राजनीति में गाली-गलौच सुन-सुनकर देशवासी पक गए हैं

punjabkesari.in Monday, Mar 11, 2024 - 05:20 AM (IST)

कुछ वर्ष पहले जब मैंने अपने इसी कॉलम में कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए ममता दीदी के सादगी भरे जीवन पर लेख लिखा था तो एक खास किस्म की मानसिकता से ग्रस्त लोगों ने मुझे ट्विटर (अब एक्स) पर गरियाने का प्रयास किया। पिछले हफ्ते जब मैंने संदेशखाली की घटनाओं के संदर्भ में ममता बनर्जी की कड़ी आलोचना की तो उन लोगों में यह नैतिक साहस नहीं हुआ कि एक्स पर लिखें ‘मान गए कि आप निष्पक्ष पत्रकार हैं’। इसी तरह 2003 में जब मैंने सोनिया गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हुए एक लेख लिखा था, जिसमें दोनों के गुण दोषों का जिक्र था, तो कुछ मित्रों ने पूछा ‘तुम किस तरफ हो, यह समझ में नहीं आता।’ मैंने पलट कर पूछा कि क्या कोई पत्रकार बिना तरफदारी के अपनी समझ से सीधा खड़ा नहीं रह सकता? क्या उसका एक तरफ झुकना अनिवार्य है? 

आज के हालात ऐसे ही हो गए हैं, जिनमें विरला ही होगा जो बिना झुके खड़ा रहे। प्राय: सब अपने-अपने आकाओं के आंचल की छांव में फल-फूल रहे हैं। जनता का दुख-दर्द, लिखे जा रहे तर्कों की प्रामाणिकता, पत्रकारिता में निष्पक्षता, सब गई भाड़ में। अब तो पत्रकारिता का धर्म है कि अपना मुनाफा क्या लिखने या बोलने में है, उसे बिना झिझके एलानिया करो। दरअसल हर लेख की विषयवस्तु के अनुसार उसके समर्थन में संदर्भ खोजे जाते हैं। किसी एक लेख में हर व्यक्ति की हर बात का इतिहास लिखना मूर्खता है। यह सब भूमिका इसलिए, कि आज मैं राजनीतिक लोगों के बिगड़ते बोलों पर चर्चा करूंगा। तो कुछ सिरफिरे कहेंगे कि मैं फलां के भ्रष्टाचार पर क्यों नहीं लिख रहा। तो क्या ऐसे लोग बता सकते हैं कि आज देश का कौन-सा बड़ा नेता या राजनीतिक दल है, जो आकंठ भ्रष्टाचार में नहीं डूबा? या देश में कौन-सा नेता है, जो अपने दल की आय-व्यय का ब्यौरा देश के सामने खुलकर रखने में हिचकिचाता नहीं? 

आज का लेख इन नेताओं और इनके कार्यकत्र्ताओं की भाषा पर केंद्रित है, जो दिनों-दिन रसातल में जा रही है। अब तो कुछ सांसद संसद के सत्र तक में हर मर्यादा का खुलकर उल्लंघन करने लगे हैं। उनकी भाषा गली-मोहल्ले से भी गई-बीती हो गई है। सोचिए, देश के करोड़ों बच्चों, युवाओं और बाकी देशवासियों पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा होगा? गनीमत है ऐसे कुछ सांसदों के टिकट इस बार कट रहे हैं। पर इतना काफी नहीं है। हर दल के नेताओं को इस गिरते स्तर को उठाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। अपने कार्यकत्र्ताओं और ‘ट्रोल आर्मीज’ को राजनीतिक विमर्श में संयत भाषा का इस्तेमाल करने के कड़े आदेश देने होंगे। ऐसा नैतिक साहस वही नेता दिखा सकता है, जिसकी  खुद की भाषा में संयम हो। इस संदर्भ में मैं अखिलेश यादव के आचरण का उल्लेख करना चाहूंगा। मेरी नजर में अपनी कम आयु के बावजूद जिस तरह का परिपक्व आचरण व विरोधियों के प्रति भी संयत और सम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल अखिलेश यादव करते हैं, ऐसे उदाहरण देश की राजनीति में कम ही मिलेंगे। 

मेरा अखिलेश यादव से परिचय 2012 में हुआ था, जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बने। मैं मथुरा के विकास के संदर्भ में उनसे मिलने गया था। ब्रज सजाने के लिए उनका उत्साह और तुरंत सक्रियता ने मुझे बहुत प्रभावित किया। मथुरा की हमारी सांसद हेमा मालिनी तक अखिलेश के इस व्यवहार की मुरीद हैं। 2012 से आज तक मैंने अखिलेश यादव के मुंह से कभी भी किसी के भी प्रति न तो अपमानजनक भाषा सुनी, न उन्हें किसी की ङ्क्षनदा करते हुए सुना। विरोधियों को भी सम्मान देना और उनके सही कामों को तत्परता से करना अखिलेश यादव की एक ऐसी विशेषता है, जो उनके कद को बहुत बड़ा बना देती है।  कई बार कुंठित या चारण कि़स्म की पत्रकारिता करने वाले टी.वी. एंकर अखिलेश यादव को उकसाने की बहुत कोशिश करते हैं। पर वह बड़ी शालीनता से उस स्थिति को सम्भाल लेते हैं। क्या आज हर दल और नेता को इससे कुछ सीखना नहीं चाहिए? सोचिए, अगर ऐसा हो तो देश का राजनीतिक माहौल कितना खुशगवार बन जाएगा। टी.वी. शो हों या सोशल मीडिया, आज हर जगह गाली-गलौच की भाषा सुन-सुनकर देशवासी पक गए हैं। 

अखिलेश यादव जैसे सरल स्वभाव वाले व्यक्ति को जो लोग बात-बात पर ‘टोंटी चोर’ कहकर अपमानित करते हैं, उन्हें अपने दल के नेताओं के भी आचरण और कारनामों को भूलना नहीं चाहिए। कोई दूध का धुला नहीं है। टोंटी चोर, फेंकू, जुमलेबाज, चारा चोर, पप्पू - ऐसी सारी भाषा अब इस चुनाव की राजनीति में बंद होनी चाहिए। इस भाषा से ऐसा बोलने वालों का केवल छिछोरापन दिखाई देता है और देश के सामने मौजूद गंभीर विषयों से ध्यान हट जाता है। कौन-सा नेता या दल कितने पानी में है, जनता सब जानती है। 

ऐसा नहीं कि जिन्हें वह वोट देती है, उन्हें पाक-साफ मानती है। उन्हें वोट देने के उसके कई दूसरे कारण भी होते हैं। इसलिए ज्यादा वोट पाकर चुनाव जीतने वाले को अपने महान होने का भ्रम नहीं पालना चाहिए। क्योंकि किसी और को पता हो न हो, अपनी असलियत उससे तो कभी छिपी नहीं होती। भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि सारी सृष्टि प्रकृति के तीन गुणों: सतोगुण, रजोगुण व तमोगुण से नियंत्रित है, जिसका कोई भी अपवाद नहीं। हां, कौन-सा गुण किसमें अधिक या किसमें कम है, यह अंतर जरूर रहता है। पर तमोगुण से रहित तो केवल विरक्त संत या भगवान ही हो सकते हैं, हम और आप नहीं। राजनेता तो कभी हो ही नहीं सकते क्योंकि राजनीति तो है ही काजल की कोठरी, उसमें से उजला कौन निकल पाया है? इसलिए कहता हूं ‘भाषा सुधारो-देश सुधरेगा।’ क्यों ठीक है न?-विनीत नारायण      


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