कहानी एक महत्वाकांक्षा की, फैसला जनता करेगी

punjabkesari.in Friday, Dec 10, 2021 - 03:38 AM (IST)

केंद्र में सत्तासीन मोदी-शाह की जोड़ी वर्तमान में अपनी पार्टी के लिए प्रमुख सिख चेहरों की तलाश में है। ऐसा दिखाई देता है कि महाराष्ट्र के आई.पी.एस. कैडर में मेरे पूर्व कनिष्ठ सहयोगी सर्बदीप सिंह विर्क की भी तलाश की जा रही थी। इसलिए मुझे 4 दिसम्बर को मुम्बई के एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक के पृष्ठों में सर्बदीप का नाम सत्ताधारी पार्टी के सदस्य के रूप में पढ़ कर कोई हैरानी नहीं हुई। 

मैं सर्बदीप को पहले दिन से जानता हूं जब उन्होंने तथा परविंद्र सिंह पसरीचा ने मुम्बई स्थित आई.जी.पी. के कार्यालय में ड्यूटी के लिए रिपोर्ट किया। केवल वही दो आई.पी.एस. प्रोबेशनर थे, जो उस वर्ष महाराष्ट्र को आबंटित किए गए थे और यह भी कि दोनों पंजाब से तथा दोनों ही सिख थे। 

परविंद्र ने यातायात प्रबंधन में विशेषज्ञता हासिल की और अपना अधिकतर कामकाजी जीवन मुम्बई शहर में बिताया। दूसरी ओर सर्बदीप ने खुद को लोगों के एक अच्छे नेता के तौर पर स्थापित किया। पुणे शहर में, जहां उन्हें पुलिस उपायुक्त के तौर पर तैनात किया गया, वह काफी बदलाव लाए। हमारे रास्ते कई वर्षों बाद पंजाब में टकराए जब मैंने अप्रैल 1986 से 2 वर्षों के लिए पंजाब पुलिस का नेतृत्व किया। जब मैंने चंडीगढ़ में बल की कमान संभाली, वह राज्य के सबसे महत्वपूर्ण जिले अमृतसर के पुलिस अधीक्षक थे। 

पंजाब में आतंकवाद की समस्या बारे उनकी ब्रीफिंग्स मेरे लिए मूल्यवान थीं। मैं नहीं कह सकता कि मेरे युवा मित्र (वह तुलनात्मक रूप से युवा थे जब मैं आखिरी बार उनसे मुम्बई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में मिला था जहां वह एक बड़ी सर्जरी करवा रहे थे) तथा सर्वाधिक शक्तिशाली पार्टी, जो अब भारत में राजनीतिक मंच पर पांव फैलाए बैठी है, के बीच ‘सुविधा की शादी’ से किसे लाभ होगा। सर्बदीप तथा अन्य सिखों को पार्टी में शामिल करना भाजपा की योजना का एक हिस्सा है। क्या दोनों को लाभ होगा या महज एक को और वह कौन होगा? 

वर्तमान में पंजाब में चुनावी परिदृश्य बहुत पेचीदा है। कांग्रेस, जो कुछ महीने तक लाभ में थी अब अपने ही पार्टी अध्यक्ष की हरकतों के कारण संघर्षरत है। जब भी जरूरत पड़ी, कांग्रेस सर्बदीप के लिए मददगार साबित हुई, जैसे कि जब वह पंजाब के लिए या बाद में सी.आर.पी.एफ. के लिए डैपुटेशन चाहते थे ताकि वह पंजाब में रह सकें अथवा जब उन्होंने सोचा कि उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जाना चाहिए या जब उन्हें महाराष्ट्र के अपने मूल काडर में लौटने की जरूरत पड़ी ताकि अकाली दल तथा इसके मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के कोप से बचा जा सके। 

जिस राज्य को उन्होंने बड़े फायदे के लिए त्याग दिया था, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दखल से उसने उनका खुली बांहों से स्वागत किया। यहां तक कि सेवानिवृत्त होने से पहले वह राज्य पुलिस के शीर्ष पद पर भी रहे। मेरा यह मानना है कि यदि उनका राजनीतिक करियर बनता है तो उन्हें उसके लिए कांग्रेस का शुद्ध मन से आभारी होना चाहिए। स्वाभाविक है कि उन्होंने अलग गणनाएं कीं। भाजपा उन्हें उपराज्यपाल के तौर पर नियुक्त कर सकती थी जैसा कि उसने किरण बेदी के साथ किया, जब वह नई दिल्ली का चुनाव हार गईं। 

मेरे मित्र सर्बदीप एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं और आम तौर पर वह जो चाहते हैं उसमें सफल होते हैं। मेरी अपनी विचारधारा ऊपरी तौर पर उनसे भिन्न है। मेरा मानना है कि यदि आप नहीं चाहते कि आपको डंक मारा जाए तो आपको आवश्यक तौर पर अपनी महत्वाकांक्षाएं त्यागनी होंगी, तब कोई भी चीज आपको उदास तथा अप्रसन्न नहीं बना सकती। सर्बदीप की अपने राजनेता के नए अवतार में तरक्की अब मतदाताओं पर निर्भर करेगी। किसानों के मत की व्यग्रता से प्रतीक्षा हो रही है। वे किस ओर जाएंगे? कांग्रेस की ओर! ‘आप’ की ओर, जिसने पिछले कुछ वर्षों में राज्य में मजबूती से घुसपैठ की है? कैप्टन अमरेंद्र सिंह की नई पार्टी की ओर जिसने अभी तक शुरूआत नहीं की है? 

संभवत: कैप्टन असंतुष्टों की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिन्हें टिकट नहीं दिए गए। मेरे अपने विचार में इसमें काफी देर हो जाएगी। कैप्टन को अब शुरूआत कर देनी चाहिए जैसा कि भाजपा कर रही है तथा ममता दीदी अब त्रिपुरा तथा गोवा में कर रही हैं। यदि वह मामला लटकाते रहेंगे तो भविष्य की कांग्रेस/भाजपा सरकार उन्हें एक कनिष्ठ भूमिका सौंप देंगी जैसा कि महाराष्ट्र में शिवसेना को दी गई है जब उसने भाजपा से कम सीटें जीतीं। 

संभवत: अकाली दल गड्ढे से बाहर कूदना शुरू कर देगा, जिसमें वह नशों के प्रसार की दुर्गंध फैलनी शुरू होने के बाद गिर गया था या क्या वह अभी भी लोगों के मनों में बसा है? मुझे इसका उत्तर नहीं पता, मगर मैं जानता हूं कि किसानों, जो उसका समर्थन आधार बनाते हैं, ने संभवत: पार्टी को त्याग दिया है यहां तक कि तब भी, जब अकालियों ने राजग को छोड़ दिया है। किसानों को अभी अपनी चुनावी प्राथमिकताओं के बारे निर्णय लेना है लेकिन ऐसा दिखाई देता है जैसे अभी अकाली दल संभवत: उनकी प्राथमिकता नहीं। 

जब तक किसान निर्णय लेते हैं, सर्बदीप जैसे मेरे मित्र को प्रतीक्षा करनी होगी। सर्बदीप के किसानों में भी काफी संबंध हैं लेकिन इस समय कोई भी किसान एक संगठन के तौर पर किसानों की एकता को पंक्चर नहीं करना चाहेगा जिसने एक साल लम्बे आंदोलन के बाद फल हासिल किया है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 
 


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