आसमान छूती महंगाई पर ध्यान देने का समय

punjabkesari.in Thursday, Dec 16, 2021 - 04:21 AM (IST)

देश में थोक कीमतों में सर्वकालिक उच्च मुद्रास्फीति अक्तूबर में 12.54 प्रतिशत से बढ़ कर नवम्बर में 14.23 प्रतिशत हो गई जिसके साथ ही रोजगार के आंकड़ों में भी गिरावट आई है जो एक बड़ी चिंता का विषय है तथा सरकार को देश पर मंडराते आर्थिक संकट पर गंभीरतापूर्वक ध्यान अवश्य देना चाहिए। 

रिकार्ड थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई.) खुदरा मुद्रास्फीति पर चिंताजनक आधिकारिक आंकड़ों के साथ-साथ ही आया है। पैट्रोल तथा डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती के बावजूद 3 महीनों के दौरान इसमें 4.19 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि देखी गई है। 

सामान्य जानकारी के अनुसार सब्जियों की कीमतें अप्रत्याशित स्तर पर पहुंच गईं और महंगी सब्जियों में टमाटर 100 रुपए प्रति किलो तथा मटर 200 रुपए प्रति किलो तक बिकते रहे। यही बात दालों तथा खाद्य तेलों के मामले में है। आय में कोई वृद्धि न होने के चलते सामान्य परिवारों को बहुत कठिन स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। एक आधिकारिक वक्तव्य में मुद्रास्फीति की उच्च दर के लिए ‘मुख्य तौर पर खनिज तेलों, आधारभूत धातुओं, कच्चे तेल तथा प्राकृतिक गैस, रसायन तथा रासायनिक उत्पादों व खाद्य उत्पादों की कीमतों में वृद्धि’ कारण बताई गई। 

डब्ल्यू.पी.आई. तथा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी.पी.आई.) मुद्रास्फीति में बड़ा अंतर इनपुट पक्ष पर कीमतों के दबाव को प्रतिङ्क्षबबित करता है जिसके आने वाले महीनों में खुदरा स्तर तक पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मुद्रास्फीति में वृद्धि मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में बढ़ौतरी के कारण है, विशेषकर सब्जियों और खनिज व पैट्रोलियम उत्पादों के कारण। ईंधन की उच्च कीमतों के कारण मुद्रास्फीति से सामान्य लोगों के बीच निराशा व्याप्त हुई है। 

बेरोजगारों तथा कम वेतन लेने वालों को इसकी दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। सैंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (सी.एम.आई.ई.) के अनुसार भारत में बेरोजगारी की दर गत महीने 6.86 प्रतिशत के मुकाबले तेजी से बढ़ कर अक्तूबर में 7.75 प्रतिशत हो गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि जहां शहरी बेरोजगारी दर गिर कर 7.38 प्रतिशत पर पहुंच गई,जो 3 महीनों के दौरान  सबसे कम है, ग्रामीण बेरोजगारी दर 4 महीनों के मुकाबले बढ़ कर अक्तूबर में 7.91 प्रतिशत हो गई। कुल रोजगार की दर अभी कोविड से पहले के स्तर पर वापस लौटनी है। यह बताता है कि कोविड महामारी के कारण गई नौकरियों को अभी तक पूरी तरह से बहाल नहीं किया जा सका। 

बड़े दुख की बात है कि जहां लोगों का एक बड़ा वर्ग एक ऐसे गंभीर आॢथक संकट का सामना कर रहा है, राजनीतिज्ञ तथा मीडिया, विशेषकर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ङ्क्षहदुत्व को लेकर राजनीति की ओर आकॢषत बना हुआ है और राजनीति में साम्प्रदायिक तथा धार्मिक विभाजन हावी है। सत्ताधारी पार्टी को आवश्यक तौर पर धर्म के प्रति जुनून तथा कुछ राज्यों में आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए इसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजैंडा बनाने के दोष को सांझा करना होगा। ऐसा दिखाई देता है कि विपक्षी दल भी इसी जाल में फंस रहे हैं। 

रविवार को कांग्रेस ने ऊंची कीमतों तथा मुद्रास्फीति के खिलाफ प्रदर्शन के लिए जयपुर में एक बड़ी रैली का आयोजन किया तथा कोई भी सोच सकता है कि कम से कम एक पार्टी ने सामान्य व्यक्ति को प्रभावित करने वाले इस प्रमुख मुद्दे पर ध्यान तो दिया। यद्यपि एक बार फिर रैली का केंद्र बिंदु कांग्रेस नेता राहुल गांधी की हिंदू तथा हिंदुत्व के बीच अंतर को लेकर की गई टिप्पणी के कारण भटक गया। 

कुछ अन्य विपक्षी दलों की तरह कांग्रेस भी भारतीय जनता पार्टी को ङ्क्षहदुत्व के मामले पर घेर कर एक बहुत बड़ी गलती कर रही है। अप्रत्याशित महंगाई तथा बढ़ रही बेरोजगारी दर पर ध्यान केन्द्रित करने की बजाय ये पार्टियां भाजपा को और अधिक जोर-शोर से अपना एजैंडा लागू करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। 

प्रधानमंत्री का हालिया दो दिवसीय वाराणसी का दौरा तथा जनता के धन की कीमत पर धार्मिक एजैंडे के जबरदस्त प्रदर्शन को इलैक्ट्रॉनिक्स मीडिया के एक वर्ग ने काफी बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जिसका शायद यह मानना है कि देश में हो रही कोई भी अन्य चीज ध्यान देने के काबिल नहीं है। केवल कुछ टैलीविजन चैनलों, मुख्य रूप से वे जो अर्थव्यवस्था तथा वित्त पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, मुद्रास्फीति तथा रोजगार के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करते रहे। कोई हैरानी की बात नहीं कि सामान्य लोगों ने तथाकथित समाचार चैनलों को देखना बंद कर दिया है।-विपिन पब्बी 
 


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