विपक्ष के पास मोदी का मुकाबला करने के लिए कोई मजबूत नेता नहीं

punjabkesari.in Wednesday, Mar 29, 2017 - 12:55 AM (IST)

जैसे -जैसे देश भर में भाजपा अपना फैलाव कर रही है, सैकुलर पार्टियों और दक्षिणपंथी भाजपा के बीच ध्रुवीकरण बढऩा तय है। 7 दशकों से देश में ‘केन्द्र से बाएं की ओर’ वाली जो कांग्रेस की नीति चलती रही है वह दक्षिण पंथी राजनीति के अभ्युदय के कारण अब बदल रही है। उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ के उत्थान से यह रुझान स्पष्ट हो गया है लेकिन भाजपा और आर.एस.एस. के पिटारे में अभी पता नहीं कितने अन्य आदित्यनाथ छिपे हुए हैं। 

हाल ही के 5 विधानसभा चुनावों के नतीजे इस बात का संकेत हैं कि पूर्वोत्तर यू.पी. और उत्तराखंड के साथ-साथ अन्य इलाकों में भी भाजपा की शक्ति बढ़ रही है। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे उन राज्यों सहित जहां अगले वर्ष चुनाव होने जा रहे हैं, भाजपा अन्य राज्यों में विजय हासिल करने की संभावनाएं तलाश कर रही है। 

सोचने की बात तो यह है कि उदारपंथी एक के बाद एक पराजय का मुंह क्यों देख रहे हैं? इस बात में  तो कोई संदेह नहीं कि भाजपा के पास नरेन्द्र मोदी जैसा करिश्माई नेता है जो बिहार और दिल्ली के चुनावों को छोड़कर 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद होने वाले समस्त चुनाव में मतदाताओं को आकॢषत करने में सफल रहा है। बेशक उनकी ढेर सारी योजनाएं अभी ‘काम चालू है’ की स्थिति में हैं तो भी जनता पर मोदी का जादू बरकरार है। आर.एस.एस.  की प्रयोगशाला में से तैयार होकर निकले मोदी हिन्दू राष्ट्रवाद के भूत, भविष्य और वर्तमान का प्रतीक हैं। बेशक वह विकास की बातें करके सत्ता में आए हैं तो भी उनका हिन्दुत्व एजैंडा सामने आ चुका है। 

सोचने का एक अन्य बिन्दु यह है कि भारत दाएं पंथ की ओर क्यों मुड़ता जा रहा है? इसके विभिन्न कारण हैं। सर्वप्रथम कारण तो यह है कि कांग्रेस सहित सैकुलर पाॢटयां मतदाताओं की बदलती प्रोफाइल के साथ खुद को बदलने में विफल रही हैं क्योंकि मतदाताओं के साथ उनका सीधा संबंध बचा ही नहीं है। 1984 में जिस भाजपा के पास लोकसभा की 2 सीटें थीं उसने अब अखिल भारतीय राष्ट्रीय पार्टी के रूप में कांग्रेस का स्थान हथिया लिया है। 

इसने 1998 से लेकर 2004 तक केवल 6 वर्ष तक देश पर शासन किया था लेकिन अगले चुनाव में यह वापसी नहीं कर पाई थी और 10 वर्षों तक एक बार फिर सत्ता की लगाम कांग्रेस नीत यू.पी.ए. के हाथों में आ गई। यू.पी.ए. घटकों का गणित भी यू.पी.ए. के लिए हितकर सिद्ध हुआ। इसके अलावा लोगों का भाजपा से मोहभंग हो चुका था। केवल 2014 में जाकर ही भाजपा नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। अब भाजपा गठबंंधन सहयोगियों के साथ या अकेले दम पर देश के 17 राज्यों में सत्तारूढ़ है जबकि कांग्रेस केवल 4 राज्यों में शासन कर रही है और वामपंथी 2 राज्यों में। 

भाजपा के अभ्युदय का दूसरा पहलू यह है कि देश में सैकुलर पार्टियों के लिए स्थान की कमी होती जा रही है। भाजपा केवल कांग्रेस, वामपंथियों तथा अन्य सैकुलर पार्टियों की कीमत पर अपना विस्तार कर रही है। क्या इसका तात्पर्य यह है कि मतदाताओं का सैकुलर पार्टियों से मोह भंग हो चुका है और वे भाजपा तथा इसके सिद्धांतों को प्राथमिकता देते हैं? या फिर ऐसा इसलिए हो रहा है कि भाजपा तीसरे मोर्चे अथवा कांग्रेस पार्टी के विकल्प के रूप में उभर चुकी है? इस बात का फैसला वक्त ही सुनाएगा। 

तीसरा पहलू यह है कि कांग्रेस में नेतृत्व की कमी के साथ-साथ भाजपा के अभ्युदय का मुकाबला करने के लिए रणनीति और धन-बल की भी कमी है। गाहे-बगाहे अपना सिर उठाने वाले तीसरे मोर्चे की परिकल्पना के पास भी दक्षिण पंथी पार्टियों का मुकाबला करने के लिए कोई सशक्त नेता नहीं है। जब तक भाजपा के विरुद्ध लडऩे के लिए एकजुट विपक्ष  अस्तित्व में नहीं आता, तब तक भाजपा का विस्तार होने से कोई रोक भी नहीं सकता। 

चौथा पहलू यह है कि दक्षिणपंथ की दिशा में मोड़ काटने का रुझान एक वैश्विक घटनाक्रम बनता जा रहा है जैसे कि अमरीका, यू.के. और यूरोप के घटनाक्रमों से स्पष्ट हो रहा है। भारत केवल इन्हीं देशों के कदम से कदम मिला रहा है। फ्रांस, नीदरलैंड्स और अन्य देशों की दक्षिणपंथी पार्टियों ने भी अपने-अपने देशों में ब्रिटेन के ‘ब्रैग्जिट’ की तर्ज पर यूरोपियन यूनियन की सदस्यता छोडऩे के मुद्दे पर जनता से आह्वान किया है।

स्लोवाकिया, एस्तोनिया, बुलगारिया व पोलैंड के अधिकारियों ने कहा है कि वे अपने यहां केवल ईसाई धर्मावलंबियों को ही शरण देंगे, अन्य किसी व्यक्ति को नहीं। डोनाल्ड ट्रम्प का अमरीकी राष्ट्रपति बनना तथा यू.के. के यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने के पक्ष में मतदान को इसी रुझान के साक्ष्य के रूप में देखा जा सकता है। यह रुझान केवल जारी ही नहीं रह रहा बल्कि भारत तक भी पहुंच सकता है। पैंडुलम हमेशा ही बाएं से दाएं तक झूलता रहता है। 

पांचवां पहलू यह है कि दक्षिण एशिया में आतंकवाद और जेहाद का बढ़ता प्रभाव भाजपा के अभ्युदय का एक अन्य कारण बन गया है क्योंकि भाजपा इसे समाप्त करने पर कृत संकल्प है। इसके अलावा बंगलादेशी आप्रवासियों की घुसपैठ बढ़ती जा रही है जिनके कारण इससे सटे हुए भारत के असम प्रांत एवं पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में जनसांख्यिकी अनुपात में बदलाव आ रहा है। छठा पहलू यह है कि भाजपा सोशल मीडिया पर युवा वर्ग से घनिष्ठ संवाद रचाए हुए है। यह वर्ग देश की आबादी में 65 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है और मोदी ने इन्हें रोजगार देने और विकास करने का लक्ष्य अपनाया हुआ है जबकि विपक्ष अभी तक कथित सैकुलरवाद बनाम हिन्दू मूलवाद की ही लकीर पीट रहा है। यदि वे भाजपा को सत्ताच्युत करना चाहते हैं तो उन्हें यह मुहावरा बदलना होगा। 

सातवां पहलू है कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में हिन्दू भावनाओं का दोहन करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देती। वे अल्पसंख्यक विस्तार के बारे में बहुसंख्य समुदाय की आशंकाओं से बहुत सफलता से लाभ उठा रहे हैं। यह मोदी का युग है और इसमें हिन्दुत्व उभार पर है। उत्तर प्रदेश के हाल ही के चुनावों में भाजपा की भारी-भरकम जीत को यदि प्रमाण माना जाए तो यह हिन्दू एकता को सुदृढ़ बनाने में सफल रही है। इस सफलता की व्याख्या मोदी ने गरीब समर्थक मुहावरे में की है। उन्होंने इंदिरा गांधी का ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ का मुहावरा उधार लेते हुए अपनी समस्त नई योजनाओं में इनका वायदा किया है और भाजपा की सशक्त संचार रणनीति के कारण यह मोदी की भाव-भंगिमा गरीबों को अच्छा-खासा प्रभावित कर रही है। 

संक्षेप में कहा जा सकता है कि मोदी जब तक भाजपा को अग्रसर करते हुए अधिक से अधिक भौगोलिक क्षेत्र में विस्तार करते जाएंगे तब तक सफलता मोदी के कदम चूमती ही रहेगी। भारतीय मतदाता और अधिक विकास चाहते हैं तथा किसी ऐसे व्यक्ति  पर दाव लगाने को तैयार हैं जो उन्हें कुछ करके दिखाने के योग्य लगता है। उदारपंथी बेशक कितना भी सीना क्यों न पीटें और यह कहें कि दक्षिण-पंथ की ओर देश का बढऩा एक खतरनाक रुझान है, तो भी इस समय बदलाव की कुंजी मोदी के ही हाथ में है। 


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