नए नवाब बनने का ख्वाब फौरन छोड़ दें

punjabkesari.in Monday, Jun 02, 2025 - 06:00 AM (IST)

दशकों पहले की बात है। एक सज्जन और बेहद ताकतवर सत्ता शीर्ष के अत्यंत करीब अधिकारी अच्छे प्रशासन के बारे में बेबाकी से अपनी राय रख रहे थे। जब पुलिस पर बात आई तो कहने लगे कि लोगों में ‘निजाम का खौफ’ होना चाहिए। प्रशिक्षण के दौरान एक आई.आई.टी. से पढ़े, अति-उत्साही पुलिस अधिकारी से मिलना हुआ। 6 साल से लोगों को न्याय दे रहे थे। उन्होंने भी जूत थ्योरी पर विस्तार से बताया कि कैसे जूते का कील कांटे से बचने-बचाने से भी इतर एक असरदार इस्तेमाल है। पिटाई का वह ड्यूल-यूज हथियार जो शरीर से आगे आत्मा तक चोट करता है। लाठी-डंडे, थप्पड़-मुक्के में वह पैनापन कहां? बेशक वे ये बातें उन लोगों के संदर्भ में कह रहे थे जिन्होंने ठगी और बदमाशी को पेशा बना रखा है। जो प्रजातंत्र की उदारता कि हजार दोषी छूट जाएं एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए, का जमकर दोहन करते हैं। उन पर भावातिरेक में जूते-चप्पल, लात-घूंसे चल भी जाएं तो आम स्वीकृति है कि इसे मानवाधिकार का हनन न माना जाए।

अच्छा थानेदार क्यों और कैसे बनें? प्रश्न यह है कि जिन पर यह जिम्मेदारी आ पड़ी है, अर्थात थानेदार, वह बिना लाठी तोड़े इस सांप को कैसे मारे? सुरक्षा की मांग इतनी तीव्र है कि इसकी आपूर्ति में थोड़ी भी बाधा हो तो लोग सड़कों पर उतर आते हैं। अखबार सनसनी फैलाने के लिए कलम तोड़ देते हैं। न्यायालय स्वत: संज्ञान ले लेता है। इस उथल-पुथल में सबसे पहले थानेदार की नैया डूबती है।  क्राइसिस मैनेजमैंट का यह अनूठा उदाहरण है  कि अगर तेज आंधी-तूफान आ जाए तो पहले घर का छप्पर खुद ही उड़ा दो। शायद इसीलिए यह चक्र चलता रहता है। सनसनीखेज वारदात, जन-आक्रोश प्रदर्शित करती भीड़, थानेदार मुअत्तल्ली द्वारा सर्वमान्य, सुलभ क्राइसिस मैनेजमैंट, कुछ महीने का सतही ठहराव और फिर वही क्रम। 

सब अपनी-अपनी जगह व्यवस्थित हैं। ऐसे में थानेदार की सहज जिज्ञासा होती है कि क्या वह अपना भाग्य बदल सकता है? मेरा कहना है कि आप कोशिश तो करो। पहले अपने काम के स्वरूप को समझें। हजारों साल के राजा, सुल्तान नवाब और तानाशाह जब नहीं चल पाए तो प्रजातंत्र आया। इस व्यवस्था में लोग तय करते हैं कि कौन क्या करेगा। सो नए नवाब बनने का ख्वाब और प्रयास दोनों फौरन छोड़ दें। सिनेमा बनाने वाले अपने काम के लिए काला बाजार से पैसा उठाते हैं। ठग-बदमाशों को चमकदार दिखाना उनकी पेशेवर मजबूरी है, जो कालांतर में लोगों की पसंद बन गया है। 

एक इलाका आपके पास है जहां अधिकांश लोग फसाद नहीं चाहते। आपसे अपेक्षा करते हैं कि आते-जाते मिलना हो जाए तो आप उनसे अच्छा बर्ताव करेंगे, मुसीबत में उनकी सहायता करेंगे, ठग-बदमाशों का जीना मुहाल कर देंगे और ये सब ऐसे करेंगे कि वे निर्विघ्न सो पाएं, निर्बाध अपने रास्ते चल पाएं। इसके लिए बुद्धि और विवेक चाहिए। एक तो यह मान लें कि आपके पास कोई जादुई छड़ी नहीं है और न ही कहीं से यह आपको मिलने वाली है। फिर ‘पब्लिक’ कोई बड़ा पत्थर नहीं है। यह एक जंगल की तरह है जहां तरह-तरह के जीव बसते हैं। 100 से  90 जो अमन पसंद हैं उनको अपनी तरफ रखने का जुगाड़ लगाएं। ठग-बदमाश अक्सर इनको आपके पीछे लगा देते हैं। आप समय रहते इनको ठग-बदमाशों के खिलाफ कर दें। अगर आप मिलने वालों से सहृदयता से पेश आएं, जो हो सके वह खुशी-खुशी करें तो ये आश्वस्त हो जाएंगे कि आप उनकी तरफ हैं। बहुत संभव है कि मान लेंगे कि उनको भी आपकी तरफ होना चाहिए। दो-चार गरीबी के मारों को जो करना पड़ता है वह कर लेते हैं। दो-चार सिनेमा-उपन्यास के भटकाए हैं कि इधर बड़ा रोमांच है, फटाफट तरक्की है। इनको जेल भेजना इनको बदमाशी के प्रशिक्षण केंद्र भेजने जैसा है। इनको कोई न कोई उस्ताद मिल ही जाएगा।

पक्के होकर निकलेंगे। सरकार लाखों-करोड़ की योजनाएं चलाती है कि कोई भूख-बीमारी से न मरे। उन्हें उधर का रास्ता दिखाएं। अपराध तरक्की का जरिया नहीं है, यह बताएं। अगर थोड़े भी बदल गए तो आपका बोझ कम होगा। और अंत में, सारे फसाद की जड़ सौ में एक-दो हैं जिनके लिए अपराध एक पेशा है। ये इसे संगठित और व्यवस्थित तरीके से चलाते हैं। तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, तंत्र खड़ा करते हैं। प्रभावशाली लोगों से गठजोड़ रखते हैं। उनका काम करते हैं। उनसे काम लेते हैं। अपराध की रिपोर्टिंग ‘टॉम एंड जैरी’ कार्टून शो की तरह है जहां लोगों को लोमहर्षक तरीके से पढ़ाया-दिखाया-भड़काया जाता है कि कैसे मुट्ठी भर अपराधी पुलिस को छकाए रख रहे हैं।  ऐसे अपराधियों की कोशिश रहती है कि जो थानेदार उनके हिसाब से नहीं चल रहा हो, टिक ही न पाए। भ्रष्टाचार, पुलिस बर्बरता और विधि व्यवस्था ध्वस्त होने की कहानियां अक्सर इन्हीं की फैलाई होती हैं। पुलिस विफलता के खिलाफ भीड़ को सड़कों पर उतरने के लिए उकसाने वाले यही होते हैं। इनकी दुर्गति में आपकी सद्गति है। उलटा भी उतना ही सच है। करने को तो हजार चीजें हैं। लेकिन अगर ऊपर  से ही शुरू करें तो आपकी जड़ें मजबूत होंगी। भले लोगों को लगेगा कि देश सचमुच आजाद है, सरकार उनकी हितैषी है और हम अगले 22 साल में विकसित देश बनकर जी-8 को जी-9 कर देंगे। इस महाभियान में आपके योगदान का समय शुरू होता है।-ओ.पी. सिंह (डी.जी.पी. हरियाणा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो)


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