मन का रंगमंच है रेडियो

punjabkesari.in Friday, Nov 22, 2024 - 05:32 AM (IST)

यह कॉलम आई.पी.एल., या मोटी तनख्वाह वाले चैक, राजनेताओं के बेटों द्वारा क्रिकेट निकायों का नेतृत्व करने या घरेलू शृंखला में न्यूजीलैंड (ब्लैक कैप्स) द्वारा भारत की हार के बारे में नहीं है। एक बार क्रिकेट का शौकीन होने के बाद, मैंने पिछले कुछ सालों में खेल से दूरी बना ली है। एक सहकर्मी ने मुझे याद दिलाया कि बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के लिए भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 5 टैस्ट मैचों की शृंखला 22 नवम्बर से शुरू हो रही है। तो आइए हम इसे जश्न मनाने, संरक्षित करने और सबसे महत्वपूर्ण रूप से भारतीय और विश्व क्रिकेट की लौ को फिर से जलाने के बारे में बताते हैं। 

रेडियो पर कमैंट्री : जी.आई.एफ. और 30 सैकेंड की रील के युग में, आपने आखिरी बार रेडियो पर क्रिकेट कमैंट्री कब सुनी थी? आखिरी बार आपने मैच का अनुसरण करने के लिए आकाशवाणी (कार में बैठकर) कब ट्यून किया था? इस बात को दशकों हो गए होंगे! साल 1922 में ऑस्ट्रेलिया में  क्रिकेट मैच का पहला रिकॉर्ड किया गया प्रसारण चाल्र्स बैनरमैन के सम्मान में एक प्रदर्शनी खेल के लिए था, जिसने टैस्ट क्रिकेट में पहला शतक बनाया था। क्रिकेट की बाइबिल, ‘विजडन’ पुष्टि करती है कि उस प्रसारण का कोई रिकॉर्ड किया गया सबूत नहीं है। भारत में भी रेडियो पर क्रिकेट कमैंट्री की समृद्ध विरासत है। अर्देशिर फुरदोरजी सोहराबजी ‘बॉबी’ तल्यारखान को अक्सर रेडियो पर क्रिकेट कमैंट्री का अग्रणी माना जाता है। ऑल इंडिया रेडियो (ए.आई.आर.) के लिए कमैंटेटर के रूप में उनका पहला कार्यकाल 1934 में क्वाड्रैंगुलर टूर्नामैंट के दौरान मुम्बई में पारसी और मुस्लिम समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाली टीमों के बीच खेले गए मैच में शुरू हुआ था। बॉबी तल्यारखान तो बॉबी तल्यारखान ही थे! उन्होंने कभी किसी अन्य कमैंटेटर के साथ माइक्रोफोन सांझा नहीं किया। जैसा कि रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक ‘ए कॉर्नर ऑफ ए फॉरेन फील्ड’ में लिखा है, ‘‘उनका आत्म-नियंत्रण अलौकिक था, क्योंकि वह बिना किसी रुकावट के बोलते थे (लंच और चाय को छोड़कर)।’’

1960, 70 और 80 के दशक में रेडियो क्रिकेट कमैंट्री में कुछ बेहतरीन कलाकार थे जिनमें बेरी सर्वाधिकारी, पियर्सन सुरिता, डिकी रुत्नागुर, अनंत सीतलवाड़, किशोर भीमनी व अन्य शामिल थे। इनमें से कुछ सज्जनों के लहजे में ब्रिटिश लहजे की झलक थी। वर्तमान में, हिंदी में कमैंटेटर सुशील दोशी और संजय बनर्जी, और अंग्रेजी में सुनील गुप्ता और प्रकाश वाकणकर एक अलग लीग में हैं। अच्छी तरह से की गई रेडियो कमैंट्री, टैलीविजन पर 24 फ्रेम प्रति सैकेंड की तरह ही आकर्षक हो सकती है। यह श्रोता को अपने में शामिल करती है, उसे अपनी कल्पना का उपयोग करने के लिए मजबूर करती है, और उसे पिच के बीच में रखती है। जैसा कि ऑरसन वेल्स ने कहा, ‘‘रेडियो मन का रंगमंच है’’। यही कारण है कि बी.बी.सी. के ‘टैस्ट मैच स्पैशल’ और ए.बी.सी. के ‘ग्रैंडस्टैंड’ के पास समर्पित चैनल और श्रोता हैं, जिनमें उनके पॉडकास्ट भी शामिल हैं। इन कार्यक्रमों की सफलता मुख्य रूप से उनकी गुणवत्ता के अडिग मानकों के कारण है। शीर्ष स्तर के कमैंटेटरों को शामिल करना महत्वपूर्ण है जो अंतत: श्रोता के साथ एक दीर्घकालिक संबंध विकसित करते हैं। 

रेडियो पर भारतीय क्रिकेट कमैंट्री अब औसत दर्जे की धूल में क्यों ढकी हुई है? 4 या 5 कमैंटेटरों को छोड़कर, यह तथ्यों और आंकड़ों की एक नीरस सूची है, और कुछ नहीं। कोई रंग नहीं, कोई संदर्भ नहीं, कोई इतिहास नहीं, कोई मजाक नहीं। यह एक खोया हुआ अवसर है। इस पर विचार करें। 2022 के पहले तीन महीनों में ए.आई.आर. के प्रतिमाह औसतन 2 करोड़ श्रोता थे।
ए.आई.आर. के लिए अच्छी सामग्री बनाने और विश्व स्तरीय क्रिकेट कमैंट्री का निर्माण करके बड़े दर्शकों तक पहुंचने की बहुत संभावना है। यहां 3 सुझाव दिए गए हैं-

(क) प्रत्येक भाषा के लिए समॢपत चैनल ही आगे का रास्ता है। हिन्दी और अंग्रेजी कमैंटेटरों द्वारा एक जोड़ी के रूप में कमैंट्री करना अच्छी रेडियो कमैंट्री को खत्म करने का सबसे पक्का तरीका है। 
(ख) आकाशवाणी के लिए कमैंटेटरों की चयन प्रक्रिया एक अपारदर्शी प्रक्रिया है। शीर्ष-स्तरीय कमैंटेटरों का समूह बनाने के लिए निष्पक्ष और पेशेवर निर्णय प्रक्रिया का होना आवश्यक है। 
(ग) आकाशवाणी के कमैंटेटरों के पैनल से, उन लोगों का चयन करना आवश्यक है, जिन्हें क्रिकेट की पूरी समझ हो, और श्रोताओं को आकर्षित करने के लिए शैली/शब्दावली हो। इस सिद्धांत पर क्रिकेट कमैंटेटरों को स्लॉट करने का कोई फायदा नहीं है कि ‘पैनल के प्रत्येक व्यक्ति को एक मौका दिया जाना चाहिए’, भले ही आकाशवाणी की ऑडियंस रिसर्च यूनिट द्वारा उनकी रेटिंग कुछ भी हो। 

यह एक कमी है जिसे तुरंत ठीक करने की आवश्यकता है। शायद रेल मंत्री, जो इलैक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री तथा सूचना और प्रसारण मंत्री भी हैं (जो इस कॉलम के विषय से संबंधित हैं), यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे कि ‘कोई अभी भी आपसे प्यार करता है, रेडियो गा गा’।

भारतीय क्रिकेट की आवाज पी.एस.  हर्षा भोगलेे, जिन्होंने अपना करियर एक स्वतंत्र खेल पत्रकार और रेडियो कमैंटेटर के रूप में शुरू किया था, ने मुझे बताया, ‘‘ऑल इंडिया रेडियो ने मेरे लिए दरवाजा खोला, लेकिन आप आकाशवाणी पर पूर्णकालिक पेशेवर नहीं हो सकते। मैं इसे एक पेशा बनाना चाहता था। जब मैंने बी.बी.सी./ए.बी.सी. करना शुरू किया तो मेरी सबसे बड़ी सीख यह थी कि हम भी उतने ही अच्छे हो सकते हैं।’’ अब समय आ गया है कि हर्षा को एक नई टीम का कप्तान नियुक्त किया जाए जिसका काम भारतीय रेडियो क्रिकेट कमैंट्री को विश्व स्तरीय बनाना होना चाहिए।-डेरेक ओ’ब्रायन (संसद सदस्य और टी.एम.सी. संसदीय दल (राज्यसभा) के नेता)
 


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