अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था, तकनीक व ऊर्जा महत्वपूर्ण निर्णायक हैं

punjabkesari.in Wednesday, Oct 20, 2021 - 03:43 AM (IST)

ऊर्जा संसाधन किसी भी राष्ट्र के विकास सूचकांक के स्तम्भ होते हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि कोयले जैसे अनवीकरणीय संसाधन अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी आदि के शक्तिशाली होने के स्वरूप रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के दायरे अब अन्योन्याश्रितता द्वारा चिह्नित किए जाते हैं। यही कारण है कि जहां पहले राष्ट्रीय हित में हर देश के लिए केवल सैनिक तत्व पैमाना था, वहीं अब गैर-सैनिक तत्व राष्ट्रीय हित के महत्वपूर्ण आयाम हैं। शीत युद्ध के समाप्त होने के बाद विश्व राजनीति की परिस्थिति और सोच में जो बदलाव आया है, उसके कारण भी अर्थव्यवस्था, तकनीक, ऊर्जा आदि अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण निर्णायक हैं। 

आर्थिक मुद्दे अब सत्ता के वर्चस्व से जुड़े हैं। वैश्विक समाचारों में चीन में कारखानों का बंद होना, काम में निलंबन आना और इसका प्रभाव अन्य गैर-सरकारी कारकों, जैसे निजी कंपनियों आदि पर भी काफी चर्चा में है। यही कारण है कि हाल-फिलहाल में चीन में कोयले की कीमतों को लेकर वैश्विक सत्ता समीकरण से लेकर बिजली की कमी और ऊर्जा के नए जरियों की जरूरत पर ध्यान केंद्रित किया गया है। 

महात्मा गांधी ने कहा था कि दुनिया में हमारी जरूरत के लिए पर्याप्त संसाधन है, लालच के लिए नहीं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद वैश्विक राजनीति यथार्थवादी दृष्टिकोण से संचालित की गई। विश्व राजनीति में सत्ता संघर्ष के लिए आदर्शवाद को अनुपयुक्त माना गया। यही कारण है कि राजनीतिक आंतरिक ढांचा किसी भी देश का कैसा भी हो, उसने आर्थिक औद्योगिक मॉडल्स में पूंजीवाद, मुनाफे को नजरअंदाज नहीं किया। देशों को लगा कि उनके प्रभुत्व के लिए आर्थिक विकास आवश्यक है। इसी संदर्भ में प्राकृतिक संसाधनों की कमी आज राजनीति में मूल्यों की अज्ञानता की ओर इशारा करती है। 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सहयोग के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया। चीन ने इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों में बैल्ट एंड रोड पहल के माध्यम से काफी वित्त पोषण किया है। हालांकि चीन ने इस बात को स्वीकार किया कि वह अब नई कोयला-प्रज्वलन परियोजनाओं को वित्तीय मदद नहीं करेगा। अंतर्राष्ट्रीय वास्तविकताओं के संदर्भ में परिवर्तनों की व्याख्या करते हुए राष्ट्रपति बाइडेन ने स्पष्ट रूप से कहा कि जहां कोरोना वायरस, जलवायु परिवर्तन, उभरते तकनीकी आदि जैसे कई और नए खतरे, जो गैर-सैन्य प्रकृति के हैं, वहीं वैश्विक स्तर पर हमारी सुरक्षा, समृद्धि और स्वतंत्रता आपस में जुड़ी हुई हैं। एक बार फिर कोयला संकट ने इसी अंतरनिर्भरता की गुहार लगाई है। 

ऐसा नहीं है कि वैश्वीकरण या राष्ट्रों के बीच माल का आदान-प्रदान पहले नहीं हुआ लेकिन अब प्रौद्योगिकी और संचार क्रांति द्वारा संचालित वैश्वीकरण के समकालीन रूप ने राष्ट्रों की इंटीग्रेशन और एक दूसरे पर निर्भरता को एक नया मोड़ दिया है।
वैश्वीकरण के कारण अन्योन्याश्रितता की समस्या तो उभर कर सामने आई लेकिन इससे लाभ के साथ जो नुक्सान हुए, उन्हें भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।

इसी कहानी का एक महत्वपूर्ण पहलू यह कि विकास, बड़े पैमाने पर कारखानों, जटिल औद्योगिक मॉडल ने नौकरी का लाभ दिया लेकिन प्राकृतिक सीमित संसाधनों पर अधिक निर्भरता की किस कीमत पर। वर्तमान में कोयला संकट इसी बात का साक्षी है प्राकृतिक सीमित संसाधनों की कमी और आपूर्ति व इनके उपयोग की एक सीमा है, जो अब लगभग आ गई है। विश्व के सभी देशों को मिलकर एक समझपूर्ण योजना के तहत वर्तमान में कार्यशील कोयला बिजली संयंत्रों का समाधान व दीर्घकालिक विकल्प ढूंढना होगा। घरेलू स्तर पर भी विभिन्न देशों को केंद्रीय और राज्य स्तर पर समान रूप से तालमेल बिठाना होगा। 

वैश्विक नेता ऊर्जा संसाधनों के विविधीकरण की आवश्यकता को नजरअंदाज नहीं कर सकते। सुव्यवस्थित प्रयासों द्वारा ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत, जैसे हवा, पनबिजली, तेल, प्राकृतिक गैस, परमाणु, सौर आदि की ओर ध्यान देना होगा। यह काम मुश्किल जरूर लग सकता है लेकिन वैश्विक उत्सर्जन से निपटने में महत्वपूर्ण हो सकता है।

आर्थिक मुद्दे सत्ता के वर्चस्व से जुड़े हैं, इन पर विवाद हो सकता है लेकिन समाधान और विकल्प भी मुश्किल नहीं हैं। वैश्विक शासन के मुद्दे सहयोग की मांग करते हैं और इसे नवीन सोच पर बनाया जाना चाहिए। जीवाश्म ईंधन पर वैश्विक अर्थव्यवस्था की निर्भरता परम सत्य  है। इस ऊर्जा संकट के कारण कुछ देशों में ईंधन की कमी और ब्लैकआऊट का खतरा उत्पन्न हो गया। यूरोप और चीन के बाद भारत में भी बिजली संकट को लेकर काफी चर्चा है। यह समय समस्या के समाधान के लिए एकजुटता की मांग करता है क्योंकि अब राष्ट्र उद्योग, निर्माण, मैन्युफैक्चरिंग व अर्थशास्त्र में एक देश दूसरे पर निर्भर हैं।-डा. आमना मिर्जा
 


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