विपक्ष के पास मोदी का कोई विकल्प नहीं

punjabkesari.in Wednesday, May 19, 2021 - 05:16 AM (IST)

कोविड की दूसरी लहर के लिए भारत की प्रतिक्रिया को लेकर ज्यादातर आलोचना हुई है और इसे ‘संतुष्ट’ शब्द का नाम दिया गया है। यह अब स्पष्ट है कि सरकार भी संतुष्ट नजर आती थी क्योंकि पहली लहर से निपटने में इसने अपने आपको सफल होने का दावा किया था। इसीलिए सरकार दूसरी लहर के लिए तैयार न थी। इसी प्रकार ‘संतुष्ट’ शब्द सरकार के आलोचकों पर भी लागू होता है। उनका मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी महामारी से निपटने में असमर्थ होने के कारण अब मुश्किल में हैं और अब ढलान पर हैं। 

इस बात को लेकर उनका तर्क उचित हो सकता है मगर यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। मोदी फिर से वापसी करेंगे। पश्चिम बंगाल चुनावों के नतीजों की घोषणा के बाद सरकार की किस्मत थोड़ी डांवाडोल हुई है।  पश्चिम बंगाल के बारे में भाजपा बहुत ज्यादा ‘संतुष्ट’ थी। मैं यहां पर यह शब्द फिर से इस्तेमाल कर रहा हूं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 200 सीटों के आंकड़े की भविष्यवाणी की थी। जब पार्टी को इस राज्य में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा तब भाजपा के आलोचकों ने कहा कि अमित शाह ने लोगों के मनों को पढऩे की योग्यता खो दी है। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में मतदाताओं को अपनी ओर आकॢषत करने का करिश्मा अब खत्म हो चुका है। उसके बाद उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव सामने आए, जहां पर भाजपा का वोट शेयर पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में महत्वपूर्ण तरीके से नीचे गिर गया। फिर से यही बात कही जाने लगी कि भाजपा की लोकप्रियता को धक्का लगा है। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। मगर शायद हम लोग यह बात भूल रहे हैं कि इसका एक दूसरा पहलू भी है। इसको हम एक दूसरी संभावना से देख सकते हैं। मोदी इस संकट से पार पा लेंगे जैसा कि विनाशकारी नोटबंदी  के बाद भी उन्होंने चुनावी जीत प्राप्त की थी। 

मैंने 2 चुनाव विज्ञानियों से बात की। मैं यशवंत देशमुख तथा संजय कुमार जिन्होंने हाल ही के समय में लोगों के मनों को भांप लिया था, का स मान करता हूं। पश्चिम बंगाल में चुनावी मुहिम के शुरू होने से पहले इन दोनों ने कहा था कि भाजपा इस राज्य में चुनाव नहीं जीतेगी और अब दोनों का मानना है कि इस सरकार की निकासी के बारे में कोई भी भविष्यवाणी करना समय पूर्व की गई बात है। अपने तर्क में संजय कुमार संकेत देते हैं कि अगले लोकसभा चुनावों में अभी तीन वर्ष का समय पड़ा है। 

लोगों का मूड बदलने के लिए यह काफी लंबा समय है। अन्य कई चीजों के घटने में भी अभी काफी लंबा समय पड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी अपना दृष्टिकोण बदल सकते हैं और किसी भी गलती के लिए उसकी जि मेदारी स्वीकार करने से इंकार कर सकते हैं। अंतत: मोदी यह महसूस कर सकते हैं कि समझौता और जवाबदेही कमजोरी नहीं और यह भी पहचान कर सकते हैं कि उनके आलोचक राष्ट्रविरोधी नहीं हैं। मतदाताओं का मन बदलने के लिए अभी कई घटनाएं घट सकती हैं। 

मिसाल के तौर पर संजय कुमार का कहना है कि भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनावों में पाकिस्तान विरोधी भावनाओं के बढऩे के आधार पर 60 के करीब और सीटें जीत लीं। इसे संजय ‘बालाकोट बंप’ का नाम देते हैं। सभी चुनाव सुझाते हैं कि लोकप्रियता के मामले में उन्होंने सभी पार्टियों को पीछे छोड़ दिया। उनकी पसंद की रेटिंग 40 प्रतिशत है जोकि उनके स्टैंडर्ड को लेकर बुरी है। किसी समय यह करीब 70 प्रतिशत की थी। 

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के अनुमोदन की रेटिंग करीब 52 प्रतिशत है। भाजपा उम्मीद करती है कि अगले चुनावों में राम मंदिर ही मुद्दा होगा। स्पष्ट तौर पर ऐसा कम ही प्रतीत होता है। अपनी हिंदू पहचान के आधार पर वोट करने वाले लोगों ने पहले से ही मोदी के लिए वोट दिया। उस पहलू को लेकर अब यहां पर बहुत कम वोट हैं। जैसा कि प्रशांत किशोर ने चेतावनी देते हुए कहा है कि मोदी को कमतर आंकना एक भूल होगी। 

प्रधानमंत्री के पास एक और भी अनुकूल परिस्थिति है। देश में एक राष्ट्र विकल्प की अनुपस्थिति है। हम जानते हैं कि भाजपा राज्यों में मात खा सकती है मगर ऐसा कोई विपक्ष में कोई नेता है जो लोकप्रियता के मामले में मोदी से आगे है? सभी चुनाव इस बारे में न ही कहते हैं। जैसा कि यशवंत देशमुख ने यू.पी.ए.-2 के दौरान प्रकट किया था जब मनमोहन सिंह की लोकप्रियता उतार पर थी और नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ गया मगर इस समय बेशक मोदी की लोकप्रियता ढलान पर है मगर कोई भी विपक्षी नेता उनकी लोकप्रियता के मामले में ऊंचाई हासिल नहीं कर पा रहा। 

यहां पर मूल समस्या कांग्रेस की है क्योंकि भाजपा गिरावट की ओर है तो कांग्रेस एक स्पष्ट विकल्प के तौर पर सामने नहीं आती। कांग्रेस ने असम को खो दिया। जैसा कि हमने महामारी के दौरान देखा है। युवा कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं के बीच एक जबरदस्त ऊर्जा है मगर जिन मतदाताओं का मोदी से मोह भंग हो गया है वह भी कांग्रेस को गंभीरतापूर्वक एक विकल्प के तौर पर नहीं देखते। क्या कांग्रेस अपने नेतृत्व के मुद्दे का हल निकालेगी। भाजपा का मानना है कि ऐसा नहीं होगा और यदि कांग्रेस एकजुट होकर कार्य करती है तो भाजपा मुश्किल में हो सकती है।-वीर संघवी


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