विश्व का ‘चौधरी’ बनने की कोशिश में हैं ट्रम्प
punjabkesari.in Tuesday, May 27, 2025 - 05:43 AM (IST)

कभी जिन डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी की दोस्ती के चर्चे थे, आज उनकी संवादहीनता का असर अमरीका और भारत के रिश्तों पर साफ दिख रहा है। बेशक ट्रम्प के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद मोदी अमरीका गए। वहां दोनों में बात भी हुई। संभव है, पहलगाम हमले के बाद और ‘ऑप्रेशन सिंदूर’ के बीच भी दोनों में बात हुई हो, लेकिन ट्रम्प के दूसरे राष्ट्रपति काल में भारत के प्रति अमरीका का व्यवहार एकदम बदला हुआ दिख रहा है।
भारत-पाक के बीच सैन्य टकराव में अचानक संघर्ष विराम कराने और उसमें व्यापार रोकने की धमकी की भूमिका जैसे ट्रम्प के दावे इस बदलाव की पराकाष्ठा हैं। यह बहस का विषय है कि 2 देशों के बीच रिश्तों में शासनाध्यक्षों की मित्रता की कोई भूमिका रहती भी है या फिर देशों के हित ही निर्णायक होते हैं? लेकिन ट्रम्प और मोदी, दोनों ही मित्रता का प्रदर्शन करने से कभी चूके नहीं। इसलिए अमरीका का बदला हुआ रुख कई असहज और गंभीर सवाल खड़े करता है। आतंकवाद का पालन-पोषण करने वाले पाकिस्तान और उससे पीड़ित भारत, दोनों को ट्रम्प ने जिस तरह ‘महान देश’ बताते हुए एक ही श्रेणी में रखा, वह आपत्तिजनक है। इसका दक्षिण एशिया में शांति और शक्ति संतुलन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। तीसरे पक्ष की भूमिका से भारत के इंकार के जगजाहिर स्टैंड के बावजूद ट्रम्प ने कश्मीर विवाद में मध्यस्थता का राग भी अलापा।
अंतर्राष्ट्रीय मामलों के कुछ जानकार ट्रम्प की हालिया बयानबाजी को उनकी सुॢखयों में रहने और दुनिया का ‘चौधरी’ बनने की मानसिकता का परिणाम मानते हैं। रूस-यूक्रेन तथा इसराईल-गाजा युद्ध में चली नहीं तो भारत-पाक में ही जबरन चौधराहट सही। लेकिन इसके दूरगामी परिणाम नजरअंदाज नहीं किए जा सकते। बेशक अतीत में भी अमरीका अक्सर पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा नजर आया है, लेकिन पिछले 3 दशक में उसके रिश्ते भारत से भी बेहतर हुए हैं। ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से भी बहुत पहले अमरीका-भारत परमाणु संधि उसका बड़ा प्रमाण है। फिर क्यों ट्रम्प का अमरीका, मित्र भारत की हर मोर्चे पर घेराबंदी करने में जुटा है? बात शुरू से शुरू करते हैं। ट्रम्प ने कट्टर प्रतिद्वंद्वी चीन के राष्ट्रपति तक को अपने शपथ ग्रहण का निमंत्रण भेजा, पर मोदी को नहीं। माना कि 4 साल बाद सत्ता में ट्रम्प की वापसी में उनके अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने और अमरीका को फिर महान बनाने के चुनावी वायदों की बड़ी भूमिका रही, पर क्या उसके लिए अवैध भारतीय प्रवासियों को हथकड़ी-बेडिय़ों में भेजना जरूरी था?
अन्य देशों के अवैध प्रवासियों के साथ तो ट्रम्प ने ऐसा अमानवीय व्यवहार नहीं किया। अमरीका और भारत, 2 बड़े कारोबारी सांझेदार हैं। फिर भी उन्होंने भारत को ऊंची टैरिफ लगाने का आदी बताते हुए कटाक्ष किया। 2 देशों के बीच टैरिफ का मामला बातचीत की मेज पर तय होता है, लेकिन ट्रम्प ने भारत समेत अनेक देशों के विरुद्ध जैसे ‘टैरिफ वॉर’ ही छेड़ दी, जिसका दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा। अंतत: बातचीत की मेज पर ही आना पड़ा। अगर अमरीका का चीन से टैरिफ समझौता हो गया है तो भारत से भी हो ही जाएगा, लेकिन ट्रम्प बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर एक-एक कर भारत से निर्माण समेटने का दबाव बना रहे हैं। यह निश्चय ही अमरीका को पुन: महान बनाने से ज्यादा भारत को निशाना बनाने की कवायद है।
ट्रम्प ने पहले एप्पल को भारत में निर्माण करने पर ऊंची टैरिफ के लिए धमकाया और अब सैमसंग समेत अन्य कम्पनियों पर भी भारत की बजाय अमरीका में निर्माण का दबाव बना रहे हैं। यह मित्र देश का व्यवहार हरगिज नहीं। सीरिया का मौजूदा अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा कभी खूंखार आतंकवादी अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नाम से जाना जाता था। तब अमरीका ने उसे ‘ग्लोबल टैरोरिस्ट’ घोषित कराते हुए उस पर 10 मिलियन डॉलर का ईनाम रखा था, लेकिन रियाद में ट्रम्प उसके साथ हाथ मिला कर फोटो खिंचवाते नजर आए। सीरिया पर लगाए गए प्रतिबंध हटाए जाने की भी खबरें हैं।
समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि मूलत: व्यापारी ट्रम्प की राजनीति, और अब कूटनीति भी कारोबारी हितों से संचालित हो रही है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश अमरीका, जिसके राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी माना जाता है, का ऐसा आचरण विश्व समुदाय के लिए ङ्क्षचता का विषय होना चाहिए। अब वापस भारत के प्रति अमरीकी व्यवहार पर लौटते हैं। पाकिस्तान दुनिया में आतंकवाद की सबसे बड़ी नर्सरी है, यह बात अमरीका अच्छी तरह जानता है। आखिर अमरीका पर 9/11 के आतंकी हमलों का मुख्य षड्यंत्रकारी अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ही मारा गया था।
भारत में पाक प्रायोजित आतंकी हमलों के सबूत भी अमरीका समेत विश्व समुदाय को समय-समय पर दिए जाते रहे हैं। इसके बावजूद हालिया सैन्य टकराव में व्यापार बंद करने की धमकी दे कर संघर्ष विराम कराने का दावा करते हुए ट्रम्प ने जिस भारत और पाकिस्तान तथा उनके नेतृत्व को समान रूप से ‘महान’ बताया, वह कूटनीतिक मर्यादा और प्राकृतिक न्याय, दोनों के विपरीत है। उधर पाकिस्तान की खनिज सम्पदा के दोहन के लिए भी अमरीका लगातार प्रयासरत है। विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र अमरीका की सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के मुकाबले आतंकवादी देश पाकिस्तान पर मेहरबानी के कारण समझने के बावजूद मित्रता खुशफहमी हमारी समझदारी नहीं। ट्रम्प की अवसरवादी कूटनीति से सही सबक ले कर भारत को भी अपनी रणनीतिक प्राथमिकताएं नए सिरे से तय करनी चाहिएं।-राज कुमार सिंह