जलते हैं केवल पुतले, रावण बढ़ते जा रहे

punjabkesari.in Wednesday, Oct 05, 2022 - 03:59 AM (IST)

हर साल विजयदशमी में रावण वध देखते हैं तो मन में आस होती है कि समाज में बसे रावण कम होंगे। लेकिन ये तो रक्तबीज के समान हैं। रावणों की संख्या में बेहिसाब इजाफा हो रहा है। एक कटे सौ पैदा हो रहे हैं। वो तो फिर भी महान था। विद्वान था,नीति पालक था,शूरवीर था,कत्र्तव्यनिष्ठ था,सच्चा शासक था,अच्छा पति था,अच्छा भाई था,भगवान शिव का उपासक था। सीता का हरण किया, लेकिन बुरी नजर से नहीं देखा। विवाह का निवेदन किया लेकिन जबरन विवाह नहीं किया। एक गलती की जिसकी उसे सजा भुगतनी पड़ी मगर आज के दौर में हजारों अपराध करने के बाद भी रावण सरेआम सड़कों पर घूम रहे हैं, कोई लाज नहीं,शर्म नहीं। 

दशहरे पर रावण का दहन एक ट्रैंड बन गया है। लोग इससे सबक नहीं लेते। रावण दहन की संख्या बढ़ाने से किसी तरह का फायदा नहीं होगा। लोग इसे मनोरंजन के साधन के तौर पर लेने लगे हैं। देश में  रावण की लोकप्रियता और अपराधों का ग्राफ लगातार ऊंचा होता जा रहा है। पिछले वर्ष के मुकाबले हर बरस देश के विभिन्न हिस्से में तीन गुणा अधिक रावण के पुतले फूंके जाते हैं। इसके बावजूद अपराध में कोई कमी आएगी, इसके बढ़ते आंकड़े देखकर तो ऐसा नहीं लगता। हमें अपने धार्मिक पुराणों से प्रेरणा लेनी चाहिए। रावण दहन के साथ दुर्गुणों को त्यागना चाहिए। रावण दहन दिखाने का अर्थ बुराइयों का अंत दिखाना है। हमें पुतलों की बजाय बुराइयों को छोडऩे का संकल्प लेना चाहिए। समाज में अपराध, बुराई के रावण लगातार बढ़ रहे हैं। इसमें रिश्तों का खून सबसे अधिक हो रहा है। मां, बाप, भाई, बहन, बच्चों तक की हत्या की जा रही है। दुष्कर्म के मामले भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं। 

रावण सर्व ज्ञानी था उसे हर एक चीज का अहसास होता था क्योंकि वह तंत्र विद्या का ज्ञाता था। रावण ने सिर्फ अपनी शक्ति एवम स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में सीता का अपहरण अपनी मर्यादा में रह कर किया। अपनी छाया तक उस पर नहीं पडऩे दी। आज का रावण धूर्त है,जाहिल है, व्यभिचारी है, दहेज के लिए पत्नी को जलाता है, शादी की नीयत से महिलाओं का अपहरण करता है। 

इस कुकृत्य में असफल हुआ तो बलात्कार भी। धर्म के नाम पर कत्लेआम करता है,लडऩे की शक्ति उसमें है नहीं,सो दूसरे के कंधे पर बंदूक रख कर चलाता है। नीतियों से उसका कोई वास्ता नहीं है, पराई नारी के प्रति उसके मन में कोई श्रद्धा नहीं। राजा अपने फायदे देख कर जनता की सेवा करता है। आज का रावण उस रावण से क्रूर है, खतरनाक है, सर्वव्यापी है। वह महलों में रहता है। गली-कूचों में रहता है। गांव में भी है। शहर में भी है। वह गवार भी है। पढ़ा-लिखा भी है। लेकिन राम नहीं है कि उसकी गर्दन मरोड़ी जा सके। बस एक आस ही तो है कि समाज से रावणपन चला जाएगा खुद-ब-खुद एक दिन। रावण के दुख, अपमान और मृत्यु का कारण कोई नहीं था। 

रावण की मृत्यु का मुख्य कारण वासना थी, जो उसके अंतिम विनाश का कारण थी। इतिहास इस बात का गवाह है कि कामुक पुरुष (और महिलाएं भी) कभी सुखी नहीं रहे। विपरीत ङ्क्षलग के प्रति उनके जुनून के कारण कई शक्तिशाली राजाओं ने अपना राज्य खो दिया। रावण ने सीता की शारीरिक सुंदरता के बारे में सुना, फिर उस पर विचार करना शुरू कर दिया और अंतत: उस गलत इच्छा पर कार्य करना शुरू कर दिया और अंत में वासना ही रावण की मृत्यु का मुख्य कारण बनी। 

लंकापति रावण महाज्ञानी था लेकिन अहंकार हो जाने के कारण उसका सर्वनाश हो गया। रावण परम शिव भक्त भी था। तपस्या के बल पर उसने कई शक्तियां अर्जित की थीं। रावण की तरह उसके अन्य भाई और पुत्र भी बलशाली थे। लेकिन आचरण अच्छा न होने के कारण उनके अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहे थे जिसके बाद भगवान ने राम के रूप में अवतार लिया और रावण का वध किया। 

वाल्मीकि रामायण में रावण को अधर्मी बताया गया है। क्योंकि रावण ज्ञानी होने के बाद भी किसी भी धर्म का पालन नहीं करता था। यही उसका सबसे बड़ा अवगुण था। जब रावण की युद्ध में मृत्यु हो जाती है तो मंदोदरी विलाप करते हुए कहती है, अनेक यज्ञों को विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोडऩे वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहां-तहां से हरण करने वाले, आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है। 

रावण के जीवन से हमें जो सीख लेनी चाहिए वह यह है कि हमें कभी भी अपने हृदय में वासना को पनपने नहीं देना चाहिए। किसी भी प्रकार की वासना के लिए हमें लगातार अपने हृदय की जांच करनी चाहिए। अगर है तो उसे कली में डुबो दें। क्योंकि अगर अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो यह हमें पूरी तरह से नष्ट कर देगा। सब कुछ चिंतन से शुरू होता है। 

आज के लोग इतने शिक्षित और समझदार हो गए हैं कि सबको पता है बुराई और अच्छाई क्या होती है। लेकिन फिर भी दुनिया में बुराइयां बढ़ती ही जा रही हैं। जो संदेश देने के लिए रावण दहन की प्रथा को शुरू किया गया था, वह संदेश तो आज कोई लेना ही नहीं चाहता तो फिर हर साल रावण दहन करने से क्या फायदा है। बहुत से लोग इस दुनिया में इतने बुरे हैं कि रावण भी उसके सामने देवता लगने लगे। ऐसे बुरे लोग बुराई के नाम पर रावण दहन करें तो यह तो रावण का अपमान ही है। साथ ही अच्छाई का भी।-प्रियंका सौरभ
 


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