उत्तर प्रदेश में राजनीतिक तापमान गर्माया
punjabkesari.in Saturday, Nov 16, 2024 - 05:36 AM (IST)
उत्तर प्रदेश में राजनीतिक तापमान बहुत बढ़ गया है क्योंकि राज्य में 9 विधानसभा सीटों के लिए आगामी उपचुनाव नजदीक आ रहे हैं, जहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा समाजवादी पार्टी (सपा) नेता अखिलेश यादव के लिए दाव बहुत ऊंचे हैं।
एक ओर, सपा ने पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक (पी.डी.ए.) रणनीति के माध्यम से जातिगत विविधता पर महत्वपूर्ण जोर दिया है, जो पिछड़ी जातियों, दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच एकता पर केंद्रित है। यह दृष्टिकोण इसके उम्मीदवारों की सूची में भी झलकता है-2 दलित, 4 मुस्लिम और 3 अन्य पिछड़ी जातियों (ओ.बी.सी.) के उम्मीदवार।
जबकि योगी ने बंगलादेश में हिंदुओं पर हमलों के संबंध में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के कट्टरपंथी नारे के साथ हिंदुत्व के एजैंडे को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया, जिसका अर्थ है कि वोटों का विभाजन चुनावों में विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है। इसके अतिरिक्त, भाजपा मतदाताओं का दिल जीतने के लिए आदित्यनाथ के शासन के दौरान ‘सुशासन और बेहतर कानून व्यवस्था’ का प्रचार कर रही है। इस बीच, मायावती की बसपा चुपचाप नहीं बैठी है, उसने सभी 9 निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे उप-चुनाव त्रिकोणीय हो गया है। बसपा के यू.पी. अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने प्रचार की कमान संभाली है, हालांकि मायावती के भतीजे और बसपा के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद खास तौर पर अनुपस्थित रहे हैं।वहीं कांग्रेस पार्टी ने उपचुनाव न लडऩे और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को अपना समर्थन देने का फैसला किया है। सपा की जीत राज्य में भाजपा के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में उसके दावे को मजबूत करती है। इससे भारतीय जनता पार्टी के भीतर सपा की स्थिति भी मजबूत होगी। भाजपा की जीत से आदित्यनाथ को पार्टी के भीतर आलोचनाओं से निपटने में मदद मिलेगी।
हरियाणा में कांग्रेस ने सी.एल.पी. के नेता की घोषणा नहीं की
नवगठित 15वीं हरियाणा विधानसभा का पहला शीतकालीन सत्र 13 नवम्बर, 2024 को शुरू हो गया था, लेकिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने अपने विधायक दल (सी.एल.पी.) के नेता की घोषणा नहीं की है, जिससे सत्तारूढ़ भाजपा को कांग्रेस पर निशाना साधने का राजनीतिक मौका मिल गया है। सी.एल.पी. नेता चुनने में देरी और इंतजार ने एक बार फिर पार्टी की राज्य इकाई में आंतरिक गुटबाजी को उजागर कर दिया है, जिसे पार्टी बार-बार छिपाती और नकारती रही है। हुड्डा और लोकसभा सांसद कुमारी शैलजा के खेमों के बीच पार्टी में विभाजन चुनावों के दौरान स्पष्ट और सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित हुआ था। पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पिछले सदन में विपक्ष के नेता थे। हालांकि, चुनाव नतीजों के एक महीने बाद भी पार्टी अपना विधायक दल का नेता चुनने में विफल रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, उन्हें 20 नवम्बर को महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव के बाद ही घोषणा की उम्मीद है। हालांकि, कांग्रेस आलाकमान हुड्डा का नाम घोषित करने और उन्हें सी.एल.पी. नेता के रूप में जारी रखने के लिए उत्सुक नहीं है।
महाराष्ट्र में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान के अंतिम चरण में प्रवेश करने के साथ ही, एन.सी.पी. नेताओं के अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट ने भाजपा के अभियान के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे पर अपनी बेचैनी को उजागर किया है और सत्तारूढ़ गठबंधन के सत्ता में लौटने पर शासन के लिए एक सांझा न्यूनतम कार्यक्रम का आह्वान भी किया है। वहीं शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), एन.सी.पी. (शरद पवार गुट) और कांग्रेस से मिलकर बने एम.वी.ए. ने ‘लोकसेवा पंचसूत्री’ के तहत कई तरह के वादे किए हैं। इसमें 3,000 रुपए प्रति माह का प्रत्यक्ष नकद लाभ और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा शामिल है। गठबंधन ने 3 लाख रुपए तक के कृषि ऋण माफ करने और ऋण चुकाने वाले किसानों को अतिरिक्त 50,000 रुपए देने का भी वादा किया है।
उन्होंने बेरोजगार युवाओं को 4,000 रुपए का ‘लाभ’ देने और गरीबों को 25 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा कवरेज देने का भी वादा किया है। भाजपा के नेतृत्व वाला महायुति गठबंधन, जिसमें एकनाथ शिंदे की शिवसेना भी शामिल है, पिछले कुछ समय से नकद सहायता दे रहा है। लेकिन एम.वी.ए. के वादों के दबाव में, महायुति ने अपनी ‘लाडकी बहिन योजना’ की पेशकश को महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए 1,500 रुपए से बढ़ाकर 2,100 रुपए प्रति माह कर दिया है, साथ ही छात्रों को 10,000 रुपए प्रति माह सहायता और किसानों को 15,000 रुपए की वित्तीय सहायता दी है, जो पहले 12,000 रुपए थी।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए ‘आप’, भाजपा और कांग्रेस ने कसी कमर
अगले साल फरवरी में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में अब केवल 3 महीने बचे हैं, ऐसे में ‘आप’, भाजपा और कांग्रेस तीनों ही पाॢटयों ने अपने-अपने संपर्क कार्यक्रम शुरू करके चुनावी माहौल में कमर कस ली है। कांग्रेस नेता और 5 बार के विधायक मतीन अहमद आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हो गए, जबकि दिल्ली के पूर्व मंत्री हरशरण सिंह बल्ली सत्तारूढ़ पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। शराब ‘घोटाले’ को उछालकर, भाजपा को उम्मीद है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ योद्धा के रूप में केजरीवाल की छवि को सफलतापूर्वक धूमिल कर देगी। हालांकि, ‘आप’ को उम्मीद है कि जांच में कम प्रगति और धीमी अदालती कार्रवाई के साथ, व्यक्तिगत दुराचार के आरोपी सत्येंद्र जैन सहित सभी गिरफ्तार ‘आप’ नेताओं को जमानत मिलने के साथ, भाजपा की रणनीति को जांच एजैंसियों के दुरुपयोग के रूप में देखा जाएगा।-राहिल नोरा चोपड़ा