क्या अब वजुभाई वाला को त्यागपत्र देना चाहिए

punjabkesari.in Sunday, May 20, 2018 - 02:42 AM (IST)

आज के दिन तो यदि भगवान भी मुझे कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला का अवतार धारण करने की पेशकश करें तो मैं नफरत से ठुकरा दूंगा। येद्दियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाकर उन्होंने जानीबूझी और भयानक गलती की जबकि येद्दि स्पष्ट रूप से बहुमत से वंचित थे बल्कि विधानसभा में विश्वासमत का भी सामना नहीं कर पाए। उनकी सफलता की सम्भावनाएं इतनी निराशाजनक थीं कि उन्होंने त्यागपत्र देना ही बेहतर समझा। इस पूरे घटनाक्रम से कर्नाटक के राज्यपाल की बुरी तरह किरकरी हुई है। 

खेद की बात तो यह है कि पूरा प्रकरण टालने योग्य था। पहली बात तो यह है कि 2001 से लेकर अब तक की अवधि में कम से कम 6 पूर्व उदाहरण मौजूद थे जब यह स्पष्ट रूप में निर्धारित किया गया था कि यदि दूसरे और तीसरे नम्बर पर आने वाली पाॢटयों के पास संयुक्त रूप में बहुमत हो तो उनके नेता को सबसे बड़ी पार्टी के नेता पर वरीयता देते हुए मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाएगा लेकिन राज्यपाल ने जानबूझ कर इसकी अनदेखी की। वैसे उनके पास ऐसा करने के लिए कोई दलील नहीं थी। 

दूसरे नम्बर पर 2006 में गठित 5 जजों के संविधान पीठ के फैसले सहित सुप्रीम कोर्ट के ऐसे स्पष्ट निर्णय हैं जो दो टूक कहते हैं कि जिस व्यक्ति के साथ बहुमत हो या जिसके साथ बहुमत आने की सबसे अधिक सम्भावना हो, राज्यपाल को हर हालत में उसे ही आमंत्रित करना चाहिए और वह ऐसे नैतिक सवाल उठा सकता है कि ऐसा बहुमत किस आधार पर या किस तरीके से सृजित किया गया है? 

मैं यहां रामेश्वर प्रसाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2006 में कहे गए शब्द प्रस्तुत करता हूं जो न केवल दो टूक रूप में स्पष्ट बल्कि असंदिग्ध भी हैं तथा कर्नाटक के राज्यपाल को इनकी अनदेखी करने का कोई अधिकार भी नहीं : ‘‘यदि कोई राजनीतिक पार्टी अन्य राजनीतिक पार्टियों या अन्य विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश करती है और बहुमत से स्थायी सरकार बनाने के संबंध में राज्यपाल को संतुष्ट कराती है तो राज्यपाल ऐसी सरकार गठित करवाने से इंकार नहीं कर सकते तथा अनैतिक या अवैध ढंगों से जोड़-तोड़ करके बहुमत तैयार करने के बारे में अपने अंतर्मुखी आकलन के आधार पर बहुमत के दावे को रद्द नहीं कर सकते। संविधान में राज्यपाल को इस प्रकार की कोई शक्तियां प्रदान नहीं की गई हैं। इस प्रकार की कोई शक्ति बहुमत के शासन के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विपरीत होगी। राज्यपाल की पदवी किसी निरंकुश राजनीतिक लोकपाल जैसी नहीं है। यदि राज्यपाल या राष्ट्रपति को इस तरह की शक्ति हासिल हो जाए तो इसके परिणाम बहुत ही भयावह होंगे।’’ 

तो अब वजुभाई वाला एक विकराल सवाल से बचकर नहीं निकल सकते। अधिकतर लोग इस सवाल से बहुत भयभीत होंगे। वह सवाल यह है कि क्या अब राज्यपाल को त्यागपत्र दे देना चाहिए? ऐसा करना न केवल सम्मानजनक होगा बल्कि कर्नाटक में जितनी बुरी तरह राज्यपाल के पद की गरिमा आहत हुई है उसे बहाल करने का यही एकमात्र रास्ता बचा है। अन्य बातों के साथ यह कहना असंगत नहीं कि अपने पद की गरिमा को उन्होंने जानबूझ कर और व्यक्तिगत रूप में आघात पहुंचाया है। यह आघात केवल येद्दियुरप्पा के चयन से ही नहीं बल्कि के.जी. बोपैया को अस्थायी विधानसभा अध्यक्ष नियुक्त करके भी पहुंचाया गया है। सच्चाई यह है कि राज्यपाल ने गलतियों और विवादों का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसकी मिसालें बहुत कम हैं। 

अपने व्यक्तित्व को जितनी भयावह क्षति वजुभाई वाला ने पहुंचाई है, उसके लिए बेशक उनकी हिमाकत को जिम्मेदार माना जाए तो भी लम्बे समय तक राजनीति में रह चुके इस महाशय को अवश्य ही यह एहसास करना होगा कि क्या कर्नाटक के राज्यपाल पद की गरिमा और छवि को बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी नहीं थी? इस प्रदेश के प्रति कम से कम इतनी कृतज्ञता तो उन्हें दिखानी ही होगी। लेकिन क्या वजुभाई वाला त्यागपत्र देंगे? मैं नहीं जानता लेकिन मन ही मन मुझे आशंका है। जिन बातों को पूरी तरह टाला जा सकता था, यदि उन्हीं को लेकर एक व्यक्ति गलती करने पर आमादा है तो उससे यह उम्मीद करनी भी मुश्किल है कि पराजया किरकरी की स्थिति में वह अपनी खुद की इज्जत बचाने के लिए या अपने पद की गरिमा के लिए कोई उचित कदम उठाएगा। इस तरह के व्यक्ति अपने हाथ में आई शक्तियों से चिपके रहते हैं और यह तथ्य न केवल भयावह है बल्कि चिंताजनक भी है। काश! मेरे दिमाग में आ रही बातें गलत सिद्ध हों। यदि मैं गलत सिद्ध होता हूं तो मैं सहर्ष वजुभाई वाला से क्षमा याचना करूंगा कि मैंने अकारण ही उन पर संदेह किया। लेकिन सबसे पहले तो उन्हें मुझे गलत सिद्ध करना होगा। पता नहीं मेरे दिल में यह बात बार-बार क्यों आती है कि वह ऐसा नहीं करेंगे?-करण थापर


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Pardeep

Recommended News

Related News