जन स्वास्थ्य सबसे अहम कड़ी

punjabkesari.in Wednesday, Sep 08, 2021 - 04:25 AM (IST)

26 नवम्बर, 1949 को हम भारतवासियों ने अपने सभी नागरिकों के लिए ‘सामाजिक न्याय’ सुनिश्चित करने का संकल्प लिया था। यह दृढ़ संकल्प हमारे स्वतंत्रता संग्राम में सतत् अंतॢनहित था और यह संविधान सभा में उपस्थित हमारे राजनेताओं के दृष्टिकोण का स्पष्ट प्रमाण है। अब जबकि हम देश की आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर गए हैं तो हमें स्वयं को उत्तरदायी अवश्य ही बनाना चाहिए और इसके साथ ही ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाने के औचित्य पर गहन चिंतन-मनन करना चाहिए। 

औपनिवेशिक शासन के दौरान ‘जन स्वास्थ्य’ एक उपेक्षित विषय था और ‘विदेशी अंत:क्षेत्र’ की अवधारणा हावी थी जिसके तहत केवल यूरोपीय समुदाय, अधिकारीगण और सैनिक ही चिकित्सा सुविधाओं से लाभान्वित होते थे। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवा मुख्य रूप से ब्रिटिश सरकार के प्रशासनिक प्रभागों (प्रैसीडैंसी टाऊन) के आसपास ही केंद्रित और ग्रामीण आबादी की पहुंच से परे होती थी। वैसे तो ब्रिटिश आक्रमणकारियों का उद्देश्य मूल निवासियों को सभ्य बनाना था लेकिन वे उस महान भारतीय पारंपरिक दर्शन से अनभिज्ञ थे जिसमें कहा गया है ‘शरीरमाद्यं खलु सर्वसाधनम’ अर्थात ‘स्वास्थ्य बेहतर जीवन की पहली शर्त है’। 

नेहरू रिपोर्ट (1928), कराची प्रस्ताव (1931), गांधीवादी संविधान (1946) और समाजवादी पार्टी का मसौदा संविधान (1948) में भी ‘जन स्वास्थ्य’ से संबंधित अधिकारों की वकालत की गई। भारतीय संविधान भी सरकार के नीति निर्देशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 47) के तहत जन स्वास्थ्य को सरकार का प्राथमिक कत्र्तव्य मानता है। भारत के नीति निर्माण में स्वास्थ्य का सदैव ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है और अब ‘सभी के लिए स्वास्थ्य’ के सरकारी आह्वान में इसका अनुमोदन किया गया है। यह निश्चित रूप से एक बड़ा लक्ष्य है क्योंकि हमारे देश में लगभग 1,500 लोगों के लिए केवल एक एलोपैथिक डाक्टर है; डब्ल्यू.एच.ओ.के 1:300 के मानदंड के सापेक्ष हमारे देश में नर्स-आबादी अनुपात 1:670 है और हमारे देश में प्रति 1,000 आबादी पर सिर्फ 1.4 बैड हैं, जबकि चीन में 4 बैड और श्रीलंका में 3 बैड हैं (15वां वित्त आयोग)। 

‘सबका विकास’ के लिए ‘सबका साथ’ अत्यंत आवश्यक है। इसका तात्पर्य यही है कि सबसे पहले तो स्वास्थ्य सेवा उन ग्रामीण क्षेत्रों में मुहैया कराने पर अवश्य ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए, जहां हमारे देश की दो-तिहाई आबादी रहती है। दूसरी अहम बात यह है कि जन स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को केवल सरकार, कंपनियों गैर-सरकारी संगठनों (एन.जी.ओ.), परोपकारियों और स्वयं ‘हम लोग’ के संयुक्त प्रयासों से ही मजबूत किया जा सकता है। ऐसे में भारत में विभिन्न हितधारकों की कुछ पहलों पर चर्चा करना बिल्कुल उचित रहेगा जो निश्चित रूप से उल्लेख करने के लायक हैं। 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने ग्राम संसाधन केंद्रों (वी.आर.सी.) के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सहयोग दे रहा है। ट्रस्ट, गैर-सरकारी संगठनों और सरकारी एजैंसियों के सहयोग से शुरू किए गए ये वी.आर.सी. अन्य अंतरिक्ष आधारित सेवाओं के साथ टैली-मैडीसिन सेवा भी प्रदान करते हैं। अब तक देश भर में 461 वी.आर.सी. स्थापित किए जा चुके हैं। इस नैटवर्क को निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के समर्थन से और विस्तार देने की आवश्यकता है, ताकि सुदूर और अविकसित क्षेत्रों में भी टैली-मैडीसिन सेवाएं प्रदान की जा सकें। 

इसके बाद, मैं अपने राज्य हिमाचल प्रदेश में प्रयास सोसाइटी द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख करना चाहूंगा। सारे राज्य में चल रही 17 मोबाइल चिकित्सा इकाइयों के नैटवर्क के जरिए सुदूर क्षेत्रों में भी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की सुविधा सुनिश्चित की जा रही है। ये एम.एम.यू. नैदानिक चिकित्सा उपकरणों से लैस हैं, जो 40 तरह के चिकित्सा परीक्षण करने में सक्षम हैं। वे स्तन कैंसर की जांच भी करते हैं और लाभार्थियों के थूक के नमूने एकत्र करके टी.बी. उन्मूलन कार्यक्रम में सहयोग दे रहे हैं। हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में, ऐसे मॉडल के विस्तार से स्वास्थ्य सेवा को सुलभ और किफायती बनाकर इस अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है। हाल ही में, इन्होंने बुजुर्ग आबादी के लिए घर पर ही स्वास्थ्य सहायता कार्यक्रम की शुरूआत की है। 

अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित श्री करीमुल हक, जिन्हें ‘एम्बुलैंस दादा’ के नाम से जाना जाता है, दूर-दराज और दुर्गम स्थानों से अस्पतालों तक आने-जाने में मरीजों की मदद करके एक अति महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं। बाइक एम्बुलैंस का विचार सामान्य हो सकता है लेकिन इस कार्य से जुड़ी गर्मजोशी असाधारण है। युवाओं और कामकाजी लोगों पर रचनात्मक रूप से समस्या को सुलझाने का दायित्व है। हम उनसे समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना रखने और ऐसे सरल लेकिन प्रभावी नवाचारों के साथ आगे आने की अपेक्षा करते हैं। 

देश के हर गांव में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए सरकार, गैर सरकारी संगठनों और बदलाव करने वालों के बीच एक प्रभावी गठजोड़ विकसित करना होगा। स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च का सिर्फ 35 प्रतिशत सरकार वहन करती है, जबकि बाकी 65 प्रतिशत खर्च लोगों को खुद करना पड़ता है। हमारा सामूहिक लक्ष्य स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को कम करना होना चाहिए। समृद्धि के ‘अमृत काल’ को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी लोगों की जब और जहां जरूरत हो, बिना किसी वित्तीय कठिनाई के स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच हो, यानी सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूनिवर्सल हैल्थ कवरेज) की सुविधा होनी चाहिए।-राम स्वरूप गुप्ता (सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी)


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