जो हार गए वे जश्न मना रहे, जो जीते वे उदास

punjabkesari.in Tuesday, Jun 25, 2024 - 05:18 AM (IST)

यह विडम्बना ही है कि जो चुनाव हार गए हैं, वे जश्न मना रहे हैं, जबकि जो जीते हैं, वे उदास हैं। कांग्रेस ने 2014 में इतिहास में अपनी सबसे कम सीटें छुई थीं, 2009 में ये सीटें 206 थीं, जो घटकर 44 सीटों पर आ गई थीं और 2019 के चुनावों में अपनी सीटों की संख्या में मामूली सुधार करके उस पराजय से उबरने में कांग्रेस विफल रही। इस बार काफी प्रचार के बावजूद सिर्फ 99 सीटें जीत पाई। 

इसका वोट शेयर 21 प्रतिशत के निचले स्तर पर बना हुआ है जबकि भाजपा का वोट शेयर 36.37 प्रतिशत के आसपास है। यह 11 राज्यों में खाता खोलने में विफल रही, जिनमें आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश,  उत्तराखंड,  जम्मू-कश्मीर और त्रिपुरा जैसे महत्वपूर्ण राज्य शामिल हैं। इसने उड़ीसा,  गुजरात, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों में सिर्फ  एक सीट जीती। भाजपा भी 7 राज्यों में अपना खाता खोलने में विफल रही लेकिन महत्वपूर्ण राज्य केवल तमिलनाडु और पंजाब हैं। 

यह सांख्यिकीय वास्तविकता दर्शाती है कि लोगों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को एक जिम्मेदार विपक्ष के रूप में काम करने का जनादेश दिया है। फिर भी, कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि जनादेश एन.डी.ए. के लिए नहीं बल्कि उनके लिए था। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भविष्यवाणी की कि ‘मोदी की अल्पमत सरकार कभी भी गिर सकती है’ जबकि राहुल गांधी ने  ‘भारतीय राजनीति में भूगर्भीय बदलाव’ तथा ‘मोदी के विचार और छवि नष्ट हो गई है’ जैसे तर्कों का इस्तेमाल करके निष्कर्ष निकाला कि एन.डी.ए. सरकार ‘बहुत कमजोर’ है और ‘छोटी सी गड़बड़ी’ पर गिर सकती है। कांग्रेस नेतृत्व 2 भ्रमों से ग्रस्त है। पहला- जनादेश उनके लिए था न कि मोदी के लिए  और दूसरा-एन.डी.ए. गठबंधन जल्द ही टूट जाएगा क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वभाव से गठबंधन चलाने के लिए तैयार नहीं हैं। 

मोदी की असली चुनौती इस गठबंधन को संभालना नहीं है। 240 सीटों के साथ भाजपा गठबंधन सरकार चलाने के लिए एक अस्थिर इंडिया गठबंधन सरकार की तुलना में कहीं अधिक आरामदायक स्थिति में है। भाजपा महाराष्ट्र और असम सहित कई राज्यों में गठबंधन सरकारों का नेतृत्व कर रही है। इसके अलावा 3 दशकों से अधिक के अपने विशाल राजनीतिक अनुभव के साथ,  मोदी को गठबंधन की राजनीति में नौसिखिया नहीं माना जा सकता है। मोदी के लिए चुनौती अपने गठबंधन को संभालने से नहीं, बल्कि एक ऐसे विपक्ष से आएगी जो इस मानसिकता के साथ सदन में आ रहा है कि सत्तारूढ़ दल के पास शासन करने का जनादेश नहीं है। मोदी ने कहा कि उन्हें एक ‘अच्छे विपक्ष’ की कमी खल रही है। उन्हें इस कार्यकाल में एक कटु विपक्ष के लिए तैयार रहना चाहिए। संसद के अशांत जल को संभालने के अलावा नई सरकार को कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। 

बढ़ती युवा आबादी, जिसमें 20 मिलियन से अधिक युवा सालाना 18 वर्ष की रोजगार योग्य आयु प्राप्त करते हैं, किसी भी सरकार के लिए एक चुनौती होगी। पिछले 10 वर्षों में सरकार ने इस पर पार पाने के लिए कई पहल की हैं, मुख्य रूप से स्वरोजगार को प्रोत्साहित करके। विश्व बैंक के आंकड़ों से पता चला है कि 2021 में भारत की व्यापार करने की क्षमता की रैंकिंग में काफी सुधार हुआ है। फिर भी कई प्रणालीगत बाधाएं बनी हुई हैं। भारत इंडस्ट्री 4.0 इंटरनैट 3.0 और जेनेटिक्स 2.0 के दौर में है। हमारे शिक्षा क्षेत्र को नई वास्तविकता का सामना करने के लिए तैयार रहने की जरूरत है। विपक्ष स्वाभाविक रूप से नीट और नैट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं पर विवाद खड़ा करेगा लेकिन शोध और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अधिक ध्यान देने की जरूरत है। इन क्षेत्रों में भारत का प्रदर्शन खराब है। कई लोग जिसे नवाचार कहते हैं, वह ज्यादातर नकल है, जहां नकल रचनात्मकता का विकल्प बन जाती है। 

आर एंड डी और नवाचार क्षेत्र में भी निजी पूंजी के अधिक निवेश की जरूरत है। दुर्भाग्य से, हमारा आर एंड डी  फंङ्क्षडग सार्वजनिक और निजी दोनों हमारे सकल घरेलू उत्पाद का 0.7 प्रतिशत भी नहीं है, जो लगभग 17 बिलियन डॉलर है। चीन इस पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत से अधिक खर्च करता है। यह आर एंड डी पर सालाना करीब 500 बिलियन डॉलर खर्च करता है, जो भारत के खर्च का लगभग 30 गुना है, जबकि अमरीका लगभग 600 बिलियन डॉलर खर्च करता है। 2022 में भारत ने लगभग 60,000 पेटैंट दायर किए, जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत घरेलू बाजार के लिए थे। इन पेटैंटों की कथित गुणवत्ता बहुत कम थी। दूसरी ओर चीन ने उसी वर्ष 4 मिलियन पेटैंट दायर किए, जिनमें से 25 प्रतिशत  उच्च मूल्य पेटैंट थे। चीन के विपरीत हमारे पास ऐसा कोई वैज्ञानिक वर्गीकरण नहीं है। 

अमरीका ने 2022 में लगभग 0.7 मिलियन पेटैंट दायर किए। एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि मोदी सरकार द्वारा दिए गए धक्के के कारण भारत का शोध उत्पादन 2017-22 के दौरान लगभग 54 प्रतिशत बढ़कर एक मिलियन शोध पत्रों तक पहुंच गया, जिससे यह वैश्विक रूप से चौथे स्थान पर आ गया। हालांकि इनमें से कई पत्रों की गुणवत्ता और प्रासंगिकता संदिग्ध बनी हुई है क्योंकि शोध साइंस बैल के अनुसार उनमें से केवल 15 प्रतिशत का ही शीर्ष अकादमिक पत्रिकाओं में हवाला दिया गया है। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों के साथ-साथ एक अडिग राजनीतिक विपक्ष जो किसी भी तरह की शर्म की परवाह नहीं करता, प्रधानमंत्री मोदी के लिए उनके रिकॉर्डतोड़ तीसरे कार्यकाल में एक वास्तविक परीक्षा बन सकता है।-राम माधव


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