कुछ राज्यपाल खुद ही मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं
punjabkesari.in Sunday, Nov 27, 2022 - 05:55 AM (IST)

भारत में 28 राज्य हैं। पुड्डुचेरी तथा दिल्ली विधानसभा वाले 2 केंद्र शासित प्रदेश हैं। जम्मू और कश्मीर एक राज्य था जब तक कि इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित नहीं किया गया। प्रत्येक राज्य का प्रमुख एक राज्यपाल होता है। राज्य विधानसभा के चुनाव होते हैं। क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों से चुने गए सदस्य विभिन्न दलों से संबंधित होते हैं। सबसे बड़ी पार्टी के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है और उसे प्रमुख के रूप में शपथ दिलाई जाती है। मुख्यमंत्री राज्य की जनता का चुना हुआ नेता होता है।
मुख्यमंत्री के परामर्श पर ही मंत्री नियुक्त होते हैं। यही वेस्टमिंस्टर संसदीय प्रणाली है। भारत ने इसी प्रणाली का अनुसरण 30 वर्षों तक किया। इसी प्रणाली ने बेहतर ढंग से कार्य किया तथा मामूली त्रुटियों को तुरन्त ठीक कर लिया गया।
एक सरकार : लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिन्हें वेस्टमिंस्टर प्रणाली पसंद ही नहीं है। विस्तार से देखा जाए वे राज्यों को पसंद ही नहीं करते, न ही वे निर्वाचित विधायिका को पसंद करते हैं। उन्हें मुख्यमंत्री भी पसंद नहीं है। सारांश में कहा जाए तो वे राज्य सरकारों से छुटकारा पाना चाहेंगे। यदि चीन में 1428 मिलियन लोगों के पास एक सरकार हो सकती है भारत में 1412 मिलियन लोगों के साथ ऐसा क्यों नहीं हो सकता।
वेस्टमिंस्टर मॉडल का विरोध बढ़ रहा है। कुछ लोगों ने राज्य के गवर्नरों को नियुक्त किया है। एक राज्य का राज्यपाल एक नाममात्र प्रमुख (ब्रिटिश स्मार्ट की तरह होता है) और सरकार राज्यपाल के नाम पर चलाई जाती है। संविधान राज्यपाल की शक्तियों को (अनुच्छेद 163) की सीमाएं निर्धारित करता है। राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मुख्यमंत्री के साथ एक मंत्रिपरिषद होती है। संविधान के अंतर्गत राज्यपाल अपनी शक्तियों और कार्यों का निर्वहन करता है।
भाषा साधारण और सहज है। वेस्टमिंस्टर मॉडल की पृष्ठभूमि में माना जाता है कि हमने अनुच्छेद 163 का अर्थ नि:संदेह स्वीकार किया है। इंगलैंड में सम्राट की तरह राज्यपाल के पास कोई वास्तविक शक्तियां नहीं होती हैं। वह केवल अपने विवेकाधिकार में केवल उन मामलों में कार्य कर सकता है जहां संविधान को ऐसा करने की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य में अपने फैसले में उसे सही ठहराया : ‘हम अपने संविधान की इस शाखा के कानून की घोषणा करते हैं कि राष्ट्रपति और राज्यपाल अपनी औपचारिक संवैधानिक शक्तियों का उपयोग केवल कुछ प्रसिद्ध लोगों को छोड़कर उनके मंत्रियों की सलाह के अनुसार ही करेंगे।’
हद पार करना : फिर भी हमारे पास ऐसे गवर्नर हैं जो मुख्यमंत्रियों पर प्रभुत्ता स्थापित करना चाहते हैं। वे मुख्यमंत्री बनने के इच्छुक हैं।
* विधेयक के कानून बनने के लिए राज्यपाल की सहमति आवश्यक है। अनुच्छेद 200 प्रदान करता है कि राज्यपाल सहमति दे सकता है या अनुमति को रोकना या राष्ट्रपति के विचार के लिए इसे सुरक्षित रख सकता है। यदि किसी विधेयक पर सहमति रोकी जाती है तो विधेयक को विधान मंडल को पुर्नविचार के लिए वापिस किया जाना चाहिए। यदि संशोधन सहित या संशोधन के बिना विधेयक फिर से पारित हो जाता है तो राज्यपाल बाध्य होता है कि अपनी सहमति दे। ऐसे राज्यपाल भी हैं जो बिलों पर बस बैठे हैं। स्पष्ट कारण यह है कि राज्यपाल कितनी बार किसी विधेयक को पढ़ेगा और उस पर विचार करेगा? यदि वह विधेयक को समझने में सक्षम नहीं है तो राज्यपाल को अपनी अक्षमता का हवाला देते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए।
* राज्यपाल राज्य सरकारों का खंडन करते हैं। एक राज्य सरकार है जोकि नई शिक्षा नीति तथा तथाकथित त्रिभाषा फार्मूले का विरोध करती है। राज्य के राज्यपाल ने राज्य सरकार का खंडन किया और एन.ई.पी. के गुण तथा त्रिभाषा फार्मूले की प्रशंसा की। अन्य मामलों को लेकर भी राज्य के राज्यपाल ने राज्य सरकार का खंडन किया। उस राज्य के सांसदों ने राज्य सरकार द्वारा समर्थन पाकर राज्यपाल को वापस बुलाने के लिए राष्ट्रपति को हस्ताक्षरित ज्ञापन सौंपा।
* राज्यपाल असंगत और उत्तेजक टिप्पणियां करते हैं। एक राज्यपाल ने तो कहा कि छत्रपति शिवाजी पुराने दिनों के एक ‘प्रतीक’ थे।
* राज्यपाल अभद्र टिप्पणी करते हैं। एक राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के बारे में कहा कि ‘अगर मुख्यमंत्री को जानकारी नहीं थी उसके कार्यालय से कोई एक उप कुलपति को एक रिश्तेदार को नियुक्त करने का निर्देश दे रहा था तो यह दर्शाता है कि वह राज्यपाल कितने अक्षम हैं। अगर उसे पता होता है तो वह भी उतने ही दोषी हैं।’ इससे पहले इसी राज्यपाल ने कहा था कि वह मुख्यमंत्री के पिछले राजनीतिक रिकार्ड के बारे में जानते हैं। एक मौके पर युवा पार्टी नेता (अब सी.एम.) को अपने कपड़े बदलने पड़े (इसका मतलब है कि उन्होंने खुद को गीला कर लिया था)।
* राज्यपालों को मुख्यमंत्री के विरोध में पार्टी के नेताओं का स्वागत करने के लिए पुरस्कृत किया गया है। उन्हें ‘अभिभावक’ या संरक्षक कहा गया है। दूसरी तरफ राज्यपालों को संवैधानिक मानदंड का निरीक्षण के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
खुजली : राज्यपाल मुख्यमंत्रियों की तरह व्यवहार क्यों करते हैं। एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और पूर्व आर.बी.आई. के गवर्नर डा. सी. रंगराजन, जो एक राज्य के राज्यपाल भी थे, ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘फोर्कस इन द रोड’ में यह कहा है, ‘विशुद्ध रूप से राजनीतिक नियुक्तियों को उन मुख्यमंत्रियों से निपटने में समस्या होती है जो उनकी पार्टी के नहीं हैं।’ उन व्यक्तियों को राज्यपाल नियुक्त किया जाता है जिन्होंने आमतौर पर पूर्व में कोई जिम्मेदार पद पाया हो। वे व्यावहारिक प्रशंसक थे और शक्ति का प्रयोग करने के अभ्यस्त थे। अभिनय करने की खुजली कई बार स्पष्ट दिखाई देती है। यह वह है जिसे उन्हें नियंत्रित करना सीखना चाहिए।-पी. चिदम्बरम