राजनीतिक दलों को महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व देना चाहिए

punjabkesari.in Thursday, Jun 13, 2024 - 05:37 AM (IST)

भारत ने चुनाव आयोग के अनुसार इस वर्ष लोकसभा चुनावों में 31.2 करोड़ महिलाओं सहित 64.2 करोड़ मतदाताओं के साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया। यह इस तथ्य के बावजूद है कि हाल ही में सम्पन्न चुनावों में कुल मतदान में लगभग 2 प्रतिशत की कमी आई है। यह पहली बार मतदान करने वाले मतदाता हैं जिन्होंने कुल कम मतदान की भरपाई की है। हालांकि यह चिंता का विषय है कि भले ही बड़ी संख्या में महिला मतदाता मतदान के लिए निकली हों, लेकिन नवगठित लोकसभा में महिलाओं की संख्या 78 से घटकर 74 हो गई है।

18वीं लोकसभा में कुल निर्वाचित सदस्यों में से केवल 13.6 प्रतिशत महिलाएं हैं। यह प्रस्तावित 33 प्रतिशत कोटा से काफी कम है, जिसे परिसीमन प्रक्रिया के बाद महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत महिलाओं के लिए नामित किया जाएगा। लगभग 49 प्रतिशत आबादी होने के बावजूद, हाल के चुनावों में केवल 10 प्रतिशत उम्मीदवार महिलाएं थीं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह 1957 में चुनाव लडऩे वाली महिलाओं से केवल 3 प्रतिशत आगे हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से संतोषजनक नहीं है। 

इस बार भाजपा की लगभग 16 प्रतिशत उम्मीदवार महिलाएं थीं जबकि कांग्रेस की 13 प्रतिशत उम्मीदवार महिलाएं थीं। एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफॉम्र्स  (ए.डी.आर.) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार कुल मिलाकर सभी उम्मीदवारों में से केवल 9.6 प्रतिशत महिलाएं थीं। यह 2019 से बमुश्किल ही अधिक है जब उम्मीदवारों में महिलाओं की हिस्सेदारी 9 प्रतिशत थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दुनिया भर में संसदों में पुरुषों का दबदबा है लेकिन भारत इस पैरामीटर में बहुत पीछे है। अंतर-संसदीय संघ (आई.पी.यू.) के डाटा से पता चलता है कि दुनिया भर के 52 देशों में 2023 में संसदीय चुनाव हुए और औसतन 27.6 प्रतिशत महिलाएं चुनी गईं।

आई.पी.यू. के आंकड़ों के अनुसार 18वीं लोकसभा के चुनाव से पहले, भारत इस सूची में 185 देशों में 143वें स्थान पर था। हाल ही में सम्पन्न चुनावों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में गिरावट के साथ रैंकिंग में कुछ पायदान और गिरने की संभावना है। पार्टीवार देखें तो भाजपा में सबसे ज्यादा 31 महिला सांसद हैं, उसके बाद कांग्रेस में 13 हैं। अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस में 11 महिला सांसद,  सपा और द्रमुक में 5-5 हैं। इसके अलावा छोटी पाॢटयों की भी कुछ महिलाएं सांसद हैं।

हालांकि यह एक उत्साहजनक संकेत है कि अधिक से अधिक महिला मतदाता मतदान करने के लिए बाहर आ रही हैं। उल्लेखनीय है कि चुनाव के अंतिम 3 चरणों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक थी। इसका अंतिम परिणाम पर असर पड़ सकता है। सैंटर फॉर द स्टडी ऑफ डिवैल्पिंग सोसायटीज (सी.एस.डी.एस.) द्वारा एकत्रित आंकड़ों के अनुसार,  महिला मतदाताओं की 36 प्रतिशत की तुलना में पुरुष मतदाताओं के एक बड़े हिस्से (37 प्रतिशत) ने भाजपा को चुना। यह संख्या 2019 में पार्टी को मिले समर्थन के समान है। 

यह कांग्रेस के लिए संख्याओं के विपरीत है। इस साल 22 प्रतिशत महिलाओं ने कांग्रेस को वोट दिया जो 2019 से 2 प्रतिशत अधिक है। तुलनात्मक रूप से इस साल 21 प्रतिशत पुरुषों ने कांग्रेस को वोट दिया।महिला मतदाताओं के प्रभाव और ताकत को ध्यान में रखते हुए सभी प्रमुख दलों ने महिलाओं के लिए सभी प्रकार की कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ प्रोत्साहनों की घोषणा की थी। इनमें सस्ती एल.पी.जी. से लेकर नकद प्रोत्साहन और बालिकाओं और महिलाओं के कल्याण के उद्देश्य से कई अन्य योजनाएं शामिल थीं। उम्मीदवारों का चयन करते समय प्रमुख राजनीतिक दलों को शायद  ‘जीतने की क्षमता’ का कारक प्रभावित करता था। 

ऐसे उच्च दाव वाले चुनावों में कोई भी राजनीतिक दल ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारना चाहेगा जिनका समर्थन आधार कमजोर हो। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दल महिलाओं को जिम्मेदारियां संभालने के लिए प्रोत्साहित करके और भविष्य में नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए उन्हें तैयार करके आगामी चुनावों की तैयारी शुरू कर दें। संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत के प्रस्तावित आरक्षण के साथ सभी दलों को भविष्य में चुनावी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए संभावित महिला उम्मीदवारों को रखना चाहिए। -विपिन पब्बी


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