआ, दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ीं और महज 19 की उम्र में अकेली अमरीका आ गईं। वह एक सामाजिक कार्यकत्र्ता के साथ वैज्ञानिक भी थीं। वहीं उनके पिता जमैका में जन्मे थे।
डोनाल्ड ट्रंप का जिद्दी स्वभाव किससे छुपा है। बाइडेन के दौड़ से हटने को तख्ता पलट तो कमला हैरिस के लिए वह यह कहने से भी नहीं चूकते कि वह अमरीका में अपराध, अराजकता, अशांति और नरसंहार का कारण बनेंगी। निश्चित रूप से डोनाल्ड ट्रम्प के बेतुके बयान और खीझ ने हमले के बाद उमड़ी सहानुभूति को कम किया है। अब ट्रम्प की सत्ता वापसी में बड़ा रोड़ा बनती कमला हैरिस ने चुनाव को रोचक बना दिया। कहां कल तक बाइडेन की उम्र को लेकर ट्रम्प सवाल करते थे अब 78 वर्षीय ट्रम्प की उम्र को लेकर 59 वर्षीय हैरिस चर्चाओं में हैं। देखना होगा कि राजनीतिक और कूटनीतिक लड़ाई से ज्यादा मानसिक और स्वास्थ्य को लेकर अमरीका में कौन किस पर भारी पड़ता है। नस्लीय टिप्पणी, निजी हमले और भारत का उल्लेख कर ट्रम्प कहीं न कहीं अपना बड़ा नुकसान जरूर कर बैठे हैं।-ऋतुपर्ण दवे